अजय भट्टाचार्य
जमूरे..!
जी उस्ताद।
खेल दिखाएगा?
जी उस्ताद।
इस तरह का संवाद तो आपने भी सुना होगा। खेल दिखाने वाला मदारी और उसका सहायक, आपसी संवाद के दौरान इस तरह का संवाद करते/बोलते हैं। व्यंग्य के दौरान भी जमूरा और जमूरे शब्द का उपयोग होता है। पहले वाले से एहसास होता है कि जमूरा का अर्थ है सहायक, दूसरे वाले से लगता है कि जमूरा यानी अंधभक्त। भाषाविदों के अनुसार जम्हूर, जम्हूरियत और जमूरा अरबी भाषा के शब्द हैं। अरब में जमूरा का उच्चारण जम्हूर होता है। इसी शब्द से जम्हूरिया अथवा जम्हूरियत शब्दों का जन्म हुआ है। जम्हूरियत का हिंदी अर्थ होता है लोकतंत्र और जम्हूर शब्द का हिंदी अर्थ है जनता या आम नागरिक। एक खास किस्म के पत्थर को भी जमूरा कहकर पुकारा जाता है। इसके अलावा जहरमोहरा, विष को खींच कर बाहर निकालने वाला पत्थर भी जमूरा कहलाता है। जो अरबी भाषा के शब्द जहर और फरसी भाषा के शब्द मोहर (छाप, ठप्पा) के संयोग से बना है।
आठ साल पहले राजस्थान में किसी जगह का दृश्य (तब राजस्थान राज्य और देश में भाजपा सरकार थी/है)-
बोल जमूरे।
हां मदारी
खेल दिखाएगा, पब्लिक को मजा आएगा। राज्य में घूमकर आ और बता क्या चल रहा है सरकारी ऑफिसों में। बता, कलेक्ट्रेट में ये बुढ़िया क्यों परेशान है?
मदारी के इस सवाल पर जमूरा काला कपड़ा ओढ़कर लेट गया। बताता है बुढ़िया गरीब है। दलाली नहीं दे सकती इसलिए पेंशन अटक गई है। दलाली मांगने वाले कर्मचारी अफसरों के खास हैं इसलिए आम आदमी बुढ़िया की तरह परेशान है। उस समय निखिल डे के संयोजन में सूचना और रोजगार अभियान के तहत राजस्थान में जवाबदेही यात्रा निकाली गई थी। जवाबदेही यात्रा के दौरान इस नुक्कड़ नाटक ने कई सवाल खड़े किए। शासन से लेकर प्रशासन तक की कार्यप्रणाली पर चिंता व्यक्त कर आम आदमी की पीड़ा अधिकारियों तक पहुंचाने की कोशिश की। मदारी जमूरे के तमाशे ने सरकारी विभागों का हाल सामने रखा। मदारी बोला, राशन की दुकान का क्या हाल है। जमूरे ने जवाब दिया, राशन की दुकान में कई दिनों से गेहूं नहीं आया। राशनकार्ड की सूची से नाम काट दिया गया है। नरेगा बीमार है, अस्पताल में भर्ती है। इस खेल में सरकारी भ्रष्टाचार को भी उजागर किया गया। इसमें भ्रष्टाचार कर दूसरे के सिर मंढ़ने की बात बताई गई कि सरकारी कर्मचारी भोली जनता को किस प्रकार लूट रहे हैं। मदारी के पास बंदर, मांगीलाल ठेकेदार और बकरी श्यामा भी थे। इनके जरिए बताया कि किस तरह बंदर ने अपना आरोप बकरी के सिर मढ़ दिया।
दो महीने पहले नीतिश कुमार की पलटमारी से लेकर अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी तक की घटनाएं सामान्य भले लग रही हों, मगर दोनों ही मामलों में कठपुतलियों यानी जमूरों का मालिक एक ही है। मदारी की पार्टी खुद चुनावी बॉन्ड पर सुप्रीम कोर्ट के कठोर, असुखद पैâसलों की एक शृंखला के माध्यम से अपने रास्ते में आने वाली सजा से छुटकारा पाने के बीच में जमूरों को सक्रिय करती है। समानांतर सुर्खियां शराब के नशे में धुत लोगों के लिए एक उपयोगी है। बेशक, वे पूरी तरह से असंबद्ध नहीं हैं। बाद के कुछ खुलासों में, अब हम देखते हैं कि दिल्ली शराब घोटाले में आरोपी से सरकारी गवाह बने एक व्यक्ति ने अंतरिम तौर पर चुनावी बॉन्ड के माध्यम से भाजपा को अच्छा पैसा दान किया था। बीआरएस को भी! मदारी ने सरकारी एजेंसियों से लेकर गोदी मीडिया तक जमूरे तैयार किए हैं। ये जमूरे वही कर/दिखा रहे हैं, जो मदारी दिखाना चाहता है। आज मीडिया की सुर्खियों में केजरीवाल ने इलेक्टोरल बॉन्ड घोटाले को ढंक दिया है, जिसमें मदारी की पार्टी पूरी तरह फंसी हुई है। पलटीमार की पटकथा मदारी के इशारे पर ही लिखी गई, ताकि विपक्ष के नेता की यात्रा सुर्खियों से दूर रहे। अब केजरीवाल की गिरफ्तारी केंद्र में है, ताकि इलेक्टोरल बॉन्ड घोटाले से लेकर मदारी की तमाम वे नाकामियां चर्चा से बाहर हो जाएं, जिनका इस देश की जनता को जवाब चाहिए। मदारी जमूरों का यह खेल जनता को समझना चाहिए और विपक्ष को भी इस खेल का पर्दाफाश करना चाहिए, न कि उस खेल में उलझकर भ्रमित होना चाहिए।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं तथा व्यंग्यात्मक लेखन में महारत रखते हैं।)