सामना संवाददाता / मुंबई
सूचना और दूरसंचार के इस युग में जहां अब लोग सोशल मीडिया, व्हॉट्सऐप तथा अन्य साधनों का सहारा ले रहे हैं, वहीं कभी अपनों तक अपनी बातें पहुंचाने का एकमात्र साधन रहे पत्र और पत्र पेटियां, अब अपने अस्तित्व को बचाने की जुगत में लगे हैं। हालांकि, इनका पूरी तरह से उपयोग बंद नहीं हुआ है, पर इनका इस्तेमाल न के बराबर होना इनके अस्तित्व की दुहाई दे रहा है। एशिया की सबसे घना स्लम इलाका मुंबई का धारावी इलाका यूं तो शहर के अन्य इलाकों के मुकाबले काफी पिछड़ा है, जब शहर के अन्य इलाकों में संचार माध्यम पूरी तरह से छा गए, उसके बाद ही धारावी में इसका आगाज हुआ था।
कम होती जा रही हैं पत्र पेटियां
बताया जाता है कि यहां पहले पत्र पेटियों की भरमार थी। एक समय में इस इलाके में एक दर्जन से अधिक पत्र पेटियां थीं, लेकिन उपयोग के अभाव में मौजूदा समय में मात्र ९ पत्र पेटियां ही रह गई हैं, जिनकी रंगाई-पुताई कुछ एकाध डेढ़ महीने पूर्व ही की गई है। इस बारे में धारावी पोस्ट ऑफिस की पोस्ट मास्टर श्रीमती सायली ढाकोडकर का कहना है कि मौजूदा समय में पूरे धारावी इलाके में कुल ९ पत्र पेटियां हैं, जिनका इस्तेमाल न के बराबर होता है। ऐसे में इनकी समय-समय पर रंगाई आदि का काम कर इनकी उम्र को बढ़ाए जाने का काम किया जाता है। अभी एक डेढ महीने पूर्व ही इनकी रंगाई-पुताई तथा मरम्मत की गई हैं।
कम हो रहा है पत्र व्यवहार
गौरतलब है कि तेजी से बढ़ती तकनीकी की इस दुनिया में जहां मेल, व्हॉट्सऐप, सोशल मीडिया आदि ने जगह ले ली है, वहीं दूसरी तरफ करीब दो दशक पूर्व तक लोगों को एक-दूसरे से जोड़े रखने में अहम भूमिका निभाने वाले पत्र व्यवहार का सिलसिला काफी हद तक कम हो चुका है। रही-सही कसर निजी कुरियर कंपनियों ने पूरी कर दी है। हालांकि, डाक विभाग समय-समय पर अपने आप को तकनीक से लैस बनाने में जुटा रहता है, पर कभी पत्र व्यवहार का प्रतीक रहे डाक विभाग की ये पत्र पेटियां अपने अस्तित्व को बचाने में जुटी हुई हैं।