मुख्यपृष्ठस्तंभउड़न छू : एकदा जंबूद्वीपे...!

उड़न छू : एकदा जंबूद्वीपे…!

अजय भट्टाचार्य

सेना के एक कैंप यानी शिविर स्थल में नए कमांडर की तैनाती हुई। निरीक्षण के दौरान उन्होंने देखा कि वैंâप एरिया के मैदान में दो सिपाही एक बेंच की पहरेदारी कर रहे हैं। कमांडर ने सिपाहियों से पूछा कि वे इस बेंच की पहरेदारी क्यों कर रहे हैं?
सिपाही बोले कि हमें पता नहीं सर, लेकिन आपसे पहले वाले कमांडर साहब ने इस बेंच की पहरेदारी करने को कहा था।
शायद ये इस वैंâप की परंपरा है क्योंकि शिफ्ट के हिसाब से चौबीसों घंटे इस बेंच की पहरेदारी की जाती है।
वर्तमान कमांडर ने पिछले कमांडर को फोन किया और उस विशेष बेंच की पहरेदारी की वजह पूछी। पिछले कमांडर ने बताया कि मुझे नहीं पता, लेकिन मुझसे पिछले कमांडर उस बेंच की पहरेदारी करवाते थे। अत: मैंने भी परंपरा को कायम रखा। नए कमांडर बहुत हैरान हुए।
उन्होंने पिछले के और पिछले तीन-चार कमांडरों से बात की। सबने उपरोक्त कमांडर जैसा ही जवाब दिया। यूं ही पीछे के इतिहास में जाते-जाते नए कमांडर की बात अंतत: एक रिटायर्ड जनरल से हुई जिनकी उम्र १०० साल थी। नए कमांडर उनसे फोन पर बोले, आपको डिस्टर्ब करने के लिए क्षमा चाहता हूं सर, मैं उस शिविर का नया कमांडर हूं, जिसके आप ६० साल पहले कमांडर हुआ करते थे। मैंने यहां दो सिपाहियों को एक बेंच की पहरेदारी करते देखा है। क्या आप मुझे इस बेंच के बारे में कुछ जानकारी दे सकते हैं, ताकि मैं समझ सकूं कि इसकी पहरेदारी क्यों आवश्यक है? सामने वाला फोन पर आश्चर्यजनक स्वर में बोला, ‘क्या? उस बेंच का ऑइल पेंट अभी तक नहीं सूखा?’
हमारे देश के ५६ इंची पहरेदार के प्राथमिक स्कूल में सिखाया गया कि जब भी तुमसे कोई काम न हो पाए तो सारा ठीकरा पंडितजी पर फोड़ देना, ठीक वैसे ही जैसे कैंप में बेंच की पहरेदारी को ही परम कर्तव्य मान लिया गया था। हमारे चौकीदार के लिए पंडितजी उसी बेंच की तरह हैं। कुछ भी हो पंडितजी छूटने नहीं चाहिए। इसलिए उन्होंने पंडितजी को पकड़कर रखा है। पंडितजी से उनका प्रेम इतना विकट स्तर का है कि उन्होंने आधुनिक राजनीति के परिधान में पंडितजी वाली जैकेट को जोड़ा। फर्क इतना है कि पंडितजी साधारण खादी से बनी/सिली जैकेट पहनते थे और ये डिजाइनर जैकेट।
नया यह है कि जैसे ही २६ दलों के संयुक्त विपक्ष ने अपने गठबंधन के नामकरण भारतीय राष्ट्रीय विकास समावेशी गठबंधन का संक्षिप्त नाम इंडिया जाहिर किया उनके कुनबे को इंडिया से इतनी एलर्जी हुई कि इंडिया (दैट इज भारत) को अंग्रेजी उपनिवेशवाद से मुक्त करने की मुहिम को हवा देना शुरू कर दिया। यह अलग बात है कि अंग्रेजों से लड़ाई के वक्त उनकी पार्टी का जन्म भी नहीं हुआ था और जो उनका पितृ संगठन है उसने कभी भी आजादी की लड़ाई में हिस्सा नहीं लिया। आजादी की लड़ाई में अपने नगण्य योगदान की कमी वे आजादी के नायकों को नीचा दिखाकर पूरा करना चाहते हैं। उनकी पार्टी के असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने इंडिया के खिलाफ ट्विटर पर मोर्चा खोला और लिखा, ‘हमारा सभ्यतागत संघर्ष भारत और भारत के आसपास केंद्रित है। हमारे पूर्वजों ने भारत के लिए लड़ाई लड़ी और हम भारत के लिए काम करना जारी रखेंगे। भारत के लिए भाजपा।’ लगता है हिमंत के मुंह में खट्टे अंगूर कुछ ज्यादा हैं। उनके नए गुरु मोदीजी ने अब तक स्किल इंडिया, स्टार्ट अप इंडिया, डिजिटल इंडिया जैसे जो लुभावने नारे गढ़े हैं वे किस इंडिया के हैं? मोदीजी जब वोट इंडिया की अपील करते हैं तब हिमंत सहित उनके सारे छर्रे अहोभाव से गदगद हो जाते हैं। बहरहाल, यह बहस अभी और मजेदार होनेवाली है। क्योंकि इंडिया वालों ने अपने स्लोगन में जुड़ेगा भारत जीतेगा इंडिया भी जोड़ दिया है। हिमंत चाहें तो भारत का भी यह कहकर विरोध कर सकते हैं कि यह आर्यावर्त पर हमला है। अभी तो बेंच की रखवाली शृंखला में बहुत सी कथाएं/उपकथाएं जन्म लेंगी। वैसे भारतीय उपमहाद्वीप के साथ उपयोग किए जानेवाले सबसे पुराने नामों में से एक मेलुहा था, जिसका उल्लेख सिंधु घाटी सभ्यता को संदर्भित करने के लिए तीसरी सहस्राब्दी ईसा पूर्व में प्राचीन मेसोपोटामिया के ग्रंथों में किया गया था। जैन ग्रंथों में पहले तीर्थंकर ऋषभदेव के पुत्र राजा नाभि के नाम पर देश का नाम नाभिवर्ष बताया गया है, जबकि मनुस्मृति में देश के लिए आर्यावर्त का प्रयोग हुआ है। फारसियों ने इसे हिंदुस्थान कहकर पुकारा तो वेदों में इसे जामुन उत्पन्न करनेवाली धरती जंबूद्वीप कहा गया। जहां तक केंद्रीय सत्ताधारी दल नीत एनडीए का प्रश्न है उसमें बेंच के आसपास ३८ दल दिख रहे हैं मगर बेंच की रखवाली में दोनों शिफ्टों में जो लगातार काम कर रहे हैं वे ईडी, आईटी और सीबीआई वाले एनडीए की मीटिंग में मिस्टर इंडिया की तरह अप्रत्यक्ष रूप से शामिल थे। अब आप यह पूछिए कि एनडीए क्या है? सोशल मीडिया के सयानों ने एनडीए का फुल फॉर्म नेशनल डीलर ऑफ अडाणी बताया है, मगर अपुन इससे सहमत नहीं हैं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं तथा व्यंग्यात्मक लेखन में महारत रखते हैं।)

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