मुख्यपृष्ठनमस्ते सामनामेहनतकश : समाजसेवा से मिली पहचान 

मेहनतकश : समाजसेवा से मिली पहचान 

सगीर अंसारी

मोहम्मद अल्ताफ शेख (तबेला) उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिला के राजापुर गांव सरायमीर फूलपुर के रहनेवाले हैं। वे महज १३ वर्ष की आयु में ही अपने गांव से मुंबई आ गए थे और यहां पर जरी (कपड़े में क़ढ़ाई) का काम सीखने लगे। लेकिन कुछ दिन बाद वे अपने पिता अब्दुल रऊफ की मदद के लिए मुंबई के धारावी आ गए। उनके पिता हाथगाड़ी पर फल बेचने का कारोबार करते थे। लेकिन इस काम से कमाई न के बराबर होती थी, इस वजह से अल्ताफ ने साइकिल रिपेयरिंग की दुकान शुरू की। कई वर्षोंे की मेहनत के बाद उन्होंने वह काम छोड़ एक टैक्सी खरीदी। अल्ताफ रात में टैक्सी चलाते और दिन में फल बेचने का कार्य करते थे। इसी दौरान वर्ष १९८४ में वे गोवंडी के बैगनवाड़ी रहने आ गए और उन्होंने भंगार का कारोबार शुरू किया। कुछ समय बाद उन्होंने एक गाय खरीदी और दो भैंस खरीदकर तबेले का काम शुरू किया। अल्ताफ ने बताया कि उनकी मेहनत को देखते हुए उनके एक दोस्त सलीम मिठानी ने भी उनकी आर्थिक मदद करते हुए दो लाख रुपए दिए, जिसके बाद अल्ताफ ने गुजरात से ६ भैंस और खरीदीं। इसके साथ उनके एक दोस्त रामाशंकर ने भी अल्ताफ को ६ भैंसें और दीं। तबेले का विस्तार होता देख उन्होंने गोरेगांव मार्वेâट में तबेला शुरू किया। अल्ताफ की मेहतन से दूध का कारोबार चल निकला। कुछ समय बाद अल्ताफ ने और ५५ भैंस खरीद लीं। अल्ताफ शेख शुरू से ही दूसरों की मदद के लिए हमेशा आगे रहते हैं। अपनी मेहनत की कमाई से उन्होंने न केवल अपने परिवार को संभाला बल्कि समाजसेवा करते हुए लोगों की मदद भी करने का काम किया। वर्ष १९८५ में वे कांग्रेस पार्टी में शामिल हुए और लोगों की मूलभूत सुविधाओं के लिए काम शुरू किया। दस वर्षों तक कांग्रेस में रहने के बाद वे वर्ष १९९५ में समाजवादी पार्टी से जुड़ गए। वे प्रशासन से लड़ाई लड़ते हुए अपने क्षेत्र में जनता की भलाई के काम में लगे रहे। उनका कहना है कि जितनी परेशानी व तकलीफ उन्होंने उठाई उनके बच्चे न उठाएं इसलिए उन्होंने अपने तीनों बेटों को इस काबिल बनाया कि आज उनका परिवार शिक्षा, व्यापार के क्षेत्र में आगे बढ़ रहा है। अल्ताफ शेख आज किसी पहचान के मोहताज नहीं हैं, वे एक निडर स्वभाव के मिलनसार व्यक्ति हैं। उनका सभी जाति-धर्म वालों से भाईचारा है। ‘पढ़ोगे तो बढ़ोगे’ इस सिद्धांत को मान कर अल्ताफ मुस्लिम समाज के लोगों में शिक्षा का दीपक जलाने का भी काम कर रहे हैं। मुस्लिम समाज में जो लोग शिक्षा, उपचार के लिए आर्थिक रूप से दुर्बल हैं ऐसे लोगों की वे मदद करने का काम भी करते हैं।

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