गजल-धुआं ही धुआं

नीला दिखता नहीं आसमां शहर में
हर तरफ है धुआं ही धुआं शहर में
आंधियां जब चलीं गिर गए सब शजर
सर पे कोई नहीं सायबां शहर में
जंगलों में हुए शहर तब्दील अब
आदमीयत के गुम हैं निशां शहर में
किसको जाकर दिखाऊं मेरा जख्मी दिल
कोई मिलता नहीं मेहरबां शहर में
चार सू उड़ रही है हवाओं में राख
अम्न का जल गया आशियां शहर में
आ गई याद अजदाद की आबरू
जब उछलने लगी पगड़ियां शहर में
अब यही देखती है कनक रिश्तों में
रंजिशें, तल्ख़ियां, दूरियां शहर में
-डॉ. कनक लता तिवारी

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