भाजपा सरकार बार-बार देश को पांच ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था बनाने का ढिंढोरा पीटती रहती है। मगर यह तभी संभव है जब देश की अर्थव्यवस्था अच्छी अवस्था में हो। अब एक नई रिपोर्ट इसकी पोल खोलती नजर आ रही है।
‘नोमुरा’ द्वारा जारी की गई नई रिपोर्ट के अनुसार, नोटबंदी, जीएसटी लागू किए जाने और उसके बाद कोविड महामारी की वजह से लगातार लगे आर्थिक झटकों के कारण पिछले दशक में खपत की वृद्धि दर उसके पहले के दशक की तुलना में कम रह सकती है।
‘नोमुरा’ ने शुक्रवार को जारी ताजा एशिया इकोनॉमिक मासिक रिपोर्ट में यह कहा है कि शहरी और ग्रामीण दोनों इलाकों में खपत दो लगातार चले खपत सर्वे (२०११-१२ और २०२२-२३ की अवधि के दौरान वृद्धि दर) में चक्रवृद्धि औसत वृद्धि दर (सीएजीआर) इसके पहले की अवधि में हुई वृद्धि की तुलना में कम है। वैश्विक निवेश बैंकर ने राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) द्वारा फरवरी में जारी ताजा घरेलू उपभोग व्यय सर्वे (एचसीईएस) का विश्लेषण करके यह निष्कर्ष निकाला है। ‘नोमुरा’ की गणना के मुताबिक २०१२ से २०२३ के बीच जहां वास्तविक ग्रामीण खपत ३.१ प्रतिशत सीएजीआर रही है, यह २०१०-१२ के बीच ६.६ प्रतिशत थी। इसी अवधि के दौरान वास्तविक शहरी खपत में वृद्धि इस दौरान २.६ प्रतिशत रही, जो पहले ५.२ प्रतिशत थी। २००५-१० की अवधि के दौरान ग्रामीण और शहरी खपत वास्तविक आधार पर क्रमश: ४ प्रतिशत और ४.४ प्रतिशत बढ़ी है। रिपोर्ट में कहा गया है, ‘अगर हम महंगाई दर के लिए उचित तरीके का इस्तेमाल कर उसे व्यय में से घटा दें तो हम वास्तविक खपत व्यय में इसी सीएजीआर के हिसाब से गिरावट पाते हैं। इससे संकेत मिलता है कि यह गिरावट महंगाई की वजह से नहीं है। इससे पता चलता है कि पिछले दशक में नोटबंदी, जीएसटी लागू होने और महामारी जैसे झटकों का असर पड़ा है।’