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शंकर सिंह बघेला और केशुभाई के गुजरात का मॉडल यूपी के मुंहाने पर!

मनोज श्रीवास्तव / लखनऊ

यूपी भाजपा में सुलग रही ज्वालामुखी कभी भी फट सकती है। टीम गुजरात हो या टीम योगी एक दूसरे को सांकेतिक संदेश भेज रहे हैं। कोई पीछे हटने को तैयार नहीं है। देश की सत्ता पर काबिज होने के पूर्व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश भर में गुजरात मॉडल बनाने की बात करते थे। यूपी में उनकी बात सही होने को है, पर शंकर सिंह बघेला बनाम केशुभाई पटेल के युग का गुजरात मॉडल का खतरा मंडरा रहा है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और गृहमंत्री अमित शाह की टकराहट बढ़ती जा रही है। अमित शाह के संपर्क के लोग समय-समय पर योगी आदित्यनाथ को नीचा दिखाने में कोई गलती नहीं किया है। इसके बावजूद अमित शाह अपने लोगों को पुरस्कृत करने में कोई कमी नहीं रखे, बल्कि उन्हें योगी के ऊपर थोपने में भी कोई संकोच नहीं किया। 2022 के विधानसभा चुनाव के समय योगी पार्ट 1 में मंत्री रहे स्वामी प्रसाद मौर्य, दारा सिंह चौहान और धर्मपाल सैनी ने योगी आदित्यनाथ की सरकार पर पिछड़ा विरोधी होने का आरोप लगा कर एक के बाद एक ने मंत्रिमंडल से त्यागपत्र देकर समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव की शरण मे चले गए। उसके बाद भी विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी की सरकार नहीं बनी। इन तीनों के भाजपा छोड़ने के पहले मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपने मंत्रिमंडल के साथी व सुभासपा के अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर को बर्खास्त कर दबाव की राजनीति से मुक्ति प्राप्त किया था। लेकिन जब 2024 के लोकसभा का चुनाव आया तो गृहमंत्री अमितशाह ने स्वामी प्रसाद मौर्य को छोड़ कर सबको भाजपा में शामिल कर लिया। भाजपा से सपा में जाने के बाद 2022 के विधानसभा चुनाव में दारा सिंह चौहान को छोड़ कर अन्य दो मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य और धर्म सिंह सैनी चुनाव हार गए। इन चारों नेताओं की एक विशेषता ये रही कि ये मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को कभी भाव नहीं दिए।
सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर, जो 2022 का चुनाव सपा के साथ गठबंधन करके लड़े थे, उन्हें टीम गुजरात ने अपने चुनाव 2024 के लोकसभा की रणनीति के हिसाब से सत्ता का साझीदार बना कर मंत्री बना दिया, जो व्यक्ति चुनाव में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री की कुर्सी से उतारकर पुनः मंदिर में भेजने की बात करता था, उसी को योगी आदित्यनाथ अपने मंत्रिमंडल में शामिल किए। टीम गुजरात एक बार भी सार्वजनिक यह संदेश नहीं दिया कि योगी आदित्यनाथ से पूछे बिना हम किसी ऐसे व्यक्ति को पार्टी या पार्टी के गठबंधन से नहीं जोड़ेंगे, जो 2022 के चुनाव में हमारे खिलाफ लड़े थे। योगी के महत्व को कम करने जितने बार टीम गुजरात ने प्रयास किया, उतने बार उन्हें मुंहकी खानी पड़ी। दारा सिंह चौहान जो समाजवादी पार्टी में विधायक बन गये थे, उन्हें लेकर टीम गुजरात इतना गंभीर हो गई कि जैसे बिना उनके यूपी सरकार व भाजपा कोई काम ही नहीं कर पा रहा है। दारा सिंह का समाजवादी पार्टी से त्यागपत्र दिलवाया गया। मऊ जहां से दारा सिंह विधायक थे वहां उपचुनाव हुआ। अमित शाह के सारे वफादारों के शीर्षासन के बाद भी दारा सिंह बुरी तरह हारे। कथित योगी समर्थक कहे जाने वाले ठाकुर जनप्रतिनिधियों व नेताओं लर दारा सिंह के विरोध में नंगा नाच नाचने का आरोप लगा। दोनों खेमा इससे कुछ सीख कर गलतफहमी दूर करने के बजाय एक-दूसरे को नीचा दिखाने में एक कदम और आगे बढ़ गए। अमित शाह के सिपहसालारों ने दारा सिंह को न सिर्फ विधानपरिषद में भेजा, बल्कि अकेले उनको मंत्रिमंडल में स्थान दिला कर अपना लोहा मनवाया।

लोकसभा चुनाव में भाजपा को यूपी में मिली पराजय के बाद टीम गुजरात के कान खड़े कर दिए। अपनी गलती न मानने वाले गुजरात नेतृत्व के लोग इस पराजय का ठीकरा योगी पर फोड़ने की भूमिका बना ही रहे थे, तभी पार्टी में एक बहुत बड़ा तबका जो टीम गुजरात समर्थक माना जाता है ने यह आरोप लगाने लगा कि अधिकारियों की मनमानी और कार्यकर्ताओं की उपेक्षा से यूपी में पार्टी को इतनी बड़ी पराजय मिली। तो दूसरी ओर जो योगी आदित्यनाथ के साथ खड़े हुए उन्होंने आरोप लगाया कि टिकट वितरण में किसी की सुनी नहीं गई। वर्तमान सांसदों को टिकट देकर पार्टी के चंद लोग अपना उल्लू सीधा कर लिए, लेकिन पार्टी हित को नकार दिया, जिसके कारण पार्टी को कार्यकर्ताओं के गुस्से का सामना करना पड़ा, यह गुस्सा भाजपा नेतृत्व के प्रति है। चूंकि मोदी 400 सीट पार कर ही रहे थे। इसलिए स्थानीय कार्यकर्ताओं को अपने प्रत्याशी से बदला लेने का पर्याप्त अवसर मिल गया।

योगी समर्थक एक पत्रकार ने कहा कि योगी आदित्यनाथ बिजली का नंगा तार हैं, जो छुएगा जल कर भस्म हो जाएगा। किसी भी स्थिति में उन्हें हटाने की यदि गलती हुई तो भाजपा कल्याण सिंह को हटाने की गलती कर 14 वर्ष तक वनवास झेल चुकी है, अबकी 28 साल या उससे अधिक का वनवास मिलेगा। उन्होंने यह भी कहा कि योगी के समर्थक यूपी ही नहीं पूरे देश में हैं। इस बीच कट्टरता से हिंदुत्व का निर्वहन करने वाले योगी आदित्यनाथ ने सावन माह में कांवड़ मार्ग के दुकानदारों को नाम लिखने का फरमान जारी कर दिए। विपक्ष के दल और बामपंथी इसका पुरजोर विरोध कर रहे हैं, लेकिन भाजपा के वह सहयोगी दल भी योगी विरोध में बिलबिला गए, जो केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के ही संपर्क में रहता है तो योगी खेमा और दृढ़ हो गया। उसने इसकी और कड़ाई से पालन का स्वरूप दिखा दिया। सरकार और संगठन में कौन बड़ा का बहस चल ही रहा था कि योगी ने राज्य में दस सीटों के होने वाले उपचुनाव के लिए मंत्रियों की जो टीम बनाई, उससे दोनों उपमुख्यमंत्री बाहर कर दिए गए। बहुत पड़ताल पर पता चला कि दोनों उपमुख्यमंत्री सभी सीटों पर जाएंगे, लेकिन 30 मंत्रियों की सूची में इनका नाम न होने से अमित शाह खेमे को बहुत झटका लगा। इसके जवाब में कांवड़ियों के रास्ते में दुकानदारों के नाम लिखवाने को लेकर राष्ट्रीय लोकदल अध्यक्ष व केंद्र की मोदी सरकार के मंत्री जयंत चौधरी भी योगी के इस निर्णय के खिलाफ बोलने लगे। इन्हीं दिनों में निषाद पार्टी के अध्यक्ष व योगी सरकार के मंत्री डॉ. संजय निषाद ने भी योगी सरकार में अधिकारियों की मनमानी का आरोप लगा चुके हैं। अपना दल एस की अध्यक्ष अनुप्रिया पटेल भी योगी सरकार को नाराजगी की चिट्ठी लिख चुकी हैं। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि परिस्थितियां कुछ भी रही हों, उसके बावजूद गृहमंत्री अमित शाह और उनके यूपी के अधिकृत एजेंट हमेशा सहयोगी दलों के संपर्क में बने रहते हैं। दुकानदारों के नाम लिखने के विंदु पर कई दिन शांत रहने के बाद सहयोगी दलों का बिदकने में भी एक साजिश की बू आ रही है।

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