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आग से न खेलें राज्यपाल,  केरल सरकार की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने दिखाई सख्ती, केंद्र सरकार को भेजा नोटिस

सामना संवाददाता / नई दिल्ली
जिन राज्यों में भाजपा सत्ता में नहीं है, वहां वह सरकारों को काम करने नहीं देती। मोदी सरकार के दूत राज्यपाल सरकार के काम में नित नए अड़ंगे लगाते हैं। ऐसे में कई विपक्ष शासित राज्यों ने राज्यपालों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है। सुप्रीम कोर्ट ने भी इस पर सख्त रुख अपनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपालों को काफी नसीहतें दी हैं। इनमें पंजाब, केरल व तमिलनाडु की सरकारों ने शीर्ष अदालत की शरण ली है। अब केरल के मामले में सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सख्ती दिखाते हुए यह कहकर निशाना साधा है कि उन्हें आग से नहीं खेलना चाहिए और विधेयकों में बाधा नहीं डालनी चाहिए। इससे पहले पंजाब के राज्यपाल को नोटिस जारी किया गया था। अब केरल सरकार की याचिका के बाद वेंâद्र सरकार को नोटिस भेजकर राज्यपाल की देरी के बारे में जवाब देने का आदेश दिया गया है।
गौरतलब है कि पंजाब के बाद, केरल और तमिलनाडु ने अपने राज्यों में लंबित विधेयकों पर सहमति न देने की राज्यपाल की नीति के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है। इस मामले में सोमवार को सुनवाई हुई। मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति पारदीवाला और न्यामूर्ति मनोज मिश्रा की संविधान पीठ के समक्ष सुनवाई हुई। केरल सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के सामने दलील रखते हुइ कहा कि राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान विधानसभा से पारित विधेयकों को मंजूरी देने में देरी कर रहे हैं। यह लोगों के अधिकारों का हनन है। आठ विधेयक राज्यपाल के पास सात महीने से और दो, एक साल से लंबित हैं और अभी तक स्वीकृत नहीं हुए हैं। केरल सरकार ने अपनी दलील में कहा, इनमें से कई बिल जनहित से जुड़े हैं। इस तर्वâ को स्वीकार करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपाल की इस लेटलतीफी के लिए वेंâद्र सरकार को नोटिस भेजा है, जिसमें कहा गया है कि राज्यपाल का यह व्यवहार संविधान के अनुच्छेद १४ का उल्लंघन है।
तीन साल से क्या कर रहे थे राज्यपाल?
तमिलनाडु में ‘१० विधेयकों’ के मामले में सुप्रीम कोर्ट का सवाल
तमिलनाडु के राज्यपाल आर.एन. रवि के कार्यकाल की कड़ी आलोचना करते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को जनवरी २०२० से प्रस्तुत बिलों पर सहमति देने में देरी के लिए उन्हें फटकार लगाई। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्यपाल की निष्क्रियता चिंता का विषय है।
तमिलनाडु के राज्यपाल द्वारा १० विधेयक वापस भेजे जाने के बाद राज्य सरकार ने विधानसभा का विशेष सत्र बुलाया और विधेयकों को फिर से पारित कराया।

जिन राज्यों में भाजपा सत्ता में नहीं है, वहां वह सरकारों को काम करने नहीं देती। मोदी सरकार के दूत राज्यपाल सरकार के काम में नित नए अड़ंगे लगाते हैं। ऐसे में कई विपक्ष शासित राज्यों ने राज्यपालों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है। सुप्रीम कोर्ट ने भी इस पर सख्त रुख अपनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपालों को काफी नसीहतें दी हैं। इनमें पंजाब, केरल व तमिलनाडु की सरकारों ने शीर्ष अदालत की शरण ली है। अब केरल के मामले में सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सख्ती दिखाते हुए यह कहकर निशाना साधा है कि उन्हें आग से नहीं खेलना चाहिए और विधेयकों में बाधा नहीं डालनी चाहिए। इससे पहले पंजाब के राज्यपाल को नोटिस जारी किया गया था। अब केरल सरकार की याचिका के बाद वेंâद्र सरकार को नोटिस भेजकर राज्यपाल की देरी के बारे में जवाब देने का आदेश दिया गया है।
गौरतलब है कि पंजाब के बाद, केरल और तमिलनाडु ने अपने राज्यों में लंबित विधेयकों पर सहमति न देने की राज्यपाल की नीति के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है। इस मामले में सोमवार को सुनवाई हुई। मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति पारदीवाला और न्यामूर्ति मनोज मिश्रा की संविधान पीठ के समक्ष सुनवाई हुई। केरल सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के सामने दलील रखते हुइ कहा कि राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान विधानसभा से पारित विधेयकों को मंजूरी देने में देरी कर रहे हैं। यह लोगों के अधिकारों का हनन है। आठ विधेयक राज्यपाल के पास सात महीने से और दो, एक साल से लंबित हैं और अभी तक स्वीकृत नहीं हुए हैं। केरल सरकार ने अपनी दलील में कहा, इनमें से कई बिल जनहित से जुड़े हैं। इस तर्वâ को स्वीकार करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपाल की इस लेटलतीफी के लिए वेंâद्र सरकार को नोटिस भेजा है, जिसमें कहा गया है कि राज्यपाल का यह व्यवहार संविधान के अनुच्छेद १४ का उल्लंघन है।

 

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