– १६६ वर्ष पुराने जीआईसी में एल्युमनाई मीट…उमड़ा भावनाओं का ज्वार
-संस्थान के लिए योगदान और गुप्तदान का चला सिलसिला
विक्रम सिंह / सुल्तानपुर
ब्रिटिश हुकूमत में सन सत्तावन की पहली क्रांति के बाद स्थापित सुल्तानपुर शहर के करीब 166 वर्ष पुराने जीआईसी में शनिवार को एलुमनाई मीट आयोजित की गई, जिसमें छात्रों की कई पीढ़ियां इकट्ठा हुईं। भावना का ज्वार उमड़ पड़ा। ‘परदेशी’ हो चुके तमाम पूर्व छात्र इस पुरातन छात्र सम्मेलन से ‘जूम’ एप के जरिए कनेक्ट हुए। अपने संस्थान के लिए किसी ने ‘गुप्तदान’ कर आर्थिक सहयोग किया तमाम ने निरन्तर योगदान का संकल्प लिया।
सुल्तानपुर के राजकीय इंटर कॉलेज में शनिवार को दीपोत्सव जैसा ही माहौल नजर आया। 166 वर्षों के इतिहास में पहली बार बड़े पैमाने पर आयोजित एल्युमनाई मीट के बहाने (देश-परदेश को रोशन कर रहे) सैकड़ों दीपकों का जमघट लगा। प्रिंसिपल मनोज तिवारी की पहल पर हुए इस महत्वपूर्ण आयोजन का श्रीगणेश किया। एसपी सोमेन बर्मा ने दीप जलाकर। परिसर में सुबह दस बजे से ही बाहरी जिलों में विविध कार्यक्षेत्रों में स्थापित हो चुके स्थानीय पूर्व छात्रों के आने का क्रम प्रारंभ हो गया, जो निरंतर चलता रहा।
मंच पर विराजमान थे पूर्व प्राचार्यगण वयोवृद्ध डॉ. सिब्ते हसन, सीके सिंह, एसबी यादव व अनिल कुमार सिंह आदि, जिन्हें देखकर सामने मौजूद छात्रों की कई पीढ़ियों भावविह्वल हुई जा रही थीं। ‘गूगल ज़ूम’ के जरिए एलईडी स्क्रीन पर कनेक्ट हो रहे परदेशी छात्रों की भी बड़ी जमात कतार में लगी रही। इस आयोजन को लेकर अपना मैसेज देने के लिए। ‘यादों के झरोखों से’ कार्यक्रम में विद्यालय से जुड़ी स्मृतियां बांटने का वक्त आया तो सिलसिला ऐसा चल निकला कि थमा ही नहीं। हरेक व्यक्ति ने जीआईसी की अनूठी यादों की अपनी अपनी पोटलियां खोलनी शुरू कीं तो खुलती ही चली गईं। वरिष्ठ पत्रकार राजखन्ना, ख्यातिलब्ध एडवोकेट सुधांशु , सामाजिक कार्यकर्ता रज्जन सेठ, जीएसटी कमिश्नर सुशील सिंह, आईएएस कुमार विनीत, हाई कोर्ट अधिवक्ता वीके सिंह, पूर्व छात्रों में वरिष्ठतम 1953 बैच के रामशब्द पांडेय, आनंद कुमार, वैज्ञानिक डॉ. प्रभाकर मिश्र, डॉ. राजेश पांडेय के जी एम सी, ए डी जे निरंजन चौरसिया, उप जिलाधिकारी विपिन द्विवेदी, गिरीश द्विवेदी, जी एस टी कमिश्नर सुशील सिंह, एन एच आई आंध्र प्रदेश के मैनेजिंग डायरेक्टर आर के सिंह, मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य डॉ. सलिल श्रीवास्तव, डॉ. सुधाकर सिंह, इंजीनियर विपिन श्रीवास्तव, डॉ. डीएस मिश्र, संजय लोहिया, डॉ. विजय गुप्त, अमित श्रीवास्तव, कमल श्रीवास्तव जैसे अनेक बड़े नाम, जिन्होंने इसी परिसर में पढ़ना-लिखना सीखा और अब अपनी पहचान कायम कर चुके हैं, मौजूद थे। पूर्व प्राचार्य सीके सिंह तो सन 1960 में यहीं छात्र रहे और फिर अध्यापक व प्राचार्य भी यहीं बने। उनके पुत्र शहर के जाने माने डेंटल चिकित्सक डॉ. मनोज सिंह भी यहीं पढ़े- लिखे और आगे बढ़े।
दिन भर चलता रहा आयोजन और फिर सम्मान व सहभोज के मध्य विभिन्न सत्रों के पासआउट विद्यार्थियों ने विद्यालय के लिए योगदान का संकल्प लिया। तमाम ऐसे भी ‘परदेशी’ हो चुके पूर्व छात्रों ने अपने संस्थान की उन्नति की खातिर ‘गुप्तदान’ भी कर डाला। जब तक कार्यक्रम चलता रहा भावनाएं बहती रहीं।