आसमां पर निकला सूरज ऐसे ही निकले हो तुम
शीत वाली धूप जैसे गुनगुने उजले हो तुम
खाली डिब्बे से लुढ़कते रह रहे हो रात दिन
लस्सी के इस झाग जैसे ग्लास में उछले हो तुम
दोस्ती थी तुमसे यारा जान भी कुर्बान थी
दुश्मने जाना हमारे जन्म के पिछले हो तुम
जिंदगी की राह में आयी हैं काफी मुश्किलें भी
फिर भी अपनी हिम्मतों से वक्त पे संभले हो तुम
ख्वाब मेरे थे ‘कनक’ तेरे तसव्वुर को लिए
देखते ही देखते पर किस कदर बदले हो तुम।
-डॉ. कनक लता तिवारी