राधेश्याम सिंह
उत्तर प्रदेश के भदोही जिले के ज्ञानपुर तहसील के उमरपुर गांव के रहनेवाले ५३ वर्षीय सत्यनारायण यादव वर्ष १९८० से नालासोपारा में रह रहे हैं। परिवार की माली हालत ठीक न होने के कारण सत्यनारायण की पढ़ाई नाममात्र ही हो पाई और १२ वर्ष की उम्र में ही वो तबेले में काम करने लगे। तबेले में काम करके अपना और अपने परिवार का भरण-पोषण करनेवाले सत्यनारायण का जीवन संघर्षमय रहा। कई बरस दिन-रात तबेले में काम करने के बावजूद उन्हें केवल नाममात्र का ही वेतन मिलता था। उस वेतन से जब उनके परिवार का खर्च निकलना मुश्किल हो गया तब उन्होंने रिक्शा चलाना शुरू किया। दस वर्षों तक वे १५ से १६ घंटों तक रिक्शा चलाते थे। अथक परिश्रम के बावजूद उनका जीवन बहुत ही संघर्षमय परिस्थितियों में बीत रहा था। उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या करें और क्या न करें। तभी एक दिन उनके दोस्त ने उन्हें पान की एक दुकान खोलने की सलाह दी। इसके बाद कुछ दिनों तक अपने दोस्त की पान की दुकान पर काम करने के बाद सत्यनारायण यादव ने अपनी खुद की पान की दुकान खोल दी। अब पिछले २० वर्षों से सुबह ६ बजे से लेकर रात ११ बजे तक अपनी खुद की पान की दुकान चलाते हुए वे अपने परिवार का भरण-पोषण कर रहे हैं। सत्यनारायण यादव कहते हैं कि हमेशा से मेरी पहली प्राथमिकता ग्राहक सेवा रही है। मेरे ग्राहक ही मेरे भगवान हैं। मेरे पिता कहते थे कि व्यक्ति को अपने काम के प्रति जी-जान से मेहनत, जिम्मेदारी, समर्पण और निष्ठा की भावना रखनी चाहिए। मैं हमेशा अपने ग्राहकों के साथ अच्छे व्यवहार से पेश आता हूं। अपने धंधे के प्रति हर समय सजग रहता हूं, ताकि ग्राहक खुश रहें। अपने परिवार का भरण-पोषण सही तरीके से कर सकूं इसलिए मैं रोजाना १६ से ज्यादा घंटों तक कड़ी मेहनत करता हूं। मेरी दुकान पर आनेवाले ग्राहक रूपी भगवान को मैं अच्छी से अच्छी सेवा देता हूं। कड़ी मेहनत करके मैं अपने बच्चों को पढ़ा रहा हूं। एक लड़की को पढ़ाकर उसे अध्यापक बना दिया, जो आज पंचम हाई स्कूल में बतौर टीचर कार्यरत है। सत्यनारायण यादव आज भी दिन-रात कड़ी मेहनत और संघर्ष करने से नहीं घबराते हैं। सत्यनारायण यादव की तीन लड़कियां और दो लड़के हैं। दो लड़कियों का उन्होंने विवाह कर दिया और बाकी के दो लड़कों सहित उनकी एक बेटी पढ़ रही है। पिछले २० साल से पान की दुकान चलाकर अपना और अपने परिवार का जीविकोपार्जन करनेवाले सत्यनारायण यादव बच्चों को उच्च शिक्षा दिलाना चाहते हैं। उनका मानना है कि गरीबी के कारण मैं भले ही नहीं पढ़ पाया, लेकिन बच्चों को कड़ी मेहनत कर जरूर पढ़ाऊंगा क्योंकि समाज में शिक्षित लोगों को हर जगह सम्मान मिलता है। उनका कहना है कि हर मां-बाप को कड़ी मेहनत कर अपने बच्चों को उच्च शिक्षा दिलानी चाहिए। भारत देश का प्रति नागरिक शिक्षित होगा तो देश के विकास के साथ-साथ परिवार का भी विकास होगा। सत्यनारायण यादव कहते हैं कि जब मैं पान बेचकर एक से दो रुपए कमाकर अपने बच्चों को उच्च शिक्षा दिलाना चाहता हूं, तो देश के हर अभिभावक को चाहिए कि वो कड़ी मेहनत कर अपने बच्चों को उच्च शिक्षा दिलाएं, ताकि आनेवाली पीढ़ी को कठिनाइयों का सामना न करना पड़े।