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आई ट्रांसप्लांट हुआ हाईटेक … दो टांकाें में ही ट्रांसप्लांट हो रहा कॉर्निया! एक आंख से मिल रही छह को रोशनी

धीरेंद्र उपाध्याय / मुंबई
मुंबई के नायर अस्पताल में आई ट्रांसप्लांट हाईटेक हो गया है। इसके तहत अब अस्पताल का आई डिपार्टमेंट नेत्रहीनों में कॉर्निया की एक लेयर को ट्रांसप्लांट करके उनकी रोशनी को लौटा रहा है। अत्याधुनिक उपकरणों से की जा रही इस ट्रांसप्लांट सर्जरी में मरीज को केवल दो ही टांके लगाए जाते हैं। इस तरह से यह प्रक्रिया बहुत ही सुरक्षित है। नायर अस्पताल में आई डिपार्मेंट की प्रमुख नैना पोतदार ने कहा कि सर्जरी में अत्याधुनिकता के कारण छह वर्ष पहले इस ट्रांसप्लांट सर्जरी के दौरान रिजेक्शन लेवल ४० से घटकर सात फीसदी पर पहुंच गया है, जो अपने आप में ही एक बड़ी उपलब्धि है।

वरिष्ठ नेत्र विशेषज्ञ डॉ शशि कपूर ने कहा कि कॉर्निया आंख की सबसे अगली परत होती है, यह परत पारदर्शी होती है। इस परत में दोष अंधापन का कारण बन सकता है। कभी-कभी नजर कमजोर होती है तो कभी नजर पूरी चली जाती है।

ट्रांसप्लांट सर्जरी में नहीं निकाली जाती आंखें
डॉ. पोतदार ने कहा कि लोगों को लगता है कि आंखों का ट्रांसप्लांट करते समय आंखें निकाल दी जाती हैं, लेकिन ऐसा नहीं है। हम केवल आगे के लेयर को निकाल कर उसे ही बदलते हैं, जो कुछ ही मिनट का काम होता है और इसमें महज टांके लगते हैं। हालांकि, यदि पूरा कॉर्निया बदलना होता है तो १६ टांके लगाने पड़ते हैं। उन्होंने कहा कि अस्पताल में वर्ष २०२२ से लेकर अगस्त २०२४ तक कॉर्निया के ८८ ट्रांसप्लांट किए जा चुके हैं। इस समय हर महीने ८ से १० लोग ट्रांसप्लांट के लिए रजिस्टर कर करवा रहे हैं।

३३ फीसदी घटा रिजेक्शन रेट
विभाग की सहायक प्राध्यापक डॉक्टर ट्विंकल चौकसी ने कहा कि पांच साल पहले कॉर्निया ट्रांसप्लांट में रिजेक्शन रेट जहां ४० फीसदी पर था, वहीं यह रेट ३३ फीसदी घटकर साथ फीसदी पर पहुंच गया है।

साल में होते हैं ५०० आई डोनेशन
आई बैक कोऑर्डिनेशन एंड रिसर्च सेंटर की मैनेजर सुचित्रा ने कहा कि हमारे यहां साल भर में ४०० से ५०० कॉर्निया डोनेशन होते हैं, जिसमें से महज ७५ पर्सेंट यानी ३५० से ४०० इस्तेमाल में आते हैं। उन्होंने कहा कि १ महीने में ४० से ५० आई ट्रांसप्लांट होते हैं, जबकि ७० से १०० वेटिंग लिस्ट पर हैं।

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