सामना संवाददाता / नई दिल्ली
अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, यूरोप सहित उन देशों में जहां साल के बारहों महीने ठंडी पड़ती है, अब वहां गर्मी बढ़ गई है। यह परिवर्तन आज या पिछले कुछ समय से नहीं, बल्कि पिछली शताब्दी से की जा रही मानवीय गतिविधियों का परिणाम है। यह जानकारी एक शोध के जरिये सामने आई है। बताया जाता है कि चीनी शोधकर्ताओं और ब्रिटेन के मौसम विभाग द्वारा किए गए निष्कर्ष एक साइंस जर्नल में प्रकाशित किए गए हैं, जो इस बात का साक्ष्य प्रस्तुत करते हैं कि जलवायु परिवर्तन वैश्विक वर्षा की गतिविधियों को अधिक अस्थिर बना रहा है। यह बात भी सामने आई है कि जहां बारिश अधिक होती थी वहां कम बारिश या सूखा पड़ रहा है और जहां सुखा पड़ा रहता था वहां अधिक बारिश हो रही है।
चिंताजनक बात यह है कि ग्लोबल वार्मिंग जारी रहने के कारण समस्या और भी बदतर हो जाएगी। इससे सूखे और बाढ़ दोनों का खतरा बढ़ जाता है, जो ऑस्ट्रेलिया के लिए एक प्रासंगिक मुद्दा है। शोध से पता चलता है कि १९०० के दशक से वर्षा में परिवर्तनशीलता में वृद्धि हुई है। वैश्विक स्तर पर हर दशक में वर्षा में दिन-प्रतिदिन की परिवर्तनशीलता में १.२ प्रतिशत की वृद्धि हुई है। अध्ययन किए गए भूमि क्षेत्रों के ७५ प्रतिशत से अधिक क्षेत्रों में वर्षा की परिवर्तनशीलता में वृद्धि हुई है। यूरोप, ऑस्ट्रेलिया और पूर्वी-उत्तरी अमेरिका विशेष रूप से इससे प्रभावित हुए हैं। ये ऐसे क्षेत्र हैं, जिनके लिए विस्तृत और दीर्घकालिक अवलोकन उपलब्ध हैं।
इन निष्कर्षों को समझने के लिए, यह समझना जरूरी है कि कौन से कारक यह निर्धारित करते हैं कि एक तूफान कितनी भारी बारिश पैदा करता है और ये कारक ग्लोबल वार्मिंग से वैâसे प्रभावित हो रहे हैं। पहला कारक यह है कि हवा में कितना जलवाष्प मौजूद है। गर्म हवा में ज्यादा नमी हो सकती है। वैज्ञानिकों को इस समस्या से लंबे समय से पता है।