अजय भट्टाचार्य
भारत का पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग (एएसआई) इन दिनों वाराणसी स्थित एक मस्जिद के पुरातात्विक सर्वेक्षण की दहलीज पर है, जबकि गोबरपट्टी के एक गांव में एएसआई की खुदाई चल रही थी। तभी वहां एक ऐसी ममी पाई गई जो बिल्कुल इजिप्त की प्राचीन परंपरा के अनुसार ही लेप, पट्टी आदि करके बनाई हुई थी। गोबरपट्टी सहित भारत के इतिहास में ममी का मिलना अपने आप में एक नई घटना थी और है। वैसे यह भी सच है कि भारत के कई हिंदू संप्रदाय अंतिम संस्कार में शरीर को जलाते नहीं हैं, बल्कि पार्थिव शरीर को समाधिस्थ अवस्था में बिठाकर दफन कर देते हैं। शैव लिंगायत समाज में भी इसी तरह अंतिम संस्कार की व्यवस्था है। गोबरपट्टी सहित भारत में इस तरह के अंतिम संस्कार की संभावना यदि है तो मुस्लिम समाज में है। मगर उसमें भी एक बंदिश यह है कि पार्थिव शरीर को इस तरह दफनाया जाता है, जिसमें मरने वाले का चेहरा काबा यानी पश्चिम दिशा की तरफ हो। जबकि इस गांव की खुदाई में जो ममी मिली थी वह उत्तर-दक्षिण दिशा में लेटी हुई अवस्था में थी। ममी के पास शाकाहारी भोजन से भरे बरतन थे, सिंधु सभ्यता से मिलते-जुलते मिट्टी के घट थे, जिन पर अन्य फल-फूल, पत्तियों के साथ कमल के फूल की नक्काशी भी उकेरी गई थी। एएसआई की टीम इस ममी और उसके साथ मिले सामान को सहेजकर अध्ययन करना चाहती थी/है। ताकि देश की पुरातन संस्कृति, इतिहास के आख्यानों पर कुछ नया प्रकाश पड़ सके। खास बात यह थी कि यह ममी भले इजिप्शियन शैली में थी लेकिन उसकी प्राथमिक जांच में यह पता चला कि यह ममी कोई हजार-दो हजार साल, युगातीत प्राचीन न होकर पांच-छह साल ही पुरानी लग रही थी। भगवा रंग की पट्टियों से बंधी इस ममी के साथ उसके दैनिक उपयोग के सामान थे। ममी को संग्रहालय में रखने की तैयारी हो रही थी। साथ ही तमाम परीक्षण हो रहे थे। तभी सभी पुरातत्ववेत्ताओं का ध्यान इस बात पर गया कि ममी के आसपास अत्यंत सूक्ष्म आवृत्ति की आवाजें प्रसारित हो रही हैं। शुरू में इन सूक्ष्म आवाजों, ध्वनि लहरियों, कंपन को वहां मौजूद इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के कंपन से उत्पन्न ध्वनि तरंगें समझा गया। लेकिन जब इसका रहस्य नहीं पता चला तब अंतरिक्ष वैज्ञानिकों की एक टीम से इन सूक्ष्म ध्वनि तरंगों को समझने के लिए मदद मांगी गई। एएसआई समेत सभी की इस मामले में दिलचस्पी बढ़ने लगी। ध्वनियों को रिकॉर्ड किया गया और उनके नमूनों को एएसआई के अधिकारियों और पुरातत्वविदों ने संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्रिटेन, प्रâांस, रूस, चीन और भारत के खगोल वैज्ञानिकों से साझा किया गया। सभी देशों ने इस विलक्षण ममी के परीक्षण के लिए अपने शीर्ष वैज्ञानिक भारत भेजे। ये ध्वनियां बहुत सूक्ष्म आवृत्ति की थीं, जिनकी आवृत्ति ३० हर्ट्ज से कम थी, जिन्हें केवल उच्च गुणवत्ता वाले ध्वनि उपकरणों द्वारा सुना जा सकता था। मानवीय श्रवण क्षमता द्वारा नहीं। वैज्ञानिकों ने हाइपरसोनिक साउंड एम्पलीफायर उपकरणों को ममी के बेहद करीब रखा। करीब ३० देशों के वैज्ञानिक पिछले लगभग छह महीने से रात-दिन देखे बिना, ममी से आनेवाली आवाजों को रिकॉर्ड करते रहे। ध्वनि तरंगों को रिकॉर्ड कर गूढ़वाचन यानी डिकोड करने के क्रम में सिर्फ इतना ही पता चला कि इन आवाजों में हजारों साल पुरानी भाषा में पूरी मानव जाति के लिए एक संदेश है। आधुनिक विज्ञान के यंत्र इस आवाज का अनुवाद करने में विफल साबित हो रहे थे तब किसी ने सुझाव दिया कि भारत ऋषि-मुनि-यतियों-योगियों का देश है। जब किसी समस्या का हल ढूंढने में ज्ञान-विज्ञान विफल होते हैं तब दैवीय शक्तियों की शरण में जाना चाहिए। चूंकि यह समस्या ममी से आ रही आवाज यानी स्वर से संबंधित है इसलिए हमें वाग्देवी अर्थात देवी सरस्वती को प्रसन्न करना चाहिए। यह सुझाव सभी को पसंद आया और कर्मकांडी ब्राह्मणों से संपर्क किया गया। ब्राह्मणों ने बताया कि देवी सरस्वती की कृपा प्राप्ति के उद्देश्य से सारस्वत यज्ञ करना चाहिए। हम यह यज्ञ तो कर सकते हैं मगर हमारे बीच कोई ऐसा नहीं है जो इस यज्ञ का आचार्य बन सके। क्योंकि इस यज्ञ का आचार्यत्व कोई योगी ही कर सकता है। तुरंत सबके दिमाग में सूबे के मुखिया का नाम आया। मुखिया से संपर्क किया गया तो मुखिया ने यह कहकर पल्ला झाड़ लिया कि इस यज्ञ का आचार्य योगी नहीं, बल्कि किसी गुफा योगी को बनाया जाना चाहिए। यदि गुफा योगी भी उपलब्ध न हुए तो क्या होगा? यह प्रश्न उठते ही एक समझदार ने विकल्प सुझाया कि गुफा योगी की प्रतिमा बनाकर उसकी प्राण प्रतिष्ठा करके अनुष्ठान संपन्न किया जा सकता है। बस फिर क्या था, यज्ञवेदी सज गई और यज्ञ शुरू हुआ। पूर्णाहुति होते ही गुफा योगी की प्रतिमा ने ममी से आ रही ध्वनि तरंगों का गूढ़ वाचन किया जिसे सुनकर दुनिया दंग रह गई। गोदी मीडिया का कोई भी न्यूज चैनल, अखबार इस खबर को दिखाने/छापने के लिए तैयार नहीं है, क्योंकि इस खबर पर कोई विश्वास नहीं करेगा जिससे भक्त समुदाय में निराशा छा सकती है। दरअसल, गुफा योगी की प्रतिमा द्वारा ध्वनि तरंगों की सूक्ष्म आवृत्तियों को डिकोड किया गया तो बार-बार एक ही आवाज आ रही थी, ‘अच्छे दिन आने वाले हैं!’
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं तथा व्यंग्यात्मक लेखन में महारत रखते हैं।)