-खतरे में पड़ेंगे हजारों रोजगार; गरीबों का नाश्ता
सुनील ओसवाल / मुंबई
मुंबई के सबसे लोकप्रिय नाश्ता वड़ा पाव पर ‘घाती’ सरकार की कुदृष्टि पड़ गई है। इस कारण अब मुंबईकरों को वड़ा पाव के वांदे हो सकते हैं। असल में सरकार की नीति के तहत अब वड़ा पाव विक्रेताओं को इसकी ट्रेनिंग दी जाएगी और फिर उनकी परीक्षा ली जाएगी। इसके बाद ही उन्हें वड़ा पाव बनाने का लाइसेंस दिया जाएगा। ऐसे में माना जा रहा है कि ‘घाती’ सरकार की इस बेरोजगार नीति का व्यापक असर होगा और हजारों गरीबों का रोजगार और नाश्ता दोनों खतरे में पड़ जाएंगे।
मिली जानकारी के अनुसार, ‘घाती’ सरकार के इशारे पर डबल इंजिन में गुंथी केंद्र सरकार ने एक फरमान जारी किया है। सरकार के इस कदम से विपक्ष की ओर से सरकार पर वड़ा पाव विक्रेताओं को बेरोजगार करने की नई चाल चलने का आरोप लगाया जा रहा है।
पहले कराओ पंजीकरण वर्ना नहीं बेच सकते वड़ापाव!
मुंबई और वड़ापाव का अटूट रिश्ता है। ६ दशक से भी ज्यादा वक्त से चले आ रहे इस सस्ते व स्वादिष्ट नाश्ते को भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण के माध्यम से प्रशिक्षण दिया जाएगा। इसके बाद उनकी परीक्षा ली जाएगी और इसमें पास होने के बाद ही उन्हें वड़ापाव बिक्री का लाइसेंस दिया जाएगा। इसके साथ ही इस योजना के तहत शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के सभी खाद्य विक्रेताओं और व्यापारियों के लिए खाद्य सुरक्षा के लिए प्रशिक्षण और पंजीकरण अनिवार्य है। यदि विक्रेता व्यावसायिक पंजीकरण से परहेज करते हैं, तो उनके प्रमाणपत्र का नवीनीकरण नहीं किया जाएगा।
बता दें कि अभी तक मुंबई का अभिन्न हिस्सा वड़ापाव बनाने के लिए पहले कोई ट्रेनिंग नहीं होती थी, लेकिन ऐसा लगता है कि केंद्र की मोदी सरकार ने अब अपना रुख वडापाव की ओर कर लिया है। मुंबई और उसके आसपास वड़ापाव विक्रेता सड़क किनारे इन्हें बेचते हैं। हालांकि, केंद्र सरकार ने आत्मनिर्भर निधि के रूप में स्ट्रीट वेंडर्स को ५०,००० रुपए का ब्याज मुक्त ऋण देने की घोषणा की थी। इसमें वड़ापाव बेचने वाले भी शामिल हैं। मिली खबर के अनुसार, महाराष्ट्र से ऋण के लिए १३,५१,९५१ आवेदन किए गए, जिनमें से ११,१८,२८९ को ऋण प्राप्त हुए। इसमें मुंबई के वड़ापाव निर्माता और विक्रेता भी शामिल थे।
वड़ापाव का इतिहास
वड़ा पाव का जन्म १९६६ में दादर स्टेशन के बाहर अशोक वैद्य के फूड स्टॉल में हुआ था। उन्होंने उबले आलू को बेसन में लपेटकर तला और बटाटा वड़ा बनाना शुरू किया। १९७० से १९८० के दशक में मुंबई में कंपनियां बंद होने लगीं। फिर यह मजदूरों के जीवनयापन का आधार बन गया। ऐसे वड़ापाव पर सरकारी नियंत्रण से विक्रेता असमंजस में हैं।
इसके साथ ही इस योजना के तहत शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के सभी खाद्य विक्रेताओं और व्यापारियों के लिए खाद्य सुरक्षा के लिए प्रशिक्षण और पंजीकरण अनिवार्य है।
व्यवसाय छीनने की मंशा
प्रशिक्षण के नाम पर सरकार की मंशा बेरोजगारी बढ़ाने की है। इस अवसर पर मराठी और उत्तर भारतीयों के हाथों से वडापाव व्यवसाय को छीनने की सरकार की मंशा झलकती है, जिसे शिवसेनाप्रमुख बालासाहेब ठाकरे ने शुरू किया था।
खमण-ढोकला लाना तो मकसद नहीं
वडापाव महाराष्ट्र की पहचान है, और अब इस पर केंद्र सरकार की तरफ से हमला हो रहा है। वड़ा पाव बनाने और बेचने वाले ज्यादातर लोग मराठी और हिंदी भाषी हैं। इस फैसले से कई लोग बेरोजगार हो जाएंगे। सरकार का मकसद कहीं महाराष्ट्र में गुजरात का खमण-ढोकला लाना तो नहीं है? यह मराठी लोगों को प्रशिक्षण के नाम पर बेरोजगार करने की साजिश है।
–विजय वडेट्टीवार, (नेता विपक्ष)
-अतुल लोंढे (प्रवक्ता कांग्रेस)