मुंबई और इसके आसपास के इलाकों में बारिश के बावजूद पानी की कटौती की समस्या एक गंभीर संकेत है। खासकर मीरा-भायंदर जैसे क्षेत्रों में, जहां पानी की उपलब्धता होने के बावजूद लोगों को पानी की किल्लत का सामना करना पड़ रहा है। मीडिया की रिपोर्ट के अनुसार, झीलों में पर्याप्त पानी होने के बावजूद जल आपूर्ति में कटौती हो रही है, जो हमारे जल प्रबंधन की खामियों की ओर स्पष्ट संकेत करती है। यह स्थिति जल संसाधनों के कुशल प्रबंधन में हमारी असफलता को उजागर करती है।
जब झीलें ओवरफ्लो हो रही हैं, तो पानी की कटौती से लोग परेशान क्यों हैं? यह समस्या बताती है कि हमारे देश में जल संसाधनों का वितरण और प्रबंधन किस हद तक असंतुलित है। केवल विकास की बातें करना पर्याप्त नहीं है; अगर बुनियादी सुविधाओं जैसे पानी का प्रबंधन सही ढंग से नहीं हो पाता, तो विकास के सारे प्रयास व्यर्थ हो जाते हैं। ठाणे को मीरा-भायंदर के हिस्से का पानी देने की चर्चा हो रही है, लेकिन सवाल यह है कि क्या एक क्षेत्र की जरूरतों को दूसरे क्षेत्र की कीमत पर पूरा करना सही समाधान है?
जल संसाधनों के प्रबंधन में असफलता का दायरा केवल मीरा-भाईंदर तक सीमित नहीं है। देश के अन्य हिस्सों में भी यही समस्या देखने को मिलती है। चाहे वह महाराष्ट्र हो, राजस्थान या फिर दिल्ली – हर जगह जल संकट गहरा रहा है। इस संकट का मूल कारण जल प्रबंधन में सही नीतियों का अभाव है। हमें यह समझना होगा कि विकास की नींव में जल संसाधनों का समुचित प्रबंधन सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यदि इस पर ध्यान नहीं दिया गया, तो भविष्य में देश के कई हिस्सों में पानी की लड़ाई गंभीर रूप ले सकती है।
राजनीतिक दलों की भूमिका पर भी गंभीर सवाल खड़े होते हैं। पिछले कई दशकों में जो दल सत्ता में रहकर विकास के महत्वपूर्ण कार्य कर चुके हैं, वे आज विपक्ष में केवल विरोध तक सीमित क्यों हैं? विरोध करना तब तक सार्थक नहीं है, जब तक वह विकास की दिशा में किसी ठोस पहल का मार्ग प्रशस्त न करे। सत्ता में रहकर जो अनुभव और ज्ञान उन्होंने अर्जित किया है, उसे विपक्ष में रहते हुए भी जनता के हित में उपयोग में लाया जा सकता है। लेकिन आज की स्थिति यह है कि विपक्षी दल विरोध तो करते हैं, लेकिन कोई ठोस कार्य योजना प्रस्तुत करने में असमर्थ नजर आते हैं।
जल प्रबंधन जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर सभी राजनीतिक दलों को मिलकर काम करने की जरूरत है। जनता को भी अब जागरूक होकर राजनीतिक दलों से केवल विरोध नहीं, बल्कि ठोस विकास योजनाएं और उनका क्रियान्वयन मांगना चाहिए। यह स्थिति सिर्फ एक राजनीतिक दल या सरकार का मसला नहीं है, बल्कि यह भविष्य के विकास की दिशा तय करने का सवाल है।
अंततः, जल प्रबंधन की असफलता विकास के सपने को अधूरा छोड़ देगी। अगर इसे प्राथमिकता नहीं दी गई, तो हम एक ऐसी स्थिति में पहुंच जाएंगे, जहाँ हमारे पास विकास की बातें होंगी, लेकिन विकास की वास्तविकता नहीं। जनता की जागरूकता ही वह ताकत है, जो राजनीतिक दलों को सही दिशा में कार्य करने के लिए प्रेरित कर सकती है।