अशोक तिवारी
ऊपरवाला किसी को गरीबी न दे, मौत दे दे मगर बदनसीबी न दे। यह बात उन गरीबों पर चरितार्थ होती है, जो दो से तीन दिनों तक भूखे-प्यासे रहते हैं। खैर, साकीनाका के जरीमरी में रहनेवाले पुणे के मंथर रोड गांव के रहनेवाले अब्बास मिर्जा के पिता मिर्जा बेग बेस्ट में बस ड्राइवर थे। मिर्जा बेग के परिवार में तीन बच्चे थे। अब्बास मिर्जा जब मात्र ५ साल के थे तभी उनके पिता का देहांत हो गया। पिता के देहांत के बाद जरीमरी की झोपड़पट्टी में रहनेवाले अब्बास मिर्जा का परिवार सड़क पर आ गया। आंखों में आंसू भरकर अब्बास मिर्जा बताते हैं कि उनकी मां दूसरों के घरों में बर्तन और साफ-सफाई का काम करती थी। लेडीज ड्रेस में मोती टांकने के साथ ही वो शाम के समय फुटपाथ पर अंडा बेचती थीं। इतनी मेहनत के बावजूद गरीबी का आलम इस कदर था कि कभी-कभी परिवार को दो से तीन दिनों तक भूखे ही दिन गुजारना पड़ता था। जैसे-तैसे अब्बास मिर्जा ने सरकारी स्कूल से मात्र आठवीं तक शिक्षा प्राप्त की। मात्र १२ वर्ष की उम्र में अब्बास मिर्जा गारमेंट में हेल्पर का काम करने लगे। बतौर हेल्पर एक साल काम करने के बाद और ज्यादा पैसा कमाने की हसरत लिए अब्बास मिर्जा पावरलूम में बतौर मजदूर काम करने लगे। करीब ३ वर्षों तक पावरलूम में काम करने के बाद अब्बास मिर्जा एंब्रॉयडरी के गारमेंट में कारीगर बन गए। कारीगर बनने के बाद अब्बास मिर्जा ने काम को इतनी बारीकी से सीखा कि वह एक बेहतरीन कारीगर के रूप में मशहूर हो गए। अब अब्बास मिर्जा ने अपना खुद का एंब्रॉयडरी का व्यवसाय शुरू किया और उनका व्यवसाय अच्छा-खासा निकल पड़ा। अपनी मां की तकलीफों को देख अब्बास मिर्जा ने बचपन में ही ठान लिया था कि अगर कभी ऊपर वाले ने उन्हें लायक बनाया तो वह गरीबों की मदद जरूर करेंगे। खैर, अब्बास मिर्जा के हाथ में जब पैसे आए तो उन्होंने अखिल एकता चैरिटेबल ट्रस्ट नामक गैर सरकारी संगठन बनाया, जिसके माध्यम से वह टीबी के करीब १०० मरीजों को प्रति महीने मुफ्त राशन देते हैं तथा गरीब बच्चों के स्कूल की फीस भरते हैं। गरीब बच्चों को कंप्यूटर की शिक्षा देने के लिए साकीनाका में उन्होंने मुफ्त कंप्यूटर क्लास शुरू किया, जिसमें ७० बच्चे कंप्यूटर सीख रहे हैं। इसके अलावा झोपड़पट्टी की महिलाओं को सक्षम बनाने के लिए अब्बास मिर्जा ने एक सिलाई प्रशिक्षण केंद्र खोला, जिसमें २०० महिलाओं को सिलाई सिखाया जा रहा है। अब्बास मिर्जा कहते हैं कि गरीबों की मदद कर वे कोई एहसान नहीं कर रहे हैं, बल्कि अपने जीवन का कर्ज उतार रहे हैं।