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उड़न छू : धर्म शिक्षा

अजय भट्टाचार्य

टॉल्स्टॉय की एक कहानी है कि एक झील के किनारे तीन अनपढ़ फकीर थे। लेकिन उनकी बड़ी ख्याति हो गई और दूर-दूर से लोग उनके दर्शन करने को आने लगे। रूस के सबसे बड़े पुरोहित के कानों में भी खबर पहुंची कि तीन पवित्र पुरुष झील के उस पार हैं। पुरोहित ने सोचा कि उन्होंने कभी चर्च में दीक्षा भी नहीं ली, वे पवित्र हो वैâसे सकते हैं? हजारों लोग वहां जा रहे हैं और दर्शन करके कृतार्थ हो रहे हैं! तो वह भी देखने गया कि मामला क्या है? नाव पर सवार हुआ, झील के उस पर पहुंचा। वे तीनों तो बिलकुल बेपढ़े लिखे गंवार थे। वे अपने झा़ड़ के नीचे बैठे थे। जब महापुरोहित उनके सामने गया तो उन तीनों ने झुककर उसको प्रणाम किया। महापुरोहित तभी आश्वस्त हो गया कि कोई डर की बात नहीं है। जब तीनों चरण छू रहे हैं, इनसे कोई ईसाई धर्म को खतरा नहीं है। उस महापुरोहित ने कहा कि तुम क्या करते हो? तुम्हारी साधना पद्धति क्या है? उन्होंने कहा, पद्धति? वे एक दूसरे की तरफ देखने लगे।
पुरोहित ने कहा, बोलो, तुम करते क्या हो? तुमने साधा क्या है? उन्होंने कहा कि हम ज्यादा तो कुछ भी जानते नहीं। पढ़े-लिखे हम हैं नहीं। किसी ने हमें सिखाया नहीं। हमारी खुद की ही गढ़ी हुई एक प्रार्थना है, क्योंकि हमने किसी से सीखा नहीं और किसी ने हमें कभी बताया नहीं। क्या है तुम्हारी प्रार्थना? पुरोहित तो अकड़ता चला गया। उसने कहा कि बिल्कुल ही गंवार हैं! क्या है तुम्हारी प्रार्थना? उन्होंने कहा कि अब आपसे हम वैâसे कहें, बड़ी छोटी सी है। हमने सुन रखा है कि परमात्मा तीन हैं, ट्रिनिटि, त्रिमूर्ति। ईसाई मानते हैं कि परम पिता, उसका बेटा जीसस और दोनों के बीच में एक पवित्र आत्मा, होली घोस्ट इन तीन के जोड़ से परमात्मा बना है, ट्रिनिटि। तो तीनों ने कहा कि हमने एक प्रार्थना बना ली सोच-सोचकर। हमारी प्रार्थना यह है कि यू आर थ्री, वी आर ऑल्सो थ्री, हैव मर्सी ऑन अस। तुम भी तीन हो, हम भी तीन हैं, हम पर कृपा करो। उस पुरोहित ने कहा कि बंद करो यह। यह कोई प्रार्थना है? प्रार्थना तो प्रामाणिक होती है। चर्च के द्वारा उसके लिए स्वीकृति और प्रमाण होना चाहिए। तो मैं तुम्हें प्रार्थना बताता हूं। इसको याद करो और आज से यह प्रार्थना शुरू करो। उन्होंने कहा, आपकी कृपा, बता दें। महापुरोहित ने चर्च की लंबी प्रार्थना उन्हें बता दी। उन लोगों ने कहा कि क्षमा करें, हम बिल्कुल गंवार हैं, इतनी लंबी याद नहीं रहेगी। आप थोड़ा संक्षिप्त क़र दें, कुछ थोड़ा सरल! पुरोहित ने कहा कि न तो यह सरल हो सकती है और न संक्षिप्त। यह प्रमाणित प्रार्थना है। जो इसको नहीं करेगा, उसके लिए स्वर्ग के द्वार बंद हैं। तो उन्होंने कहा कि एक दफा आप फिर से दोहरा दें, ताकि हम याद कर लें। दुबारा कही। फिर भी उन्होंने कहा, एक बार और सिर्फ दोहरा दें। साथ में तीनों ने दोहराने की भी कोशिश की और उन्होंने धन्यवाद दिया पुरोहित को, फिर चरण छुए। पुरोहित प्रसन्न नाव पर वापस लौटा। आधी झील में आया था कि देखा कि पीछे से पानी पर एक बवंडर चला आ रहा है । वह तो घबराया कि यह क्या चला आ रहा है? थोड़ी देर में साफ हुआ कि वे तीनों पानी पर दौड़ते चले आ रहे हैं! पुरोहित के तो प्राण निकल गए। वे पानी पर चल रहे हैं! और तीनों पास आकर, पकड़कर बोले कि एक बार और दोहरा दें। वह हम भूल गए। हम गरीब बेपढ़े-लिखे लोग। उस पुरोहित ने कहा कि क्षमा करो। तुम्हारी प्रार्थना काम कर रही है। तुम अपनी वही जारी रखो।
प्रार्थना एक हार्दिक भाव है। उसे सिखाने का कोई भी उपाय नहीं है। विडंबना यह है कि भारत में जो लोग धर्म सिखाने की कोशिश कर रहे हैं उन्हें नहीं मालूम कि सिखाने से कभी भी कोई आदमी धार्मिक नहीं हो सकता।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और देश की कई प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में इनके स्तंभ प्रकाशित होते हैं।)

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