केंद्र की मोदी सरकार रूस-यूक्रेन युद्ध रोकने के ‘दिवास्वप्न’ में मशगूल है और इधर मणिपुर में हिंसा की आग फिर से भड़क उठी है। पिछले आठ दिनों में वहां दोबारा भड़की हिंसा में आठ लोग मारे गए हैं। अब छात्र भी सड़कों पर उतर आए हैं। रविवार को उनका गुस्सा इस कदर भड़का कि उन्होंने सीधे राजभवन तक मार्च करने की कोशिश की। हालांकि, सुरक्षा बलों ने इसे सफल नहीं होने दिया, लेकिन किसी भी समय यह आक्रोश और अधिक उग्र रूप ले सकता है। छात्रों के इस आक्रोश को देखकर मणिपुर के राज्यपाल लक्ष्मण प्रसाद आचार्य मणिपुर छोड़कर सीधे असम की राजधानी गुवाहाटी पहुंच गए। पिछले डेढ़ साल से म्यांमार सीमा पर स्थित यह राज्य जातीय हिंसा से जूझ रहा है। इस आग में अब तक २०० से ज्यादा लोगों की जान जा चुकी है। केंद्र सरकार ने मणिपुर की जनता को भाजपा के अप्रभावी मुख्यमंत्री बीरेन सिंह और मणिपुर से भागकर असम पहुंचे राज्यपाल लक्ष्मण प्रसाद आचार्य के ‘हवाले’ कर दिया है। प्रधानमंत्री मोदी और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह अपनी जिम्मेदारी और जवाबदेही से बच नहीं सकते। बार-बार हिंसा की आग में जलने वाला मणिपुर केंद्र की मोदी सरकार की लापरवाही का पाप है। अपने देश के एक राज्य को हिंसा के ज्वालामुखी के मुहाने पर रखना, उस ज्वालामुखी को फूटने देना, उसमें वहां के लोगों को जलने देना और रूस-यूक्रेन युद्ध के लिए शांति के कबूतर उड़ाना, वहां युद्धविराम को लेकर शेखी बघारना और मणिपुर हिंसा पर मुंह में दही जमाकर बैठ जाना, मोदी की घटिया मानसिकता का परिचायक है। मोदी के पास पुतिन और जेलेंस्की से मिलने का समय है, लेकिन डेढ़ साल से सांप्रदायिक आग में जल रहे मणिपुर के आम लोगों से मिलने का उनके पास समय नहीं है। मोदी ने युद्धग्रस्त यूक्रेन में ट्रेन से १६ घंटे की यात्रा की और भक्तों से तालियां बटोरीं, लेकिन उनके पास अभी तक मणिपुर के हिंसाग्रस्त हिस्से का संक्षिप्त दौरा करने का समय नहीं है। उन्हें नहीं लगता कि उन्हें मणिपुर के आम लोगों से मिलना चाहिए और उन्हें सांत्वना देनी चाहिए। वे चाहते हैं कि यूक्रेन-रूस के लोगों को युद्ध से मुक्ति मिले। वे इसके लिए प्रयास करते हैं, लेकिन मणिपुरवासियों को जातीय हिंसा की आग से मुक्त कराया जाए, ऐसा उन्हें नहीं लगता। क्या किसी ने उन्हें ऐसा करने से रोका है? अन्य भाजपा शासित राज्यों में चुटकियों में मुख्यमंत्री बदलने वाले मोदी-शाह मणिपुर में अप्रभावी मुख्यमंत्री को हटाने में टालमटोल क्यों कर रहे हैं? मणिपुर जैसे संवेदनशील राज्य में पूर्णकालिक राज्यपाल नियुक्त न करने और असम के राज्यपाल पर मणिपुर का अतिरिक्त कार्यभार सौंपने की मोदी सरकार की क्या ‘मजबूरी’ है? सरसंघचालक के सार्वजनिक रूप से कान उमेठे जाने के बाद भी केंद्र सरकार ने मणिपुर में जातीय हिंसा को लेकर अपने कानों में रूई ठूंस रखी है। गुजरात में एक गणेश विसर्जन जुलूस पर पथराव के बाद ‘सतर्क’ होने वाली केंद्र सरकार मणिपुर में रिमोट नियंत्रित ड्रोन हमलों के बावजूद भी चुप है। इन ड्रोन हमलों से छात्र बिफर गए हैं, लेकिन केंद्र के शासक थरथराए नहीं। यहां तक कि मणिपुर के हिंसाग्रस्त इलाके भी अब जाति के आधार पर विभाजित हो गए हैं। यह सब भयानक है। फिर भी हमारे प्रधानमंत्री को मणिपुर से ज्यादा रूस-यूक्रेन युद्ध की ‘चिंता’ है, लेकिन मणिपुर को लेकर वे ‘लापरवाह’ हैं। कहा जा रहा है कि रूस-यूक्रेन युद्ध रोकने के लिए मोदी सरकार ने रूस को ‘फोर पॉइंट फॉर्मूला’ दिया है, लेकिन मणिपुर का क्या? क्या आपके पास मणिपुर में शांति का कोई ‘फॉर्मूला’ नहीं है? यदि वह नहीं है, तो आग लगा दें अपने फोर पॉइंट फॉर्मूले’ को! पहले मणिपुर की आग बुझाओ और फिर अपने उस फॉर्मूले के ‘फायर ब्रिगेड’ को रूस-यूक्रेन ले जाओ!