सामना संवाददाता / मुंबई
विधानसभा चुनाव से पहले मंत्री पद का इंतजार कर रहे विधायकों को महायुति सरकार ने अहम जिम्मेदारी दे दी है। विधानसभा चुनाव से पहले राज्य सरकार की ओर से महामंडलों का बंटवारा करते हुए ज्यादातर महामंडलों पर नियुक्ति की घोषणा कर दी गई है। इस बंटवारे में मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के करीबी विधायकों को ज्यादा महामंडल मिले हैं, लेकिन उपमुख्यमंत्री अजीत पवार के गुट के किसी भी विधायक को महामंडल नहीं दिया गया है। दादा गुट की झोली खाली रह गई है, इसे लेकर अब अजीत पवार गुट में महायुति के प्रति खासी नाराजगी है।
मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने वर्षा बंगले में पत्रकारों से अनौपचारिक बातचीत के दौरान यह संकेत दिया कि विधानसभा चुनाव नवंबर के मध्य में होंगे यानी विधानसभा चुनाव में सिर्फ दो महीने बचे हैं। शिवसेना से गद्दारी कर शिंदे के साथ गए कई विधायक मंत्री पद की उम्मीद लगाए बैठे थे, जिनमें से कई लंबे इंतजार की वजह से नाराज भी हो रहे थे। शिंदे गुट में जिन विधायकों को महामंडल नहीं मिला है, उनमें से कई विधायक काफी नाराज हैं। संभावना जताई जा रही है कि वे लोग पुन: शिवसेना में उद्धव ठाकरे के साथ आने के लिए जुगाड़ लगा रहे हैं। उधर, अजीत पवार गुट ने शिंदे गुट-बीजेपी सरकार के खिलाफ बगावत कर दी।
किसे क्या मिला
शिंदे के करीबी नेताओं को कुछ महामंडल में नियुक्त किया गया है। शिंदे गुट के प्रवक्ता संजय शिरसाट को सिटी एंड इंडस्ट्रीयल डेवलपमेंट कॉरपोरेशन यानी सिडको के चेयरमैन की जिम्मेदारी दी गई है। पूर्व सांसद हेमंत पाटील का राजनीतिक पुनर्वास हो गया है। उन्हें बालासाहेब ठाकरे हलद अनुसंधान केंद्र के अध्यक्ष के रूप में नामित किया गया है। अमरावती के पूर्व सांसद आनंदराव अडसूल को राज्य के अनुसूचित जाति और जनजाति आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया गया है। पिछले दो-तीन महीनों से शिंदे गुट के विधायकों को धीरे-धीरे मंदिरों और महामंडलों के ट्रस्टी बोर्ड में नियुक्त किया जा रहा है। विधान परिषद की उपाध्यक्ष नीलम गोर्हे को मंत्री पद का दर्जा दिया गया है। विधायक सदा सरवणकर को सिद्धिविनायक मंदिर ट्रस्ट का ट्रस्टी नियुक्त किया गया है, जबकि अजीत पवार गुट को कोई महामंडल नहीं दिया गया है।