राजन पारकर
महाराष्ट्र के एसटी (स्टेट ट्रांसपोर्ट) यात्रियों को हाल ही में पता चला कि उनकी जेब से कुछ और सिक्के खिसकने वाले हैं। जी हां! एसटी के किराए में बढ़ोतरी कर दी गई है। मगर मजे की बात यह है कि इसी राज्य के मंत्री प्रताप सरनाईक जी इस किराए वृद्धि से बिल्कुल अनजान हैं!
अब सोचिए, जब खुद मंत्री जी को पता नहीं तो आम जनता आखिर किससे सवाल करे? यह वैसा ही है जैसे कोई गृहिणी कहे, ‘मुझे नहीं पता कि मेरे घर में गैस सिलिंडर है या नहीं!’
एसटी के मामले में मंत्री जी के इस अनभिज्ञता भरे बयान के दो ही कारण हो सकते हैं या तो वाकई उन्हें कुछ नहीं पता या फिर उन्हें सब पता होते हुए भी ‘मुझे नहीं पता’ कहना एक नया ट्रेंड बन गया है। दूसरी संभावना ज्यादा सही लगती है, क्योंकि महाराष्ट्र में ‘मुझे नहीं पता’ कहने वाले मंत्रियों की संख्या दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है।
अब इस किराए वृद्धि का असर देखिए। पहले ही एसटी बसें लाल से काली और काली से फटीचर हो चुकी हैं, ऊपर से अब उन्हीं बसों में महंगे किराए पर सफर करना पड़ेगा। जनता की जेब खाली कर दो और फिर कहो—‘महाराष्ट्र नहीं रुकता!’ मतलब, यात्रियों की कमर तोड़ दो और उन्हें मजबूरी में सफर करने पर मजबूर करो!
अब एसटी प्रशासन अपनी किराया वृद्धि को जायज ठहराने के लिए कहेगा—’इंधन महंगा हो गया है,’ ‘सप्लाई चेन पर असर पड़ा है,’ वगैरह-वगैरह। लेकिन जब मंत्री साहब खुद कह रहे हैं कि उन्हें कुछ नहीं पता, तो ये तर्क भी मजाक ही लगते हैं।
अगर महाराष्ट्र के असली मराठा इस पर प्रतिक्रिया देते तो शायद कहते- ‘साहेब, पहले चेक करिए कि आपका टिकट कट चुका है या नहीं!’ कोई दूसरा कहता- ‘साहेब, आपका ध्यान कहां रहता है? कहीं एसटी में बिठाने की साजिश तो नहीं?’
अगर आचार्य अत्रे होते, तो शायद एक जबरदस्त कार्टून बना देते- मंत्री सरनाईक जी एक एसटी बस की छत पर खड़े हैं, नीचे यात्री चीख रहे हैं और मंत्री साहब कह रहे हैं-‘अरे, मुझे तो पता ही नहीं था!’
महाराष्ट्र यूं ही नहीं रुकेगा, यह सच है। लेकिन इस ‘न रुकने’ की प्रक्रिया में जनता की जेब जरूर कटती रहेगी, मंत्री अनजान बने रहेंगे और जनता तमाशा देखती रहेगी।
अब इस कहानी का अंत क्या है? बहुत सीधा—हर कोई अपनी जेब को कसकर पकड़े, एसटी से मासूमियत से पूछे- ‘भाई, तुम्हारा किराया आखिर कहां जाकर रुकेगा?’ और अनजान मंत्रियों को प्रणाम करके आगे बढ़ जाए!