धीरेंद्र उपाध्याय / मुंबई
महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव अब चरम पर पहुंच गया है। चुनाव में दो दिन पहले ही घाती सरकार ने आंगनवाड़ी और आशा सेविकाओं को प्रतिमाह १५,००० रुपए मानधन और सुरक्षा कवच देने का झांसा दिया है। यह सभी लॉलीपॉप उनके वोटों को बटोरने के लिए किया गया है। हालांकि, मानधन बढ़ाने और अन्य मांगों को लेकर चार से पांच महीनों तक वे बारिश, गर्मी और ठंडी में अनशन, मोर्चा, हड़ताल, धरना प्रदर्शन करती रहीं। साथ ही घाती सरकार द्वारा की जा रही अनदेखी के घाव को सहती रहीं, लेकिन जैसे ही चुनाव नजदीक आया तो उनके मानधन में वृद्धि करने का पैâसला ले लिया गया। इसी को भुनाने के लिए अब इस हथकंडे के जरिए मरहम लगाने का काम महायुति सरकार कर रही है। लेकिन सरकार के सौतेलेपन को आंगनवाड़ी और आशा सेविकाएं भूली नहीं हैं। उन्होंने मन बना लिया है कि चुनाव में वे इसका बदला लेंगी।
उल्लेखनीय है कि आंगनवाड़ी सेविकाएं और आशा सेविकाएं अपने अधिकारों के लिए कई महीनों तक लड़ती रहीं। इस बीच उन्होंने धरना प्रदर्शन, अनिश्चितकालीन अनशन से लेकर मोर्चा तक निकाला। महिला व बाल विकास मंत्री अदिति तटकरे ने कई बार आश्वासन दिया, लेकिन उनकी मांगों को लगातार यह सरकार अनदेखी करते रही। इस बीच सेविकाओं की जिद के आगे आखिरकार सरकार को झुकना पड़ा और उनके मानधन वृद्धि वाले प्रस्ताव को मंत्रिमंडल में लाया गया। लेकिन आज तक शासनादेश जारी नहीं किया गया। लेकिन अब इसे चुनावी मुद्दा बनाकर घाती सरकार भुनाने की कोशिश में जुट गई है। दो दिन पहले सूबे के मुख्यमंत्री ने मैनिफेस्टो घोषित किया है, जिसमें आंगनवाड़ी और आशा सेविकाओं को प्रति महीने १५ हजार रुपए मानधन और सुरक्षा कवच देने का वादा करते हुए एक तरह से झांसा देने का काम किया है। राज्य में १.१३ लाख केंद्रों में २.२६ लाख आंगनवाड़ी सेविकाएं और सात हजार आशा सेविकाएं और ६,२०० ग्रुप प्रमोटर सेवारत हैं। इन सभी के घरों में यदि अनुमानित चार वोटर भी पकड़े तो करीब ९,४६,८०० मतदाता हैं।