अजय भट्टाचार्य
एक रात नींद में एक राजा को भगवान के वस्त्र पहनने की इच्छा हुई। उसने अपने राज्य में मुनादी करा दी कि जो भगवान के वस्त्र ला कर देगा, उसे मुहमांगा इनाम दिया जाएगा। राजा की मुनादी से प्रजा परेशान, क्योंकि भगवान के वस्त्र लाना लोगों के लिए असंभव था। एक चतुर व्यक्ति ने आकर राजा से कहा कि मैं तीन महीने में भगवान का वस्त्र लाकर दूंगा, लेकिन मुझे तीन करोड़ सोने की अशर्फियां और कुछ सामान चाहिए। राजा ने तुरंत धन और आवश्यक वस्तुओं की पूर्ति कर दी। उस व्यक्ति ने धन को अपने परिवार को सौंप दिया, तभी मंत्री ने कहा कि महाराज अगर यह भाग गया तो इसे कहां ढूंढ़ते फिरेंगे।
व्यक्ति ने कहा- राजन धन मैंने परिवार को दिया है, लेकिन मैं महल में ही रहूंगा। एक कमरे की व्यवस्था करा दी जाए। तीन महीने बीत गए, नियत समय पर चालाक व्यक्ति को आना था पूरा दरबार सजा था, उत्सुकता थी भगवान के वस्त्र देखने की। तय समय पर वह व्यक्ति एक भव्य संदूक लिए दरबार में हाजिर हुआ और उसने महाराज से कहा कि राजन वस्त्र देते समय भगवान ने दो शर्तें रखी थीं। पहली शर्त वस्त्र पहनने से पहले दूसरा शर्त वस्त्र पहनने के बाद बताने के लिए भगवान ने कहा है। चूंकि राजा अति उत्साहित था, उसने कहा कि जल्दी शर्त बताओ और वस्त्र के दर्शन कराओ। चालाक व्यक्ति ने पहली शर्त बताई कि यह वस्त्र उसी को दिखेगा, जो अपने बाप की औलाद होगा, कहकर वस्त्र निकालने लगा।
उसके हाथ में कुछ भी नही था, लेकिन उसने बहुत आत्मविश्वास के साथ कहा- राजन भगवान का मुकुट कितना सुंदर है, इसे पहनकर आप दिव्य लगेंगे। पूरा दरबार सन्न, क्योंकि किसी को कुछ दिखाई नहीं दे रहा था। सभी के मन में शंका पैदा हो गई। लोग एक-दूसरे को सशंकित नजरों से देखने लगे। राजा, रानी, मंत्री, राजमाता सभी उस व्यक्ति के झूठ के जाल में फंस चुके थे और पूरा राज दरबार एक साथ बोल पड़ा, सचमुच महाराज ऐसा मुकुट तो आज तक हमने नहीं देखा, इसे पहनकर आप दिव्य लगेंगे। राजा सोचने लगा कि सभी को दिख रहा है, मुझे क्यो नहीं। पूछ भी नहीं सकता था, क्योंकि पूछने पर सबको पता चल जाएगा कि राजा अपने बाप की औलाद नहीं है। बदनामी भी होगी। उसने भी कह ही दिया कि सचमुच मुकुट दिव्य है। अब एक-एक कर राजा के सारे वस्त्र उतरने लगे, दरबारी राजा की जय-जयकार कर रहे थे। राजा समझ रहा था कि लोग भले ही जयकारा लगा रहे हैं, लेकिन वो निर्वस्त्र होता जा रहा है। मरता क्या न करता। उसने सोचा कि चलो इतने ही लोग मुझे निर्वस्त्र देखेंगे। राजा पूरी तरह जब निर्वस्त्र हो गया, तब उस चालाक व्यक्ति ने भगवान की दूसरी शर्त बतानी शुरू की और कहा कि भगवान ने कहा था कि जब राजा मेरा वस्त्र पहनकर सुसज्जित हो जाए तो राजा को पूरे राज्य में भ्रमण करना होगा, ताकि भगवान के वस्त्र का दर्शन सभी प्रजा को मिल सके। राजा को सांप सूंघ गया तो उसने कहा महाराज डरो मत आपके रथ के आगे मुनादी होती रहेगी कि यह वस्त्र उसी को दिखेगा, जो अपनी बाप की औलाद होगा। राजा ने भ्रमण किया, वहां कोई ऐसा नहीं मिला, जो कह दे कि राजा निर्वस्त्र है। ग्रामीणों ने समझा बड़े लोगों के चोचले भी भिन्न होते हैं। कोई इसलिए नहीं बोला कि बोलकर बैर कौन पाले। बहरहाल, चतुर व्यक्ति अपनी चाल में सफल हो चुका था। अचानक राजसी जुलूस के सामने एक बच्चा आकर खड़ा हो गया और बोला राजा तो नंगा है। राजा ने मन में विचार किया कि यह बच्चा इतना छोटा है कि इसे अभी तक यह ज्ञान नहीं हुआ कि बता या जान सके कि वह अपने बाप की औलाद है। राजा की आंख खुल गई। उसने देखा कि यह तो सपना मात्र था।
लोकतंत्र में जनता राजा होती है। १०-११ साल पहले एक चतुर मंडली जनता रूपी राजा के सामने यह कहकर आई कि राजाजी आपके राज में बहुत कुछ अच्छा नहीं चल रहा है। आप हमें प्रशासन संचालन मंडल में स्थान दें, फिर देखिए आपका राज स्वर्ग से ज्यादा सुंदर होगा। लेकिन ध्यान रखिए कि हमारा कामकाज उन्हीं को दिखाई देगा, जो देशभक्त होंगे, जो खास धर्म को मानने वाले होंगे। खास धर्म वाले भी अगर मंडली के कामकाज में नुक्ताचीनी करेंगे तो वे धर्मविरोधी होंगे। जनता रूपी राजा चतुरों की चाल में आ गया और मंडली को राजकाज सौंप दिया। मंडली ने धीरे-धीरे राजा को ही अपाहिज करना शुरू किया और राजभोग करने वाले राजा को पांच किलो राशन में समेट दिया। हद तो तब हो गई, जब मंडली के नेता ने खुद को भगवान से बड़ा सिद्ध करने की चाल चली। राजा की तरफ से कोई भी मंडली के खिलाफ बोलता तो मंडली उसे देशद्रोही/धर्मद्रोही कहने लगती। लोकतंत्र का राजा अर्थात प्रजा ने मंडली के मायाजाल में जरा सा सुराख कर दिया और मंडली मुखिया समेत हवा से उतरकर जमीन पर आ गई, मगर प्रपंच नहीं छूटा। नौकर/सेवक से राजा बने मंडलाधीश की असली तस्वीर उजागर करने वाले हर व्यक्ति को झुट्ठन राजा का गिरोह बाल बुद्धि साबित करना चाहता है, क्योंकि बाल यानी बच्चा नकली राजा का नंगापन उजागर कर रहा है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं तथा व्यंग्यात्मक लेखन में महारत रखते हैं।)