अजय भट्टाचार्य
कभी हिरण, तो कभी फुटपाथियों को मार डालने वाले एक्टर के पिता जेल में बैठे अपराधी से थर-थर कांपते हुए देश पर झींक रहे हैं, जबकि देश का इस पूरे प्रकरण से न तो कोई लेना-देना है, न कोई मजे ले रहा है। दरअसल, लेना-देना तो उनका है और मजे भी वही ले रहे हैं, जिनके प्रमोशन के लिए बिगड़ैल एक्टर कभी अमदाबाद में छत पर चढ़ पतंगबाजी किया था। इस बात को एक्टर के पिता भी बखूबी समझ रहे हैं, लेकिन उनका नाम नहीं लेकर देश को लपेटे दे रहे हैं, क्योंकि उनका नाम लेते ही पुराने मामलों में जेल जाने की नौबत आन पड़ी होगी, बल्कि यहां तक कि जेल में बंद अपराधी जिनका एक इशारा पाकर कभी सचमुच ही निपटान कर देगा। आखिर कड़े पहरे में बंद बदमाश अगर जेल में दंड मार रहा, जेल की रोटी से हट कर काजू चबा रहा, ऑनलाइन धमकी दे रहा और अपने शिकार को ढेर करवा दे रहा, तो यह किसकी शह पर हो रहा है? कौन लोग उस बदमाश का जयकारा लगा रहे? सबकुछ स्फटिक की तरह साफ है। सबसे बड़ा आश्चर्य यह है कि भक्तिकालीन लोकतंत्र में एक अपराधी में भी लोग अपना नायक देख रहे हैं, क्योंकि वह किसी बाबा-आबा को मारकर या मरवाकर सलमान बलमान को सीधा करता रखता है। मगर मुसीबत यह है कि अब करणी सेना भी इस मामले में कूद पड़ी है और भक्त समुदाय के नए माई-बाप पर पिल पड़ी है। कभी यहां करणी सेना पद्मावत को लेकर भक्तों की आंखों का तारा थी, क्योंकि तब वह खिलजी का बाजा बजा रही थी। बहरहाल, एक्टर के पिता की तरह अपन इस विडंबना के लिए देश को दोषी नहीं ठहरा रहे। जो लोग मुस्लिम होने की वजह से देश पर एक्टर के प्रति दुर्भाव रखने का भ्रम पाले हैं, बताएं कि दिलीप कुमार उर्फ यूसुफ खान क्या थे? उनके प्रति भी क्या देश दुर्भाव रखता था? हर मनुष्य को अपना प्रारब्ध भोगना है। गुरु की करनी गुरु जाएगा, चेला की करनी चेला। एक्टर के भयभीत पिता उनका नाम साफ-साफ लेना शुरू करें, जिन्हें खुश करने के लिए दोनों बाप-बेटे ताली-थाली बजा कर अंध भक्ति पैâलाए थे। उनका नाम लो, डर त्यागो। डर के आगे जीत है। यह प्रकरण पूरा अंधभक्त समुदाय के लिए भी पाथेय है। वह तुम्हारा उपयोग कर रहा है, वक्त आने पर अकेला छोड़ देगा।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं
तथा व्यंग्यात्मक लेखन में महारत रखते हैं।)