मुख्यपृष्ठस्तंभउड़ता तीर : अगला साल बहुत खास है...सबको ज्यादा की आस है

उड़ता तीर : अगला साल बहुत खास है…सबको ज्यादा की आस है

प्रदीप मिश्र

डंडा, झंडा और एजेंडा
आंग्ल नववर्ष से ठीक पहले अचानक सन्नाटा हो गया। कोई ज्यादा खरा, कोई खोटा हो गया। योजना थी २०२४ में २४० की टीस मिटाएंगे। २०२५ में दिल्ली और बिहार में सरकार बनाएंगे। खुशी तो खुद की उपलब्धियों की भी मनानी है। अपने अलावा सत्ता का सपना देखने वालों की बाट भी लगानी है। अगले महीने दिल्ली दिलवालों को चुनेगी या दिमागवालों की सुनेगी। रोजाना सनसनी पैâलाई जा रही है। कुछ भुलाया जा रहा है, कुछ यादें दिलाई जा रहीं हैं।
डॉ. आंबेडकर के नाम पर बांटने-काटने और डांटने से कुछ जिम्मेदार दिखाने के लिए सन्न हैं। अंदर से बहुत ज्यादा प्रसन्न हैं। कारण कुछ बहुत खास नहीं, दिल्ली में चुनाव आसन्न हैं। इसीलिए नया साल जोरदार ढंग से मनाएंगे। जो भी गम हैं, उनको एक साथ भुलाएंगे। एक दिन की ही तो बात है गम भुलाने के लिए। बाकी दिन तो हैं ही गले लगाने के लिए। बीती ताहि बिसारि दे… अपना फंडा है। याद रखना, डंडा, झंडा और एजेंडा है।
कष्ट की बात है। आपस में घात-प्रतिघात है। मुहूर्त की उपेक्षा से सबसे बड़ी पंचायत में हर बार कुछ न कुछ हादसा हो जाता है। तमिलनाडु से लाया गया राजदंड ‘सेंगोल’ मूकदर्शक, प्रत्यक्षदर्शी और तमाशबीन रह कर अपनी और व्यवस्था की बेबसी पर कभी रोता तो कभी मुस्कराता है। पुराने संविधान की पढ़ाई काम नहीं आई। आरोप और सफाई किसी भी देशवासी के दिमाग में नहीं समाई। माननीयों के ‘मूड और मुंह की दिखाई’ यानी वीडियो किसी ने नहीं बनाई। न ही संसद के कर्ता-धर्ताओं ने अब तक दिखाई। क्या लगता है कि इससे कितनी हो जाती जग हंसाई। फिर भी सब दूसरे से ही कह रहे हैं कि ऐसे तो न करते भाई। इस कारण बांग्लादेश में हिंदुओं पर मुसलमानों का अत्याचार पीछे हो गया। इंसाफ की दरकार का इंतजार नीचे हो गया।
अब स्वागत नववर्ष और स्वागत नव हर्ष कहते हुए घायल माननीय बाहर लाए जाएंगे। चुनाव में चेहरे दिखाए जाएंगे। साथ ही, २०२५ में सबको सौगात देनी है। शह देकर असंतुष्टों को मात देनी है। जाते हुए साल में संभल में सत्यव्रत पुलिस चौकी बनाई जा रही है।
दिव्यांग सरकार
नए साल का जश्न इसलिए भी मनाएंगे, ‘हैप्पी न्यू ईयर’ के साथ कल्कि अवतार में देर नहीं है। भले ही कहने के लिए थोड़ी देर हो, पर अंधेर नहीं है। ऐसी कोई बात नहीं है। फिलहाल पूरी औकात नहीं है। दिव्यांग सरकार का ये बड़ा कष्ट है। ये तो पूरी तरह स्पष्ट है। माहौल गरमाने के लिए नए साल से पहले चाचा पर हमला कर दिया गया है। बीपीएससी के परीक्षार्थियों के मन में जुमला भर दिया गया है। २०२५ में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का शताब्दी वर्ष भी है। अटल जी का इतना ही संघर्ष भी है। डॉ. मनमोहन सिंह का कमोवेश इतना ही विमर्श है।
दूसरी ओर लगातार तीसरे कार्यकाल का विषाद मिश्रित हर्ष है। ऐसे में उत्कर्ष के लिए आगत वर्ष का स्वागत किया जाएगा। निष्कर्ष के तौर पर भक्ति-भाव और धूप, दीप और नैवेद्य से स्वागत किया जाएगा।
महंगाई, भ्रष्टाचार, बेईमानी, पक्षपात, अशिक्षा, कुपोषण, गरीबी और बेरोजगारी पर जितना राजनीतिक घमासान होता है। जनता से जुड़े मुद्दों का उतना ही अवसान होता है। फिर भी सब मिलकर इसे दुत्कारते हैं। शब्दों की उपयोगिता को धिक्कारते हैं। नेता राजनीति के लिए मनचाहे ढंग से जीवित रखते हैं और मारते हैं। नेता जताते हैं कि वे हर वक्त देश की चिंता करते हैं। इसीलिए विधि-विधान, निंदा- निदान, वमन और दमन के साथ शमन के मुद्दे तैयार रखते हैं। वे इसी तरह खुद को बचाने के लिए कोई न कोई हथियार रखते हैं।
गलत ही शोर मचाता है
भले ही अब बात-बात पर बढ़ती बातों से निजात है, व्यस्तता बढ़ गई है। पूरी व्यवस्था या तो सड़ गई है या जमीन में गहरे तक गड़ गई है। नतीजा, लानतें देने वाले भी डर गए हैं। जिन्हें घूर ही दिया गया, समझो वे मर गए हैं। एक-दो के बोलने से ही एक-दो का खून खौलता है। एक-दो की तिरछी नजर से ही सिंहासन डोलता है। फिर भी दिखाने के लिए हालचाल अच्छा है। क्यों करें मलाल, जब हर साल और हाल अच्छा है। सभी सवाल अच्छे नहीं होते हैं। सारे जवाब भी सच्चे नहीं होते हैं। सच का तो किसी को पता नहीं है। पर यह तय है कि वह लापता भी नहीं है। कहावत है- ‘जो सही रहता है, वह शांत रहता है और जो गलत होता है वो शोर मचाता है अपने आप को सही साबित करने के लिए।’ सबकी समझ में यह आना और समाना मुश्किल है। दिमाग की राय अलग होती है और दूसरी राय रखता दिल है। याद रखना होगा- ‘कश्तियां बच जातीं हैं तूफान में किंतु हस्तियां डूब जातीं हैं अभिमान में…।’ यही नहीं मुश्किल तब और बढ़ जाती है जब खुद को ये जानकारी दिखने लगती है- ‘बाहर रिश्तों का मेला है। भीतर हर शख्स अकेला है…यही जिंदगी का झमेला है..!’
हिंदुओं पर ‘उपकार’
फिर भी २०२५ के लिए जबरदस्त तैयारी है। शुरुआत में ही २० जनवरी की अमेरिका जाने की बेकरारी है। नेह निमंत्रण मिलने का इंतजार है। दरअसल, नहीं मिला तो बदनाम होंगे। सीधे-सीधे तो बदला तो क्या लेंगे, तरह-तरह के इंतकाम होंगे। चीन से निर्यात और जिनपिंग से नजदीकी बढ़ा लेंगे। आयात कम है फिर भी ट्रंप के सामने बाहें चढ़ा लेंगे। शेख हसीना का सत्कार करते रहेंगे। बांग्लादेश के हिंदुओं पर ‘उपकार’ करते रहेंगे। नियमानुसार प्रत्यर्पण का दम भरते रहेंगे। बांग्लादेश के हिंदुओं से क्या लेना-देना, थोड़े से ही तो हैं जो और मरते रहेंगे। तब तक २६ जनवरी की गणतंत्र दिवस की परेड के लिए किसी छोटे प्रतिद्वंद्वी को बुला लेंगे। इसके बाद चैप्टर क्लोज हो जाएगा और दोनों दोस्ती की खातिर दुखद प्रकरण को भुला देंगे। कहा और लिखा भी जा चुका है- ‘शब्द से खुशी, शब्द से ही गम। शब्द से पीड़ा, शब्द ही मरहम।
तो तय है कि नए साल को अभी उल्लास और गर्व से मनाया जाएगा। चैत्र माह में विक्रमी संवत का महत्व बताया जाएगा। रंगों से मन में उमंग आएगी। सुबह और शाम भी गाएगी।

 

अन्य समाचार