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मेहनतकश : गांव से आए थे खाली हाथ, आज खुद का है मकान-दुकान

रवींद्र मिश्रा

एक पुरानी कहावत है कि हिम्मते मर्दा तो मददे खुदा। इसका मतलब है कि अगर इंसान में कुछ करने की कूवत हो, हिम्मत हो, तो ऊपरवाला भी उसकी मदद करता है। और इंसान देखते ही देखते फर्श से उठ कर अर्श तक पहुंच जाता है। राजस्थान के राजसमंद जिले के सांगठकला गांव के रहने वाले ३८ वर्षीय विनोद पालीवाल भी ऐसे ही हिम्मती लोगों में से एक हैं जिन्होंने गरीबी की बेड़ियों को तोड़ते हुए न केवल खुद को, बल्कि परिवार को भी समाज में सम्मानजनक स्थान दिलाया। अपने बारे में विनोद पालीवाल बताते हैं कि उनका बचपन गांव में बीता। पढ़ाई में वे बहुत अच्छे नहीं थे, इसलिए १० वीं में फेल हो गए। इसके बाद घरवालों ने उन्हें घर-गृहस्थी के काम में लगा दिया। उनका काम मवेशियों की देखभाल करना था। मवेशियों का गोबर साफ करना, उन्हें चारा पानी डालना, उनका दूध निकालना, इसी काम में वे सुबह से शाम तक लगे रहते थे। यह उनका नित्य का काम हो गया था। जानवरों की सेवा करने के दौरान जो समय बचता था उसमें वे आटा-चक्की की दुकान पर चले जाते थे। दुकान में कोई सामान कम पड़ गया हो या फिर मशीन का कोई सामान खरब हो गया हो तो वे बाजार से सामान लाकर उसकी भी मरम्मत करते थे। चक्की से ही थोड़ी बहुत कमाई होती थी, उसे वह अपनी दादी को दे देते थे। वे अपने खर्चे के लिए भी पैसे को अपने पास नहीं रखते थे, काम के लिए कुछ खर्चा लगे तो दादी से ही मांग लेते थे। लगभग ४ साल आटा पीसते-पीसते और ग्रहस्थी का काम करते-करते उनका मन उचट गया। इसके बाद वे अधिक पैसा कमाने गांव छोड़कर मुंबई आ गए। मुंबई के कांदिवली में उनके परिवार की ज्वेलरी की दुकान थी, विनोद इसी दुकान में काम करने लगे। इस दुकान में उनके चाचा काम करते थे, विनोद ने अपने चाचा के साथ मिलकर धंधे की बारीकियों को सीखा। परिवार बड़ा था, एक धंधे से गुजर-बसर नहीं हो पा रही थी, जिसके बाद चाचा ने विरार-पूर्व में एक और ज्वेलरी की दुकान खोली। इस दुकान में विनोद चाचा के साथ मिलकर काम करने लगे। साल २०१० से लेकर साल २०१६ तक विनोद ने चाचा के साथ इस दूकान में काम किया। वे बताते हैं कि इसी बीच उनकी शादी हो गई। वे आगे कहते हैं कि एक दिन किसी बात को लेकर उनका चाचा से मन-मुटाव हो गया, जिसके बाद उन्होंने अपना खुद का ज्वेलरी का व्यवसाय शुरू किया। इसी दौरान उन्होंने गांव से अपनी बुआ के लड़के को भी बुला लिया, जिसके बाद दोनों मिलजुल कर काम करने लगे। इसके बाद विनोद ने नई मुंबई में एक डेरी व्यवसाय का काम शुरू किया। विनोद पालीवाल कहते हैं कि उनके हर काम में उनकी धर्म पत्नी ने साथ दिया। मेरी पत्नी ताकत बनकर मेरे साथ हर समय खड़ी रही। जीवन में कई बार उतार-चढ़ाव आए, कई बार समय खराब था लेकिन हर बार पत्नी ने साथ निभाया और परिस्थितियों से लड़ने की हिम्मत प्रदान की। आज विनोद के पास अपना खुद का एक मकान और दुकान है। वे कहते हैं कि भगवान की कृपा से आज हम दोनों बहुत खुश हैं।

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