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गड़े मुर्दे : खाकी से खादी की ओर …राजनीति में किस्मत आजमाने वाले मुंबई के ३ पुलिस कमिश्नरों की कहानी

जीतेंद्र दीक्षित
माना जाता है कि मुंबई पुलिस कमिश्नर का पद राज्य के पुलिस प्रमुख के पद से भी ज्यादा रसूख वाला होता है। आमतौर पर महाराष्ट्र वैâडर के ज्यादातर आईपीएस अफसरों की महत्वाकांक्षा मुंबई पुलिस कमिश्नर बनने की होती है, बजाय राज्य के डीजीपी बनने की। पुलिस कमिश्नर की कुर्सी में ग्लैमर है, ताकत है, सम्मान है और वह सब कुछ है जो कि एक आईपीएस अधिकारी पुलिस की नौकरी करके हासिल करना चाहेगा। इस पद पर आसीन कुछ लोग रिटायर होने के बाद भी ताकतवर बने रहने के लिए सियासत का रास्ता अख्तियार कर लेते हैं। अब तक मुंबई के तीन ऐसे पुलिस कमिश्नर हुए हैं, जिन्होंने खाकी वर्दी उतारने के बाद सफेद लिबास पहनकर चुनाव लड़ा।
पुलिस कमिश्नर से राजनेता बने डॉ. सत्यपाल सिंह का मामला सबसे दिलचस्प है। साल २०१४ में जब लोकसभा चुनाव की घोषणा हुई तब १९८० बैच के मुंबई के पुलिस कमिश्नर थे और पुलिस विभाग में उनकी दो साल की सेवा बाकी थी। इस बीच उन्हें बीजेपी से चुनाव लड़ने का ऑफर आ गया, लेकिन चुनाव मुंबई के बजाय उत्तर प्रदेश के बागपत से लड़ना था, जो कि उनके गांव का संसदीय क्षेत्र था। सिंह ने अपना इस्तीफा महाराष्ट्र सरकार को सौंप दिया, लेकिन वह मंजूर नहीं हो रहा था। बागपत में उनका मुकाबला आरएलडी के नेता अजीत सिंह से होने वाला था। बताते हैं कि अजीत सिंह ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण से निवेदन किया कि वे सत्यपाल सिंह का इस्तीफा स्वीकार न करें। सत्यपाल सिंह के इस्तीफे की खबर सुनकर मैं उनका इंटरव्यू करने पुलिस कमिश्नर ऑफिस पहुंचा। वे वर्दी में थे और उन्हें माटुंगा के षण्मुखानंद हॉल में एक कार्यक्रम को संबोधित करने जाना था। मैंने कार में सफर के दौरान ही उनका इंटरव्यू कर लिया। मेरे इस सवाल पर कि मोदी आपको वैâसे लगते हैं, सत्यपाल लगे मोदी की तारीफ करने। उन्होने यहां तक कह दिया कि मोदी देश के नेतृत्व के योग्य हैं। जैसे ही यह इंटरव्यू मैंने एबीपी न्यूज पर दिखाया बवाल मच गया। सवाल उठाए जाने लगे कि सेवा में मौजूद अफसर, वर्दी पहनकर राजनीतिक बयान वैâसे दे सकता है। उस वक्त केंद्र की सत्ता में कांग्रेस थी और राज्य में भी, जबकि मुंबई के पुलिस कमिश्नर एक बीजेपी के नेता को देश के नेतृत्व के लिए योग्य बता रहे थे। मुख्यमंत्री चव्हाण ने इंटरव्यू में कही गई बातों के लिए सत्यपाल सिंह को खूब फटकार लगाई। सत्यपाल सिंह ने मुझे फोन करके इंटरव्यू न दिखाने के लिए कहा। तब तक इंटरव्यू तीन बार चल चुका था। सत्यपाल सिंह के कहने के बाद मैने इंटरव्यू सिर्फ एक बार और दिखाया और फिर रुकवा दिया, लेकिन मामला आगे बढ़ चुका था। सत्यपाल सिंह का पुलिस में रहना अब सत्ता पक्ष को बर्दाश्त नहीं हो रहा था। कुछ देर बाद ही मुख्यमंत्री ने उनका इस्तीफा मंजूर कर उन्हें स्वैच्छिक सेवा निवृत्ति दे दी। इसके बाद सत्यपाल सिंह ने चुनाव लड़ा और अजीत सिंह को हराकर सांसद बने। उन्हें मोदी मंत्रिमंडल में मंत्री बनने का भी मौका मिला। साल २०१९ में फिर एक बार बीजेपी ने उन्हें टिकट दिया और वे फिर जीते। वर्ष २०२४ में वे चुनाव नहीं लड़ सके, क्योंकि आरएलडी ने बीजेपी के साथ गठबंधन कर लिया और बीजेपी ने यह सीट आरएलडी के लिए छोड़ दी। पहली बार चुनाव जीतने के बाद सत्यपाल सिंह मुंबई में मुझसे होटल रंगशारदा में मिले और पूरी कहानी बताई। उनका कहना था कि मुझे इंटरव्यू देने के कारण सीएम के व्यवहार से उन्हें तनाव तो हो गया था, लेकिन उसी इंटरव्यू ने उनका इस्तीफा भी मंजूर करवाया, जिससे कि चुनाव लड़ने का रास्ता साफ हो गया।
सत्यपाल सिंह की ही तरह मुंबई के पूर्व पुलिस कमिश्नर अरूप पटनायक भी लोकसभा चुनाव लड़ चुके हैं। १९७९ बैच के पटनायक मुंबई के ३६ वें पुलिस कमिश्नर थे। वे २०१५ में रिटायर हुए और २०१८ में अपने गृहप्रदेश उड़ीसा से उन्होंने राजनीति की दुनिया में प्रवेश किया। २०१९ में बीजू जनता दल ने उन्हें भुवनेश्वर से
अपना उम्मीदवार बनाया, लेकिन वह सीट बीजेपी जीत गई। वर्ष २०२४ में पार्टी ने फिर से उन्हें पुरी लोकसभा सीट से उम्मीदवारी दी, लेकिन इस बार भी बीजेपी के संबित पात्रा ने उन्हें करीब लाख वोटों के अंतर से हरा दिया। भले ही पटनायक चुनाव न जीत पाए हों, लेकिन राज्य में जब नवीन पटनायक की सरकार थी, तब वे कई अहम सरकारी पदों पर रहे और उन्हें वैâबिनेट मंत्री का दर्जा दिया गया था। चुनाव लड़ने वाले पूर्व पुलिस कमिश्नरों की फेहरिस्त में सबसे ताजा नाम संजय पांडेय का है। १९८६ बैच के संजय पांडेय साल २०२२ में मुंबई के पुलिस कमिश्नर बने। उसी साल जून में रिटायर होने के बाद एक आपराधिक मामले में सीबीआई ने उनको गिरफ्तार कर लिया। आईआईटी कानपुर से स्नातक पांडेय महाराष्ट्र पुलिस में डीसीपी से लेकर डीजीपी रैंक तक काम कर चुके हैं। एक वक्त ऐसा था, जब उन्होंने एक सख्त और ईमानदार पुलिस अधिकारी की छवि अर्जित कर ली थी। अब अपनी उसी छवि को वे राजनीतिक तौर पर इस्तेमाल करना चाहते हैं। उन्होंने एक संगठन बनाया है, जिसके जरिए वे मुंबई के वर्सोवा इलाके से इसी साल होने जा रहे विधानसभा का चुनाव लडेंगे। महाराष्ट्र विधानसभा में अरुण गवली, पप्पू कालानी और हितेंद्र ठाकुर जैसे विवादित नाम जगह पा चुके हैं। देखना दिलचस्प होगा कि क्या कोई खाकी वर्दीवाला भी वहां पहुंच पाता है।
(लेखक एनडीटीवी के सलाहकार संपादक हैं।)

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