आज हम तेरा दर छोड़कर आ गए
भूल कर आशिकी हमसफर आ गए
रात तकरार थी दिन में थी बे-रुखी
साथ फिर भी सनम बे-खबर आ गए
वार सीने पे झेला बड़ा दर्द था
हम तो अखबार में बन खबर आ गए
ख़्वाहिशें तो नहीं थीं नजर में तेरी
तेरी गलियों में क्या सोचकर आ गए
काट ली अब विदेशों में जो जिंदगी
छोड़ कर दौलतें अपने घर आ गए
राह पर चल दिए फिक्र अंजान थी
होश आया कदम मोड़ कर आ गए
ये कनक सोचना था, तभी दिल को जब
कब्र खुद की ही तुम खोदकर आ गए।
-डॉ. कनक लता तिवारी