मुख्यपृष्ठस्तंभउड़ता तीर : अलख निरंजन... डबल इंजन-फुल मनोरंजन!

उड़ता तीर : अलख निरंजन… डबल इंजन-फुल मनोरंजन!

प्रदीप मिश्र
किसका नुकसान?
प्रयागराज की पुण्य धरा पर १४४ वर्ष बाद महाकुंभ से चहुंओर उल्लास है। सुखद अहसास के संग-संग जिंदगी बेहतर होने का आभास है। सनातन सुंदर और सत्य है। ग्रंथों और पुराणों में लिखा यही तथ्य है। संतों के प्रवचनों का सार और सर्वकालिक कथ्य है। संयोग है कि गणतंत्र का गौरव और गरिमा भी इसी दौरान याद आएगी। स्वतंत्रता की सोच, समझदारी, सम्मान और सियासत की याद दिलाएगी। कोई कह रहा है कि माफ करो। फिर भी चीखने-चिल्लाने वालों में कमी नहीं आ रही है-इंसाफ करो। हिसाब मांगनवालों की आवाज है-गंगा-यमुना को बराबरी से साफ करो। एक और बात गूंज रही है-सूरत कुछ भी हो सच कहने से कभी मत डरो। फिर भी क्या-कुछ कहा जाए? कहे बिना क्यों नहीं रहा जाए? इसके लिए किसी की सलाह नहीं चाहिए। अपने की भी परवाह नहीं चाहिए।
अब तक एक पीढ़ी जवान हो गई और बाकी ने २१वीं सदी का चौथाई हिस्सा जी लिया है। प्रसन्नता, पराक्रम, पुरुषार्थ, परमार्थ और प्रमाद जैसे भारी-भरकम शब्दों के साथ-साथ जलालत, शामत, खुशामद, भय-भूख-भ्रष्टाचार से मुक्ति के वादों का किस्सा पी लिया है। अगर बार-बार सुनने-चुनने का मौका नहीं मिलेगा तो ये जान लीजिए। जनता जनार्दन से भी अधिक आपका नुकसान खुद का होगा, मान लीजिए।
दूसरी ओर बाल बुझकक्कड़, गाल बुझकक्कड़, लाल बुझक्कड़ और हर हाल बुझक्कड़ इन दिनों बढ़ गए हैं। लगता है कि सिर पर चढ़ गए हैं। शोहरत और दौलत की आड़ में अड़ गए हैं। इसके अलावा जो जिंदा हैं, सांसों की सलामती के साथ भी मान लो सड़ गए हैं। अभी तो २५ की शुरुआत है।११ महीने पहले ही दिखने लगी औकात है। २४ के जख्म इतने भी बेरहम नहीं थे। किसी ने नहीं समझाया, अकेले हम नहीं थे।
झूठ पर झूठ ही सत्य!
चुनाव कितना हसीन होता है। नई-नई जानकारियों की मशीन होता है। दिल्ली में चुनाव है। आप का प्रभाव है। इसलिए ‘वैâग’ का स्वैग आया। शराब के घाटे पर ब्योरा आया। दिन में घोषणा हुई या रात में पैâसला, किस्तों में दी जा रही रेवड़ी समझो, ये रेवड़ा है। अब जो भी इसे कल्याणकारी बताए, समझ लो बेवड़ा है। दिमाग मत लगाओ, यमुना और दिल्ली के नालों में गंदा पानी नहीं, इत्र और केवड़ा है। हरियाणा में यमुना अविरल और निर्मल है। यहां उसकी धरा पूर्णत: उर्वरा और धारा कलकल है। हरियाणा और महाराष्ट्र के बाद हौसला बुलंद है। आधे-अधूरे राज्य का दरवाजा क्यों बंद है। आठ फरवरी तक सोचते रहिए। उसी दिन सबसे कहिए। हालांकि, दिल्ली में सामान्य नागरिक को हर दिन व्हॉटसऐप से ज्ञान मिलता है-‘प्रश्नपत्र सी है जिंदगी जस की तस स्वीकार्य, कुछ भी वैकल्पिक नहीं सभी प्रश्न अनिवार्य।’ दरअसल, यहां दिवाली मनाने वालों से दिवालिये ज्यादा हैं। उत्तर देने वालों का संकट हैं, न पूछनेवाले सवालियों से बड़ा और प्यारा प्यादा है।
चुनावी माहौल में हल्ला-गुल्ला होना ही चाहिए। किसी के लिए मद्य संग चखना और किसी के लिए वादों का रसगुल्ला होना चाहिए। रेवड़ी तो पहले से ही इतनी बांटी जा रहीं हैं। दृष्टिबाधित के घर में भी इनकी औलादें डांटी जा रहीं हैं। चूंकि बांटनेवाले समर्पित और सामर्थ्यवान हैं इसलिए सबको लगता है कि उनके पास सभी समस्याओं के समाधान हैं। वादों और दावों में कड़ी मेहनत, दूरदृष्टि और पक्के इरादे का व्यवधान आ रहा है। विश्राम के बाद बहुत जल्दी-जल्दी सावधान आ रहा है। एक अकेला बोल रहा है। परत-दर-परत राजकाज के रहस्य खोल रहा है। रामराज्य के नेपथ्य में जरूर कुछ ऐसा है। नहीं होना चाहिए, वैसा है। सूरत-ए-हाल यह कि ‘स्ट्रेट’ ‘स्ट्रेट फारवर्ड’ को डीप स्टेट बताना रीतिकाल का पहला सबक है। स्वयं जितना चाहो बको, विरुद्ध बोले तो बेखौफ होकर बता दो बकबक है।
देश, काल और परिस्थिति बदल रही है। सच की उम्र भी ढल रही है। असत्य पर सत्य की जीत केवल विजय दशमी का प्रतीक है। गलत शब्दकोष से गायब, उसकी जगह सिर्फ ठीक है। झूठ पर झूठ यानी झूठ को शत-प्रतिशत सत्य बताना जोखिम नहीं समझा जाता है। ताज्जुब, जख्म पर और जख्म देना जोखिम के खाते में नहीं आता है। वैसे, जान का जोखिम तो सरहद पर जवान ही उठाते हैं। बाकी सब इस क्षण के लिए तरसते-तड़पते हुए मर जाते हैं।
‘शी’ के साथ यारी!
गणतंत्र दिवस पर हमारी सैन्य क्षमता का पता दुनिया को चलेगा। फिर भी मीडिया में कई की घड़ी, सुई और मीटर पाकिस्तान पर ही चलेगा। न जाने कब समझ आएगा कि मुकाबला सम्राज्यवादी चीन से है। बिल में घुसा सांप है, निकालना देशी बीन से है। पूछना चाहिए, चीन से आयात क्यों बढ़ रहा है? भारत का निर्यात लायक माल भी सड़ रहा है? ‘शी’ के साथ ये वैâसी यारी है? देश के साथ गद्दारी है? आखिरकार, बातों में ही खुद्दारी है? बरसों से थर-थर डर रहा था जो गुरु। मजबूती के बाद तो बिछ ही गया वो गुरु। अगर अब भी हो जाए शुरू, इधर की आंख नहीं झुकेगी। दूसरी तरफ की हरकत भी नहीं रुकेगी। पर ये सब तब तक नहीं होनेवाला। जब तक रहेगा दूसरों को जगाकर खुद सोने वाला। जिन्हें देना है देश को भरोसा। उन्होंने स्वयं को सर्वत्र शक्तिमान के रूप में ही परोसा। विश्वास बहाली भी इनकी ही जिम्मेदारी है। स्वदेश में शिक्षा, स्वास्थ्य और सुरक्षा इनकी पहरेदारी है। उन्हें तो जुमलों से हमलों की आदत में मजा आने लगा। आदेश-निर्देश मिले और इसके लिए ही मंच सजाया जाने लगा। अब हर दीवार पर जुमलों की इबारत बन गई है। गरीब के घर में बहुमंजिला इमारत बन गई है। राजनीति को धर्म से जोड़ दिया गया है। धर्म की धारा को हिंदुत्व की ओर मोड़ दिया गया है। आगे देखना है, क्या-क्या रंग दिखाए जाएंगे। नवंबर से पहले राजनीतिक उतार-चढ़ाव के ढोंग संग ढंग सिखाए जाएंगे।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं)

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