प्रदीप मिश्र
सब लफ्फाजी है
जो उड़नखटोले से उतरते नहीं, रैलियों में नजर आने लगे हैं। जगह-जगह एक ही भाषा में लुभाने लगे हैं। पुरानी रेवड़ियों की याद दिलाकर नए वादों की सुइयां चुभा रहे हैं। ज्यादा नहीं समझना है, इतना ही मान लो सर्कस में झुला रहे हैं। एक दशक में जो भी सुविधाएं मिलीं,
उनको दिल-दिमाग से भुला रहे हैं। देश के २० से ज्यादा राज्यों में उनकी धमक और हनक है। तालियों वाला भाषण दे रहे हैं। अपनी छोटी रेवड़ी को भी बड़ा बताते हुए आश्वासन दे रहे हैं। कह रहे हैं कि तख्त बदल देंगे, ताज बदल देंगे। बदले में सुनाई पड़ रहा है कि छोड़िए, कुछ दिन भी दे दिए तो विघटन से बचे समाज को भी बदल देंगे। फिर भी वह ‘अकेला’ सब पर भारी पड़ने के लिए ही कर रहा बयानबाजी है। सच कुछ नहीं, सब लफ्फाजी है।
बायोलॉजिकल हैं तो क्या हुआ, ‘चिराग तले अंधेरा…’ और विद्वानों के मुख से गालियां… रोजाना की कसक है। सोचते-समझते हैं, दो बार हो चुकी, तीसरी बार बड़ी बेइज्जती सहन नहीं होनी चाहिए। दिल्ली पर देश-विदेश के सबसे लोकप्रिय फेस और बेस का खर्च फिजूल में वहन नहीं होना चाहिए। शेखचिल्ली को हर हाल में दिल्ली चाहिए। अपने घर और दरवाजे पर बूढ़ा शेर भी नहीं, वफादार कुत्ता या भीगी बिल्ली चाहिए।
सुना तो पहले से ही जाता रहा है। दिल्ली से सबका कोई न कोई नाता रहा है। यहां दिमाग ज्यादा चलता है। दिल तो है दिल…शायद इसीलिए यहां आने के बाद मचलता है। अब चुनाव है। अलग तरह का दबाव है। दिमाग लगाएंगे तो भी दिल्लगी करेंगे ही। वोटिंग के समय तक दुआ-सलाम और चरण बंदगी करेंगे ही। पांच फरवरी को जांच, सांच और आंच पर जनता पैâसला सुनाएगी। आठ को जिसकी वाट लगेगी, वो पार्टी चिल्लाएगी। ठाठ वाली मुस्कुराएगी और जश्न मनाएगी। बार-बार हारने वाले जीत गए तो गंदगी पैâलाएंगे। राजधानी बेचने के लिए हाथ मिलाएंगे। २६ साल बाद अवसर हाथ आएगा, फिर भला कोई क्यों नहीं ललचाएगा। यही तो खतरे की घंटी है। दूसरी तरफ वादे पूरा होने की टेस्टेड गारंटी है इसीलिए सबसे बड़ा सवाल है। अगले पांच साल भी होते रहना बवाल है।
हर गुनाह माफ होगा?
दिल्ली में मंगल सिर्फ मंगलवार को होता है। दंगल में वार-पलटवार हर वार होता है। आनेवाले दिनों में देखा जाएगा। किसी को सहेजा और किसी को फेंका जाएगा। फिर भी सांसद से पूर्व सांसद और विधानसभा उम्मीदवार बनने तक रमेश बिधूड़ी द्वारा दानिश अली, प्रियंका गांधी, आतिशी के अपमान का बदला वैâसे लिया जाएगा। आनेवाले दिनों में रोजाना चूर-चूर होनेवाली संसदीय और सामाजिक मर्यादाओं का केंद्रीय चुनाव आयोग द्वारा संज्ञान पहले ही जैसे लिया जाएगा। क्या सत्तापक्ष का फिर हर गुनाह माफ होगा? बाकी के साथ किस हद तक इंसाफ, यह भी साफ होगा। केंचुआ ने फिर बार-बार बदलने वाला रंग दिखा दिया है। आरोपों पर गवाही के लिए किताबों के पन्ने और उनका अंग-अंग दिखा दिया है। पहले की तरह एक बार फिर शायरी हुई, सफाई भी दी। आत्मविश्लेषण का ढोंग किया, ईमानदारी की दुहाई भी दी। विश्वसनीय झूठ बताने वाली मीडिया, सोशल मीडिया और यूट्यूब की खिंचाई की। खुद की खूब पीठ ठोकी और टीम को बधाई दी। इस बारे में इन पंक्तियों के लेखक ने एक बार लिखा था- ‘उसके झूठ से जाहिर होने लगा है राजनीति का माहिर होने लगा है।
मुस्कुराहट से अब तक इतनों को ठगा है। नहीं मालूम उसे, वो कितनों का सगा है इसलिए निश्चिंत होकर नियम-कायदा बनाए। फर्जी मतदाता बढ़वाए। वास्तविक वोट कटवाए। भाग्यविधाता पार्टी को हरियाणा और महाराष्ट्र के तर्ज पर फिर चुनाव जिताओ।
प्रयागराज पधारिए
ईवीएम की निष्पक्षता के गुण सबको सुनाओ। मनुष्य का जन्म मिला है, अतएव जहां से रुखसती से पहले कुछ कर जाओ। फिर आपको तो राज्यसभा में भी जाना है। वहां भी आपके लिए खजाना है। पूर्व में भी औकात से ज्यादा मिला है इसलिए और पाना है। मालूम है कि या फिर आदतन भूल गए हो। ‘अच्छे दिन’ देखे बिना ही फूल गए हो। टूजी पर एक लाख ७६ हजार करोड़ का कितने दिन और हौवा खड़ा कर दिया गया था। पार्टी ने किसी की भी राय लिए बिना उच्च सदन में बुद्धिमान के नाम पर बड़ा कर दिया गया था।
चुनाव की घोषणा से पहले पक्की संभावना थी। जैसी मौजीलाल और उनकी टीम की दिली भावना थी। सीएजी, जिसे कुछ दिन से ‘कंट्रोल्ड एकॉर्डिंग गवर्नमेंट’ की रिपोर्ट में कुछ चर्चित नाम आने और इनके द्वारा किए गए इंतजाम की आशा थी।
बड़े शहरों में बड़े पैमाने पर प्रेस कॉन्प्रâेंस और परिचर्चा की प्रत्याशा थी। अब शीशमहल का भी नाम लिया जा रहा है। आंकड़ों के सहारे बदनाम किया जा रहा है। दस साल में अब से पहले कब सुना था। इतने पैसे के काम का मूल्य इतने गुना था। दिल्ली के द्वारका में एक्सप्रेसवे और नितिन जयराम गडकरी के अलावा सीएजी की रिपोर्ट पर चर्चा का जोर नहीं दिखा। एकबारगी लगा कि आंकड़े महीन हैं, शायद इसलिए ही खर्चा ज्यादा नहीं दिखा। एक दशक से रिपोर्ट ही नहीं आती है। अगर ईमानदारी का अक्स खाता-बही में भी आ गया है। फिर तनिक भी संदेह मत करिए, मान ही लीजिए कि ‘रामराज्य’ आ ही गया है। फिर भी भ्रम नहीं मिटे तो यथाशीघ्र प्रयागराज पधारिए। स्नान, दान और ध्यान कर पुण्य स्वर्ग के लिए संचित करें, पापों को जल्द से जल्द नरक में सिधारिए।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं)