अशोक तिवारी
कहते हैं पढ़ने की कोई उम्र नहीं होती। अगर दिल में कुछ करने का जज्बा और समाज के लिए कुछ कर गुजरने की चाहत हो तो आर्थिक तंगी कभी मायने नहीं रखती। कुदरत हर इंसान के जीवन में एक ऐसा वक्त जरूर देता है जब वह अपने सपनों को साकार करने में स्वयं सक्षम हो जाता है। भले ही बचपन में गरीबी के कारण वो अपने सपनों को पूरा नहीं कर पाया हो। महाराष्ट्र के सातारा जिले के कराड तालुका के नरसी पोस्ट के रहनेवाले रूपेश रमेश रविढोने की कहानी भी कुछ इसी तरह है। रूपेश के पिता रमेश रविढोने के दादा भीवाभाऊ सातारा जिले के किसान थे, जहां वे धान की खेती करते थे और उसे बेचने के लिए सातारा से मुंबई होलसेल मार्वेâट में आया करते थे। रूपेश के पिता मुंबई में बस गए और मुंबई के टकसाल में काम करने लगे। कुछ बरसों बाद उन्होंने टकसाल की नौकरी छोड़ दी और माथाड़ी कामगार के तौर पर काम करने लगे। रूपेश के घर में एक भाई और एक बहन थे। मात्र १६ साल की उम्र में पिता का देहांत होने पर परिवार की पूरी जिम्मेदारी रूपेश के कंधों पर आ पड़ी। पिता के देहांत के तीन साल बाद ही रूपेश की मां का भी देहांत हो गया। इसके बाद रूपेश ने पहले बेगारी का काम किया, इसके बाद ऑटोरिक्शा चलाने के साथ ही कभी-कभी मजदूरी तक का काम किया। वक्त ने करवट बदली और रूपेश ने टूर्स एंड ट्रैवेल्स का बिजनेस शुरू किया जो चल निकला। रूपेश ने अपने छोटे भाई को अपने पैरों पर खड़ा करने के लिए घाटकोपर स्थित अपना पुश्तैनी मकान उसके नाम कर दिया और उसे ओला उबर की दो नई गाड़ियां खरीद कर दी। आज छोटा भाई अपने परिवार और दो बच्चों के साथ खुशहाल जिंदगी जी रहा है। बाद में रूपेश पत्रकारिता के क्षेत्र में आए। आज उन्हें मुंबई शहर में मशहूर आरटीआई एक्टिविस्ट के तौर पर जाना जाता है। कई घोटालों का भंडाफोड़ करनेवाले रूपेश ने कई जनहित याचिकाएं मुंबई हाई कोर्ट में डाली हैं। बचपन से गरीबी देखनेवाले रूपेश का सपना था कि वह गरीबों की मदद करें। इसके लिए वे अब कानून की पढ़ाई कर रहे हैं। रूपेश का कहना है कि कानून की पढ़ाई कर वह गरीबों के लिए मुफ्त केस लड़ेंगे और उन्हें न्याय दिलाने का पूरा प्रयास करेंगे। छोटे भाई और बहन की शादी होने के बावजूद रूपेश अभी भी कुंवारे हैं। उनका कहना है कि परिवार की जिम्मेदारी से मुक्त होने के बाद ही वह अपनी शादी के बारे में सोचेंगे।