मुख्यपृष्ठस्तंभमेहनतकश : खाड़ी देशों में नौकरी कर संवारी परिवार की किस्मत

मेहनतकश : खाड़ी देशों में नौकरी कर संवारी परिवार की किस्मत

अशोक तिवारी

सन् ९० के दशक में मुंबई के प्रतिष्ठित समाचार पत्रों से पत्रकारिता की शुरुआत करनेवाले रामप्रकाश तिवारी को करीब दो दशकों तक पत्रकारिता करने के बाद एहसास हुआ कि पत्रकारिता करके समाज सेवा तो की जा सकती है, लेकिन जीवनयापन के लिए इसमें आय के साधन सीमित हैं। अत: अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियों के चलते उन्होंने पत्रकारिता के साथ-साथ दूसरी अन्य निजी कंपनियों में भी काम करना शुरू किया। लेकिन पारिवारिक खर्च के सामने उनकी यह आय काफी कम थी। उच्च शिक्षित होने के कारण रामप्रकाश तिवारी को शीघ्र ही खाड़ी देशों में नौकरी मिल गई। इसके बाद विगत १५ वर्षों से खाड़ी देशों में नौकरी करनेवाले रामप्रकाश तिवारी न सिर्फ अपने परिवार को एक नई बुलंदी पर ले गए, बल्कि उन्होंने वो मकाम हासिल किया जिसका सपना वो पत्रकारिता में आने से पहले देखते थे।
उत्तर प्रदेश के सुलतानपुर जिले के कादीपुर तहसील के सुंदरपुर गांव के रहनेवाले रामप्रकाश तिवारी के पिता शारदा प्रसाद तिवारी वर्ष १९७७ में मुंबई आए। पिता परेल में एक कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत थे। अब इसे रामप्रकाश तिवारी का दुर्भाग्य ही कहना पड़ेगा कि जब वो मात्र दो वर्ष के थे, उसी दौरान उनके पिता का देहांत हो गया। घर में गरीबी का आलम होने के बावजूद उनकी मां ने उन्हें सुलतानपुर में बीए तक पढ़ाया। वर्ष १९९२ में रोजी-रोटी की तलाश में रामप्रकाश तिवारी मुंबई आ गए। मुंबई आने के बाद उन्हें एयरपोर्ट पर टिकट बुकिंग क्लर्क की नौकरी मिल गई। मुंबई शहर में रहते हुए उन्होंने होटल मैनेजमेंट में डिप्लोमा किया और अंधेरी स्थित लोखंडवाला के एक पांच सितारा होटल में काम करने लगे। इस दौरान मुंबई के साकीनाका से ‘जनसंचार’ नामक एक दैनिक अखबार का प्रकाशन हुआ, जिससे जुड़कर वो पत्रकारिता करने लगे। होटल मैनेजमेंट में डिप्लोमा पूरा करने के बाद रामप्रकाश तिवारी ने पत्रकारिता में भी डिप्लोमा हासिल किया। वर्ष २००४ में विभिन्न अखबारों में काम करने के दौरान ही उन्हें दुबई जाने का अवसर मिला, जहां २००४ से लेकर २०१२ तक उन्होंने एक प्रतिष्ठित कंपनी में बतौर क्वालिटी इंचार्ज काम किया। २०१२ में रामप्रकाश तिवारी मुंबई लौट आए और उन्होंने श्रीराम मिल में क्वालिटी इंचार्ज के तौर पर नौकरी शुरू की। लेकिन वर्ष २०१३ में वो ईरान चले गए, जहां उन्होंने ९ वर्षों तक विभिन्न कंपनियों में कई महत्वपूर्ण पदों पर काम किया। वर्ष २०२१ में कोरोना के दौरान रामप्रकाश तिवारी को मजबूरन मुंबई आना पड़ा। मुंबई आने के बाद एक बार फिर उन्होंने पत्रकारिता में शुरुआत की, लेकिन कुछ दिनों तक पत्रकारिता करने के बाद उन्हें लोढ़ा बिल्डर ग्रुप में अच्छी नौकरी मिल गई। बेटी को एमकॉम तक की शिक्षा दिलवाने वाले रामप्रकाश तिवारी का बेटा बीएससी तक पढ़ने के बाद गोदरेज कंपनी में सेफ्टी ऑफिसर के पद पर कार्यरत है। आगे चलकर वो नशा मुक्ति के लिए अभियान चलाना चाहते हैं क्योंकि उनका मानना है कि युवाओं में नशे की प्रवृत्ति देश का भविष्य चौपट कर रही है।

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