अजय भट्टाचार्य
जर्मन तानाशाह एडॉल्फ हिटलर अक्सर दावा करता था कि उसका आचरण `सर्वशक्तिमान निर्माता की इच्छा’ के अनुसार है। उसने लिखा था, ‘विश्वास बिना किसी शर्त के होना चाहिए। विश्वास को किसी भी तरह से तर्क, प्रमाण, कारणों पर निर्भर नहीं बनाया जा सकता है। इसकी सामग्री को कठोर सिद्धांतों के रूप में जनता के सामने पेश किया जाना चाहिए। हिटलर केवल यहूदियों की ही नहीं, बल्कि लाखों लोगों की मौत के लिए जिम्मेदार था। वह अक्सर बुद्धि और ़तर्क के खिलाफ बोलता था, इस बात पर जोर देते हुए कि हमें बुद्धि और विवेक पर भरोसा नहीं करना चाहिए और अपनी प्रवृत्ति पर भरोसा करना चाहिए। दिव्यता के भ्रम पर किसी का कॉपीराइट नहीं है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी `सर्वशक्तिमान निर्माता’ द्वारा उन्हें दी गई उन विशेष शक्तियों पर दावा करने वाले नवीनतम डंकापति हैं। हालांकि, उन्होंने अतीत में अक्सर कहा था कि भगवान ने मुझे यह काम करने के लिए चुना है, कुछ ही दिनों पहले एक साक्षात्कार में डंकापति ने एक इंसान से एक दिव्य प्रतिनिधि में अपने परिवर्तन के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि पहले जब तक मां जिंदा थी, मुझे लगता था कि शायद बाईलॉजिकली (जैविक रूप से) मुझे जन्म दिया गया है। मां के जाने के बाद इन सारे अनुभवों को मैं जोड़कर देखता हूं तो मैं कन्वींस (राजी) हो चुका हूं कि परमात्मा ने मुझे भेजा है। ये ऊर्जा बाईलॉजिकल (जैविक) शरीर से नहीं मिली है। ईश्वर मुझसे कुछ काम लेना चाहता है, इसलिए मुझे ये ऊर्जा दी है, विद्या भी दी है, सामर्थ्य भी दिया है, नेकदिली भी दी है और प्रेरणा भी वही दे रहा है, पुरुषार्थ करने का सामर्थ्य भी दे रहा है और मैं कुछ नहीं हूं, एक इंस्ट्रूमेंट (यंत्र) हूं, जो ईश्वर मेरे रूप में मुझसे लेना तय किया है और इसलिए मैं जब भी कुछ करता हूं तो मैं मानता हूं कि शायद ईश्वर मुझसे कुछ करवाना चाहता है।
देखा जाए तो यह कोई अजीब विचार नहीं था, जो किसी दुर्लभ भावनात्मक क्षण में उनके मन में कौंध रहा था। उन्होंने एक अन्य हिंदी अखबार को दिए साक्षात्कार में भी यही बात दोहराई और कहा, ‘मुझे लगता है कि मुझ पर किसी दैवीय शक्ति की असीम कृपा हुई है, जिसने मुझे जनकल्याण का माध्यम बनाया है।’ उनके समर्थकों ने दावा किया कि उनके पास विशेष शक्तियां होने के कारण वे अयोध्या में राम मंदिर के प्राण-प्रतिष्ठा समारोह के लिए सर्वथा उपयुक्त हैं। विश्व हिंदू परिषद के प्रमुख चंपत राय ने मोदी को विष्णु का अवतार बताया और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने उन्हें ‘तपस्वी’ कहा। बाद में वैâबिनेट ने एक प्रस्ताव पारित किया जिसमें कहा गया, ‘आज हम राजनीतिक परिप्रेक्ष्य से नहीं, बल्कि आध्यात्मिक परिप्रेक्ष्य से कह सकते हैं कि नियति ने आपको भारत की सनातन संस्कृति और वैश्विक प्रभाव की धुरी भगवान राम की प्राण-प्रतिष्ठा के लिए चुना है।’ यहां तक कि भारतीय जनता पार्टी के प्रमुख जेपी नड्डा ने भी कहा था, ‘नरेंद्र मोदी सुरेंद्र मोदी हैं। वे देवताओं के स्वामी हैं।’
मुझे लगता है इनके बहुत से डुप्लीकेट अर्थात नकली मानवीय अवतार हैं, जो सत्ता के बाजार में चल रहे हैं। खास बात यह है कि उनके सभी अवतार गुजरात के बड़नगर रेलवे स्टेशन पर चाय की दुकान में एकत्र हुए हैं और समय- समय पर सुविधानुसार नए-नए रूप में सामने आते हैं। कभी वे खुद को पठान का बच्चा बताते हैं, कभी गंगा का बेटा। एक मंच से हिंदू-मुसलमान करेंगे, अगले ही दिन मना कर देंगे, मैंने कब हिंदू-मुसलमान किया जी? मैं तो अब्बास का दोस्त हूं, ताजिये के नीचे परिक्रमा करता था। उनका एक अवतार तीसरी पास है तो दूसरा चौथी फेल है। एक अन्य अवतार ने एंटायर पॉलिटिकल साइंस में पीएचडी की है, तो एक अन्य अवतार को हार्वर्ड में अर्थशास्त्र के पीरियड्स आते है। एक अवतार इतिहासकार है पर वो रसायन शास्त्र पर ज्ञान देता है, बादलों से राडार से बचने की युक्ति बताता है। एक अवतार अंग्रेजी नहीं समझता। एक अवतार में उन्होंने ३५ साल भिक्षा मांगकर जीवन व्यतीत किया। एक अवतार आपातकाल में दाढ़ी लगाकर ऐसा भागा कि मिल्खासिंह का रिकॉर्ड तोड़ दिया। जब वे गणितज्ञ के अवतार में प्रकट हुए, तब आर्यभट्ट ने भी सिर पीट लिया कि ए+बी वर्ग में एक्स्ट्रा २ एबी मिलता है। ये सब एक जैसे दिखते हैं, आवाज भी लगभग एक है। ये सारे अवतार मई २०१४ के बाद आए हैं। असली वाला पुराना गायब है। इन सबमें अलग-अलग सॉफ्टवेयर डाउनलोड किए गए हैं। एक अक्सर अब्बा-डब्बा-जब्बा करने लगता है, एक बिना टेलीप्रिंटर के बोल नहीं पाता, एक को हर चीज का विशेषज्ञ बनने का शौक है। वैसे सबमें एक समानता यह है कि सबको फोटो खिंचाने का बहुत शौक है।