७३ हजार और एसआईजी ७१६ असॉल्ट राइफल खरीद रही सरकार
सामना संवाददाता / नई दिल्ली
भारत सरकार इंडियन आर्मी के लिए ७३ हजार और एसआईजी ७१६ असॉल्ट राइफल खरीद रही है। इसे अमेरिकी-स्विट्जरलैंड की कंपनी सिग सॉर बनाती है। भारत की स्वदेशी हथियार निर्माता कंपनी एसएसएस डिफेंस के सीईओ विवेक कृष्णन इस बात से खासे नाराज हैं। उन्होंने ट्वीट करके सरकार के इस पैâसले पर सवाल उठाया है और पूछा है कि कहां है ‘मेक इन इंडिया प्रोग्राम’? कृष्णन ने एक्स हैंडल पर लिखा है कि एक दिन पहले से लोग मुझसे एसआईजी ७१६ आई के एक्वीजिशन पर मेरा ओपिनियन पूछ रहे हैं। खैर.. हमें ये पता था कि ये होने वाला है इसलिए हम अपने काम पर लग गए, लेकिन कुछ बातें स्पष्ट कही जानी चाहिए।
भारतीय सेना के लिए मोदी सरकार ने एसआईजी ७१६ असॉल्ट राइफल मंगाने की अनुमति दे दी है। इससे स्वदेशी कंपनी एसएसएस डिफेंस के सीईओ विवेक कृष्णन ने नाराजगी जताई है। उन्होंने मोदी सरकार की मेक इन इंडिया नीति को लेकर सवाल किए हैं और कई ट्वीट किए हैं। कृष्णन ने सवाल किया है कि क्या ऐसे स्वदेशी हथियार कंपनियों को प्रोत्साहित किया जाएगा?
अच्छे हथियार बनाना और
उन्हें स्वीकार करवाना मुश्किल
भारतीय कंपनियों से सरकार ने नहीं किया संपर्क -कृष्णन
कृष्णन ने कहा कि मैं चाहता था कि सरकार इसे न खरीदे। सरकार को भारतीय कंपनियों से संपर्क करना चाहिए था। भारतीय डिजाइन वाली राइफल खरीदनी चाहिए थी। इससे देश की कंपनियां अच्छी राइफल बनाने के लिए प्रेरित होतीं। उन्होंने यह भी कहा कि पहले से सेवा में मौजूद राइफलों की तुलना करनी चाहिए थी, ताकि यह देखा जा सके कि क्या नई राइफल खरीदने की जरूरत है। इस बार तो यह डील हो गई। हम कुछ नहीं कर सकते, लेकिन हम हार नहीं मानेंगे। इस बिजनेस में हम सबसे ताकतवर बनकर उभरेंगे। हमारे पास हर वैâलिबर का हथियार होगा। इसे इस्तेमाल करने वाला व्यक्ति यूनिफॉर्म में होगा। अब हम वैश्विक स्तर पर जाएंगे। देश में डिफेंस के लिए ‘मेक इन इंडिया’ कहां है? छोटे हथियारों के क्षेत्र में कुछ लोग अच्छा काम कर रहे हैं। उनमें प्रतिबद्धता है। सिर्फ धैर्य की और जरूरत है। केवल मूर्ख ही स्वदेशी हथियारों के बिना रक्षा की कल्पना कर सकता है। आस-पास के देशों को आकर हमसे हथियार खरीदना होगा। क्या हमें भारतीय चीजों में गर्व होना चाहिए? हमने सरकारी कंपनियों में कमजोर हथियार बनाकर यह गर्व खो दिया, लेकिन निजी कंपनियां अब अच्छा काम कर रही हैं। गर्व हासिल कर रही हैं। अच्छे हथियार बनाना और उन्हें स्वीकार करवाना मुश्किल है, लेकिन हमने वैश्विक स्तर पर जाकर यह सीखा है। हमारे अपने देश में हमें सम्मान नहीं मिलता, लेकिन विदेश में हमारे समकक्ष हमें सम्मान देते हैं। यह आत्म सम्मान की बात है और अब आखिरी बात यह एक चुनौती है, जब हमारे खरीदार हमसे कहते आए हैं कि हमारे धातु विज्ञान में कमी है या हमारी डिजाइन कमजोर है।
मैं कहता हूं कि हमारे स्वदेशी हथियार को प्रत्येक कैलिबर में वैश्विक मानक के खिलाफ खड़ा करें। उनका परीक्षण करें। परिणामों को सबके सामने रखें, सार्वजनिक तौर पर। जैसे वास्तविक सेनाएं करती हैं। परीक्षण प्रोटोकॉल स्पष्ट रूप से परिभाषित हैं। यह दोनों पक्षों के लिए सबसे अच्छा होगा। यह करना कितना ही मुश्किल है?