ॐ में है सारी सृष्टि समाई।
ॐ सबकी सांसों में है समाया।
ॐ से निर्मित है यह सृष्टि।
ॐ ब्रह्मा-विष्णु-महेश नहीं,
ॐ ‘स्पंदन’ है ‘शक्ति’ का।
ॐ कण-कण में है समाया।
ॐ निराकार-निर्गुण,
ॐ साकार-सगुण भी है।
ॐ जाति-धर्म-संप्रदाय से परे,
ॐ सबके भीतर और है बाहर भी।
ॐ सिर्फ तीन शब्द ही नहीं,
ॐ ‘निरक्षर’ है, भाषा से परे।
ॐ उच्चारण से तन-मन होता प्रफुल्लित।
ॐ अंतःकरण की गहराई में है।
‘ज्योतिर्मय की ‘साधना’ है- ‘आनंददायक।
ॐ से मिलता है आत्मसाक्षात्कार,
ॐ रूप-रस-गंध आनंद से ओत-प्रोत।
ॐ की महिमा लिखी न जाए,
ॐ ‘भक्ति-साधना’ का रहस्य ‘सद्गुरु’ ही समझाएं।
-आर.डी.अग्रवाल “प्रेमी” मुंबई