मुख्यपृष्ठनमस्ते सामनालबादा ओढ़ आते भगवान

लबादा ओढ़ आते भगवान

लबादे पर लबादा ओढ़ रहा इंसान
छुपा रहा अपनी पहचान।
शब्दों को घुमा-घुमा कर बोल रहा
अपना उल्लू साध रहा
वेश धार साधू का
घूम रहा शैतान।
नेकी पर चलने की सीख
औरों को देता
अपने आप खेल रहा
लोगों से नापाक खेल।
पहन धर्म गुरु का चोला
पाप कुंड में करे स्नान
बच्चियों, बेटियों का करता शोषण
बन गया पूरा शैतान।
भोले-भाले आपत्तियों से जूझ रहे लोग
इन्हें मान लेते भगवान।
अपनी सम्पत्ति डेरा बनाते
गरीब जनता से लेते दान।
इनकी झूठी तसल्लियों में पाते,
दुखी कुछ पलों का आराम।
झूठ फरेब का लबादा ओढ़े
कब तक छुपाएंगे अपनी पहचान।
जब काली करतूतें होतीं उजागर
कर जाते तत्काल पलायन।
सौ सुनार की, एक लौहार की
आ जाता वह दिन जब
उतरता इनका नकाब
हाथों में होती हथकड़ी
बढ़ जाती कारागारों की शान।
मृत आत्मा वालों अपने चक्षु खोलो
जिस दिन पाप-पुण्य का होगा हिसाब
रसातल में भी न मिलेगा स्थान।
-बेला विरदी

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