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समुद्र विज्ञान संस्थान ‘एनसीएससीएम’, ‘सीडब्ल्यूपीआरएस’ की चापलूसी, वाढवण पोर्ट के लिए एनओसी पर सवाल!

सामना संवाददाता / ठाणे
हजारों भूमिपुत्रों एवं मछुआरों को बर्बादी के कगार पर पहुंचानेवाले वाढवण बंदरगाह के विस्तार को आखिरकार अनापत्ति प्रमाणपत्र मिलने से पूरे पालघर जिले में गुस्से की लहर दौड़ गई है। हालांकि, इसकी वजह से समुद्र विज्ञान संस्थान, एनसीएससीएम और सीडब्ल्यूपीआरएस की चापलूसी उजागर हो गई है। इन तीनों संगठनों द्वारा केंद्र सरकार सहित डहाणू तालुका पर्यावरण संरक्षण प्राधिकरण को दी गई रिपोर्ट गलत है, ऐसा चौंकाने वाला खुलासा हुआ है। पर्यावरण विशेषज्ञ एवं इस विषय के विद्वान प्रा. भूषण भोईर ने यह खुलासा किया है और उनके आरोपों से हड़कंप मच गया है। गलत रिपोर्ट के आधार पर वाढवण बंदरगाह के निर्माण की अनुमति दी ही कैसे, ऐसा सीधा सवाल भूमिपुत्रों ने किया है।
वाढवण बंदरगाह के निर्माण के कारण पर्यावरण को भारी नुकसान होगा और आशंका है कि समुद्री जल संपदा को भी भारी क्षति पहुंचेगी, जबकि मत्स्य उद्योग के खत्म होने से कई भूमिपुत्र बर्बाद हो जाएंगे। इसके खिलाफ एकजुट हुए स्थानीय लोगों ने ‘वाढवण बंदरगाह विरोधी संघर्ष समिति’ का गठन किया था। वर्ष १९९८ से बड़े-बड़े आंदोलन और विरोध प्रदर्शन हुए। उन्होंने बंद, मोर्चे, भूख हड़ताल जैसे अलग-अलग तरीके अपनाए, लेकिन केंद्र सरकार का दिल नहीं पसीजा। इस बंदरगाह का अध्ययन करने के लिए एनसीएससीएम (नेशनल सेंटर फॉर सस्टेनेबल कोस्ट मैनेजमेंट), एनआईओ (नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ओशनोग्राफी) यानी इंस्टीट्यूट ऑफ ओशनोग्राफी और समुद्री धाराओं का अध्ययन करने वाले सीडब्ल्यूपीआरएस को नियुक्त किया गया था। बंदरगाह के संबंध में विस्तृत अध्ययन के बाद, तीनों संगठनों ने केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय और डहाणू तालुका पर्यावरण संरक्षण प्राधिकरण को एक रिपोर्ट सौंपी। इस रिपोर्ट में चापलूसी की गई है और कई गलत बातें कही गई हैं, लेकिन सच्चाई कुछ और है, ऐसा पर्यावरणविद् प्रा. भूषण भोईर कहते हैं। इस झूठी रिपोर्ट के आधार पर, डहाणू तालुका पर्यावरण संरक्षण प्राधिकरण ने ३१ जुलाई को ‘जेएनपीए’ (जवाहरलाल नेहरू पोर्ट अथॉरिटी) को सशर्त अनापत्ति प्रमाणपत्र जारी किया। यह आदेश करीब २०८ पन्नों का है।
तत्कालीन अध्यक्ष ने नहीं दी थी अनुमति
प्राधिकरण के तत्कालीन अध्यक्ष न्यायाधीश चंद्रशेखर धर्माधिकारी ने पहले बंदरगाह बनाने की अनुमति देने से इनकार कर दिया था। लेकिन केंद्र सरकार की जिद के कारण डहाणू पर्यावरण संरक्षण प्राधिकरण को भंग करने की साजिश रची गई। परंतु ‘वाढवण पोर्ट विरोधी संघर्ष कृति समिति’ द्वारा अदालती लड़ाई लड़ने के कारण प्राधिकरण कायम रहा।

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