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फ्लेमिंगो का भविष्य खतरे में! …कीचड़ और काई से भरी नेरुल की झील

सामना संवाददाता / मुंबई
नेरुल स्थित ३० एकड़ में फैली डीपीएस फ्लेमिंगो झील, जो कभी फ्लेमिंगो के लिए बेहतरीन आवास थी। अब कीचड़ और काई से भरकर बुरी तरह बिगड़ चुकी है। पर्यावरणविदों की शिकायत पर मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने सुस्त कदम उठाया है। उन्होंने वन विभाग के सचिव वेणुगोपाल रेड्डी को ‘एक्शन मोड’ में आने का निर्देश दे दिया है। हालांकि, यहां सवाल भी उठता है कि जब तक सरकार कार्रवाई करेगी, तब तक क्या फ्लेमिंगो दूसरी जगह नहीं चले जाएंगे।
सिडको के किए जा रहे विकास कार्यों ने जलधारा की दिशा ही बदल दी। इससे फ्लेमिंगो के लिए एकदम उपयुक्त स्थान खत्म हो गया। पर्यावरणविदों ने इसे लेकर शिकायत की थी। इसके बाद मुख्यमंत्री की आंख खुली और वन विभाग को कार्रवाई का निर्देश दिया। अब देखना यह है कि फ्लेमिंगो को इस क्षेत्र से बाहर जाने के लिए मजबूर करनेवाली यह स्थिति क्या सरकार के लिए सुधार योजना का हिस्सा बन पाएगी? टीसीएफएस (ठाणे क्रीक फ्लेमिंगो अभयारण्य) के पास अब फ्लेमिंगो के लिए जगह कम होती जा रही है। अब ये पक्षी क्या करेंगे? क्या उन्हें हवाई अड्डे के आस-पास के मैदानों में लैंडिंग करनी पड़ेगी? यह एक ऐसा सवाल है, जिसे सरकार ने गंभीरता से नहीं लिया। नेटकनेक्ट फाउंडेशन के निदेशक बी. एन. कुमार ने इस मुद्दे पर चिंता जताते हुए कहा कि अगर जलधाराओं में रुकावट जारी रही तो फ्लेमिंगो के लिए यहां रहना सुरक्षित नहीं होगा।
खारघर क्षेत्र की संयोजक ज्योति नाडकर्णी का कहना है कि फ्लेमिंगो की वापसी की राह में जलाशय की स्थिति सबसे बड़ी बाधा बन गई है। उन्होंने इसे ‘सरकारी कार्रवाई की धीमी प्रक्रिया’ बताया।

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