मुख्यपृष्ठस्तंभगपशप : `उदय सामंत: राजनीति के `पलटीमार'

गपशप : `उदय सामंत: राजनीति के `पलटीमार’

राजन पारकर

उदय सामंत, जो एकनाथ शिंदे गुट के प्रमुख चेहरों में से एक है। हाल के दिनों में भारतीय राजनीति के `सिंहासन के खेल’ का एक अद्वितीय पात्र बन गए हैं। उनके राजनीतिक सफर को देखना किसी नाटकीय फिल्म की पटकथा से कम नहीं लगता। राष्ट्रवादी कांग्रेस से शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) पक्ष और फिर शिंदे गुट में उनका छलांग लगाना, यह दर्शाता है कि राजनीति में विचारधारा से अधिक सुविधा और सत्ता का महत्व होता है।
अगर उदय सामंत के व्यक्तित्व का वर्णन किया जाए, तो वे राजनीति के `रोलर कोस्टर’ माने जा सकते हैं। आज वे जिस भी पार्टी में हों, वे उस पार्टी की विचारधारा के प्रति `समर्पित’ होने का दावा करते हैं। शिवसेना में रहते हुए उन्होंने शिवसेना की परंपराओं और बालासाहेब ठाकरे के सिद्धांतों की कसम खाई थी, लेकिन जैसे ही सत्ता की गंध बदली वे शिंदे गुट में कूद गए। इस तेजी को देखकर ऐसा लगता है जैसे राजनीति में `मौसम वैज्ञानिक’ की उपाधि अब किसी और को नहीं, बल्कि उदय सामंत को मिलनी चाहिए।
शिंदे गुट में शामिल होने के बाद उदय सामंत ने तुरंत यह कहना शुरू कर दिया कि `यह निर्णय जनहित में लिया गया है।’ लेकिन यहां सवाल यह है कि यह जनहित का कौन-सा मॉडल है, जहां नेता अपनी पार्टी और विचारधारा को बदलते हुए जनता को भूल जाते हैं? दरअसल, यह जनहित नहीं, बल्कि `पदहित’ का मॉडल है।
उदय सामंत के इस निर्णय पर सोशल मीडिया में भी जमकर व्यंग्य किया गया। किसी ने उन्हें `पलटीमार सामंत’ कहा, तो किसी ने `राजनीति का गिरगिट’। उनके इस कदम ने यह साबित कर दिया कि राजनीति में कोई स्थायी दुश्मन या दोस्त नहीं होता, बल्कि केवल स्थायी हित होते हैं।
एकनाथ शिंदे के साथ खड़े होकर सामंत ने दावा किया कि वे महाराष्ट्र की जनता की सेवा करने के लिए यह सब कर रहे हैं। लेकिन जनता जानती है कि यह सेवा कम और `मंत्री पद’ की सेवा अधिक है। सामंत की इस यात्रा में उनके भाषणों और दावों में एक खास तरह की कॉमेडी देखने को मिलती है। उदाहरण के लिए, जब वे ठाकरे पक्ष में थे, तो उन्होंने कहा था कि `शिवसेना मेरी आत्मा है।’ लेकिन अब शिंदे गुट में आने के बाद वे कहते हैं,`एकनाथ शिंदे ही असली शिवसेना हैं।’ यह दोहराव यह बताने के लिए काफी है कि राजनीति में आत्मा और शरीर का रिश्ता कब बदल जाए, इसका कोई भरोसा नहीं।
महाराष्ट्र की राजनीति में ऐसे व्यंग्यात्मक पात्रों की कोई कमी नहीं है, लेकिन उदय सामंत ने खुद को विशेष बना लिया है। उनका हर कदम, हर बयान, हर पलटी एक नया मजाक तैयार करता है। राजनीति में ऐसे नेता जनता को यह सिखाते हैं कि विचारधारा और सिद्धांत केवल भाषणों तक सीमित होते हैं, असली खेल सत्ता और पद का होता है।
इस व्यंग्यात्मक नाटक में सबसे दिलचस्प बात यह है कि उदय सामंत जैसे नेताओं के बावजूद, जनता अब समझदार हो रही है। वे नेताओं के `पलटीमार’ स्वभाव को पहचानने लगे हैं। हो सकता है कि आने वाले समय में, जनता भी उन्हें उसी तरह `पलटी’ देने के लिए तैयार हो जाए।

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