बेटियाँ आ गईं निशाने पर
आता ग़ुस्सा है अब ज़माने पर
ढूँढने पर नहीं बशर पानी
लग गई आग हर ठिकाने पर
तीरगी ख़ुद ही भाग जाएगी
आस का एक दिया जलाने पर
बन्द है दिल का तेरे दरवाज़ा
अब न खुलता है खटखटाने पर
बाग में खिल गये हैं फूल नए
फ़ाख़ताओं के चहचहाने पर
हौसले और बढ़ेंगे अपने
आए क़िस्मत जो आज़माने पर
होगी उजली सुबह ‘कनक’ फिर से
नन्हें चेहरों के मुस्कराने पर
डॉ कनक लता तिवारी