बहुमुखी प्रतिभा के धनी अनंग देसाई पिछले ४० वर्षों से स्टेज, फिल्म, टीवी के बाद अब ओटीटी पर नजर आ रहे हैं। भूमिकाएं चाहे नेगेटिव हों या पॉजिटिव या फिर कॉमेडी हर किरदार में वो बखूबी ढल जाते हैं। आतिश कपाड़िया और जेडी मजीठिया के शो ‘खिचड़ी’ में बाबूजी का किरदार निभानेवाले अनंत देसाई की फिल्म ‘खिचड़ी-१’ के बाद ‘खिचड़ी-२’ जी सिनेमा पर रिलीज होनेवाली है। पेश है, अनंत देसाई से पूजा सामंत की हुई बातचीत के प्रमुख अंश-
फिल्म ‘खिचड़ी-२’ की रिलीज में देरी की क्या वजह रही?
शो ‘खिचड़ी’ का जॉनर कॉमेडी है। हर दूसरे परिवार में घटनेवाली मनोरंजक सिचुएशन आतिश कपाड़िया ने न केवल लिखा, बल्कि उसे निर्देशित भी किया। कहानी में जो कॉमेडी नजर आती है वो इतनी रिलेवेंट है कि कभी पुरानी नहीं हो सकती और आनेवाले समय में भी रिलेवेंट लगेगी। फिल्म ‘खिचड़ी-१’ और ‘खिचड़ी-२’ के बीच इसलिए गैप रखा गया, ताकि फिल्म का ओवरडोज न हो। किसी भी बात की अति होना उस प्रोजेक्ट का मजा किरकिरा कर देता है।
आपके किरदार बाबूजी की लोकप्रियता का राज क्या है?
हम सभी के परिवारों में मां-पिता सहित सभी का प्यार-दुलार काफी मायने रखता है। बाबूजी ‘खिचड़ी’ के मध्यवर्ती किरदार हैं, जिनके बिना कहानी अधूरी है। अपने सौम्य स्वभाव से बाबूजी ने सभी का दिल जीत लिया है। असल जिंदगी में कलाकार जो नहीं होते उस किरदार को निभाने में ज्यादा मजा आता है। मैं एक ट्रेंड एक्टर हूं और जो भी किरदार मुझे दिए जाते हैं, मैं उन्हें अपने कन्विक्शन के साथ निभाता हूं।
बाबूजी के किरदार से आपको क्या हासिल हुआ?
इस किरदार ने मुझे क्या दिया इसे मैं शब्दों में बयां नहीं कर सकता। दरअसल, लेखक-निर्देशक आतिश भाई ने मुझे बाबूजी के स्वभाव का ग्राफ बताया और उनकी सोच के अनुसार मैंने बाबूजी को अपने हिसाब से ढाला। सच कहूं तो इस किरदार की सबसे बड़ी देन यह है कि इसने मेरी इमेज बदल दी। मैं कॉमेडी बहुत अच्छे से निभा सकता हूं, इस पर अब इत्मीनान हो चुका है। आतिश और जे.डी. मजीठिया ने जब पहली बार शो ‘खिचड़ी’ बनाया तो उन्होंने उन कलाकारों के बारे में नहीं सोचा जो पहले से कॉमेडी करने में माहिर थे। उन्होंने इस शो के लिए उन कलाकारों को कास्ट किया, जिनकी कॉमेडी में कोई इमेज नहीं थी। ‘खिचड़ी’ से पहले कभी कॉमेडी परफॉर्म नहीं किया था, जबकि यही जॉनर सबसे मुश्किल है। मेरे लिए भी यह बड़ा चैलेंज था।
कैसा रहा आपका अब तक का सफर?
मैं मूलत: अमदाबाद से हूं। अभिनय की चाहत में मैंने एनएसडी जॉइन किया और नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा में मुझे खुद को तराशने का मौका मिला। सजी-सजाई प्लेट न सही, लेकिन धीरे-धीरे काम मिलता गया। श्याम बेनेगल से लेकर सुभाष घई और राकेश रोशन जैसे सभी दिग्गज मेकरों के साथ काम करने का मौका मिला। श्याम बेनेगल के धारावाहिक ‘भारत एक खोज’ में राजा राम मोहन रॉय और दादोजी कोंडदेव का किरदार निभाने के बाद रिचर्ड एटनबरो की फिल्म ‘गांधी’ में जे.बी. कृपलानी का किरदार निभाया। इन खास किरदारों को निभाने के बाद मेरी पहचान का दायरा बढ़ता गया। अपने करियर से मैं काफी संतुष्ट हूं।
आपका पसंदीदा माध्यम कौन-सा है?
हर सफर और हर माध्यम का लुत्फ उठाने वाला मेरे जैसा कलाकार हर किरदार में दिल से काम करता है। मैं यह नहीं देखता कि मैं किस माध्यम के लिए काम कर रहा हूं। मुझे सभी माध्यम पसंद हैं।
आप किन बदलावों को महसूस करते हैं?
जीवन के अपरिहार्य अंग बदलाव को कोई रोक नहीं सकता। टेक्निकल बदलाव अच्छे हैं, लेकिन नई ऊंचाई हासिल करने के लिए फिल्मों को कंटेंट पर बारीकी से ध्यान देना होगा। ओटीटी प्लेटफॉर्म पर अलग विषय और प्रस्तुतीकरण नजर आ रहा है। कुछ वर्ष पहले तक फिल्मों के सेट पर काफी अपनापन नजर आता था, लेकिन अब वैसा माहौल नहीं रहा। अगर कलाकारों में मेल-मिलाप नहीं होगा तो बॉन्डिंग कैसे बढ़ेगी? वक्त के साथ इन बदलावों को स्वीकारना होगा।