आनंद श्रीवास्तव
अपने पिता की इच्छा और कुछ कर गुजरने के जुनून में मीत जोशी ने हिमालय पर्वत के जंगलों में कई साल गुजारे। कंद-मूल खाकर दिन बिताए, विविध प्रकार की वनस्पतियों में औषधियों की खोज की, उसके बाद लौटे तथा पढ़ाई पूरी की और अब वे मीत जोशी से डॉ. मीत जोशी बन गए हैं। उन्होंने एल्टरनेटिव मेडिसिन से एमडी किया है। आज वे आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति से लोगों का उपचार करते हैं। आज कई नेता और अभिनेता उनसे अपना इलाज करवाते हैं और उनसे इलाज करवानेवाले वीआईपी लोगों की संख्या बढ़ती ही जा रही है। मीत का मानना है कि जीवन में हमें कभी हारना नहीं चाहिए। क्योंकि मन के हारे हार है, मन के जीते जीत! जी हां, यह है डॉ. मीत जोशी की सफलता की कहानी बड़ी दिलचस्प है। लगभग १७ साल पहले पुणे से मुंबई आए डॉ. मीत जोशी के पिता डॉ. जय जोशी ने भी इसी तरह से संघर्ष कर अपना मुकाम हासिल किया और बेटे मीत को वे आसानी से इस क्षेत्र में नहीं लाए। बेटे से वो कहते थे कि जैसे सोना आग में तपने के बाद कुंदन बनाता है, वैसे ही तुम्हें खुद को तपाकर आगे बढ़ना होगा। बस, इसी के बाद से डॉ. मीत जोशी ने मेहनत शुरू की और संघर्ष करते हुए पिता का सपना पूरा किया।
डॉ. मीत जोशी का कहना है कि ‘मेरे जीवन में पुराने आवास गृहों और अस्पतालों में बिना इलाज के पीड़ित लोगों को देखकर मुझे लगा कि इनके लिए कुछ करना चाहिए। मैंने सोचा कि मैं उनकी मदद कैसे कर सकता हूं। इसके बाद पिता की बात याद आई और मैंने भी डॉक्टर की पढ़ाई करने की ठान ली और लग गए इसे पूरा करने में। एलोपैथिक पद्धति से इलाज का खर्च लोगों को महंगा पड़ता है यह सोचकर मैंने आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति के क्षेत्र में जाने का पैâसला किया।’ डॉ. मीत जोशी का यह सपना पूरा हो गया है। इस पर उनका कहना है कि आयुर्वेद ने मुझे प्रेरित किया क्योंकि इसका ऐतिहासिक महत्व है और इसका कोई भी साइड इफेक्ट नहीं होता। मेरी मदद के बाद एक कैंसर के मरीज जो अंतिम स्टेज पर थे और जिन्हें एक प्रसिद्ध अस्पताल ने कह दिया था कि उनकी मदद अब कोई नहीं कर सकता। लेकिन आज तीन साल से वो अच्छे स्वास्थ्य का आनंद उठा रहे हैं और इस सफलता के पीछे भगवान शिव की कृपा है।’