मुख्यपृष्ठस्तंभमेहनतकश : अपनों की खातिर खुद को किया कुर्बान

मेहनतकश : अपनों की खातिर खुद को किया कुर्बान

रवींद्र मिश्रा

अगर मानव धर्म की बात की जाए तो त्याग और समर्पण की भावना ही सबसे बड़ा मानव धर्म कहलाता है। अगर किसी से पूछा जाए कि क्या इस धर्म को सभी लोग निभा पाते हैं, तो जवाब में न ही आएगा। लेकिन इस संसार में कई लोग ऐसे हैं, जो इस धर्म को बखूबी निभाते हुए मिल जाएंगे और उनके बारे में किसी को भनक तक न होगी कि उस व्यक्ति ने अपने जीवन में बेहतरीन काम किया है। अपनों के लिए खुद को कुर्बान करनेवालों में एक नाम आता है रहीश वर्मा का, जिन्होंने अपने परिवार की जिम्मेदारी तो बखूबी उठाई लेकिन अपना खुद का परिवार नहीं बसा पाए। मध्य प्रदेश के रीवां जिले के सिरमौर तहसील के कोचरी गांव नंबर तीन के रहनेवाले रहीश वर्मा के पिता गांव में खेती-बाड़ी का काम किया करते थे। तीन भाई और दो बहनों में सबसे छोटे रहीश को घर की आर्थिक स्थिति ठीक न होने के कारण किसी तरह पांचवीं कक्षा तक की ही शिक्षा मिल सकी। ३२ वर्षीय रहीश को घर के हालात को देखते हुए घर छोड़ना पड़ा। सन् २००४ में वो रोजी-रोटी की तलाश में हैदराबाद पहुंचे। कुछ दिन भटकने के बाद बक्कल बनानेवाली कंपनी में उन्हें काम मिला। वहां ६ महीने ही काम किया कि उन्हें मां की बीमारी की खबर मिली और वो नौकरी छोड़कर घर लौट आए। गांव में एक साल तक रुकना पड़ा। बहनों की बढ़ती उम्र देख जब उनकी शादी की चिंता सताने लगी तो वे गांव छोड़कर मुंबई आ गए। बड़ा भाई किसी सेठ के यहां ड्राइवर की नौकरी करता था। रहीश बड़े भाई के साथ रहकर दहिसर में बेगारी का काम करने लगे। छह महीने तक बेगारी का काम करने के बाद एक परिचित व्यक्ति ने अपने रिश्तेदार से कहकर रहीश का काम दादर में लगवा दिया। यह कंपनी मासिक पत्रिका निकालती थी, जहां ६ महीने तक रहीश ने बतौर कार्यालय कर्मचारी के रूप में काम किया। उसके बाद उन्हें चाय बनानेवाली कंपनी में काम मिला। यहां काम करते हुए २०१० में बड़ी और २०१७ में छोटी बहन की शादी की। बहनों की शादी के बाद बड़े भाइयों के विवाह की भी जिम्मेदारी रहीश पर ही आ गई थी। रहीश दिन में चाय कंपनी में काम करते तथा शाम को दहिसर स्थित आनंद नगर में क्लीनिक चलानेवाले डॉक्टर मनीष ओझा के यहां काम करने लगे। अपने मिलनसार व्यवहार तथा मेहनत और ईमानदारी से काम कर रहीश ने दोनों भाइयों का भी विवाह कर दिया। भाइयों के विवाह के पश्चात पिताजी बीमार पड़ गए। दो वर्षों तक इलाज करवाने के बाद पिता का निधन हो गया। भाइयों के विवाह के बाद बहुओं को रहने के लिए उचित कमरा नहीं था इसलिए मकान बनवाना जरूरी हो गया। अत: अपने मालिकों से कर्ज लेकर रहीश ने गांव में मकान बनवाया। एक भाई तो अपना परिवार लेकर परदेस चला आया, लेकिन दूसरा भाई अपने परिवार के साथ रहकर खेती-बाड़ी का काम देखते हुए मां की सेवा करता है। जब कभी कोई रहीश से अब तक शादी क्यों नहीं की, ये सवाल करता है तो वो हंसकर कहते हैं कि अपनों की सेवा करते-करते मुझे कभी खुद का खयाल ही नहीं आया, लेकिन अब समय आ गया है अपने बारे में सोचने का, देखिए ऊपरवाला क्या करता है।

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