– अधिकारी मौज में लोकराज्य पत्रिका का टाइटल खतरे में
सामना संवाददाता / मुंबई
राज्य सरकार पिछले ढाई वर्षों से राज्य में खोखले दावे और दिखावे कर रही है। यह सरकार जमकर फर्जी काम कर रही है। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि सरकार की लोकराज्य नामक पत्रिका केंद्र सरकार के आरएनआई के रिकॉर्ड पर अवैध हो चुकी है, लेकिन सरकार हैं कि इसी पत्रिका में अपने बड़े-बड़े दावे और झूठे दिखावे कर रही है। आरएनआई रिकॉर्ड के अनुसार, लोकराज्य पत्रिका डीएक्टिवेट हो गई है, जबकि एक समय में यह मासिक पत्रिका राज्य की सबसे अधिक खपत वाली पत्रिका के रूप में जानी जाती थी।
प्राप्त जानकारी के अनुसार, इस पत्रिका का रजिस्ट्रेशन ही डीएक्टिवेट श्रेणी में चल गया है। आरएनआई विभाग ने इस पत्रिका डीएक्टिवेट सूची में डाल दिया है। आश्चर्य तो यह है कि पिछले १३ सालों से यह पत्रिका डीएक्टिवेट हो जाने के बावजूद सरकार को इसकी सुध नहीं है, जबकि केंद्रीय सूचना प्रसारण मंत्रालय के तहत आनेवाले आरएनआई विभाग ने कई बार महाराष्ट्र के सूचना एवं जनसंपर्क निदेशालय को पत्र द्वारा सूचित किया है, लेकिन इस सरकार के एक भी प्राधिकृत अधिकारी ने इस पर कोई गंभीर संज्ञान नहीं लिया है।
इस बारे में शोध पत्रकार विश्वभूषण तिवारी ने महाराष्ट्र के राज्यपाल महोदय को पत्र लिखकर एवं आरटीआई के तहत जानकारी मांग कर राज्य के सूचना एवं जनसंपर्क निदेशालय विभाग के लोकराज्य शाखा के अधिकारियों की लापरवाही की पोल खोल दी है। विश्वभूषण तिवारी ने कहा कि लोकराज्य पत्रिका का टाइटल रजिस्ट्रेशन दिनांक १८ अप्रैल २०११ से निष्क्रिय हो चुका है। आरएनआई ने इस बारे में राज्य सरकार को कई बार याद दिलाया है। यहां तक कि कई वर्षों की लेखा परीक्षण रिपोर्ट नहीं जमा किए जाने की वजह से दंडित भी कर चुका है,।लेकिन अधिकारी मौन हैं। इस बारे में राज्य के सूचना एवं जनसंपर्क विभाग के निदेशक राजेंद्र कांबले ने बताया कि इसकी सूचना मिल चुकी है। विभाग अपने स्तर पर काम कर रहा है। लोकराज्य पत्रिका मराठी, उर्दू और इंग्लिश में प्रकाशित की जाती है। समय-समय पर यह हिंदी और गुजराती सहित अन्य भाषाओं में भी प्रकाशित होती रही है।