आनंद श्रीवास्तव
मुंबई की गलियों में हाथगाड़ी लेकर, घूम-घूमकर भंगार इकट्ठा करनेवाले आबुल हसन खान की बेटी ने एम कॉम की पढ़ाई की और आज वो शिक्षिका है, खुद का ट्यूशन क्लास चलाती है, लेकिन आबुल ने बेटी के शिक्षिका बन जाने के बावजूद भी अपना पुराना काम नहीं छोड़ा है, अब सिर्फ उनके काम का स्वरूप बदल गया है। उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले से वर्ष १९९४ में मुंबई आए आबुल हसन वडाला के संगम नगर में रहते हैं। यहीं उन्होंने अपना जीवन बिताया। संगम नगर और वडाला की गलियों ने घूम-घूमकर, लोगों के दरवाजे पर पहुंचकर भंगार और रद्दी पेपर इकट्ठा कर उसका व्यवसाय करने लगे। इसी से वे अपने परिवार का गुजारा करते थे। अपने बच्चों को उन्होंने यहीं पढ़ाया-लिखाया। आज उनके बच्चे बड़े हो गए हैं और अपने पैरों पर खड़े हैं।
फिलहाल, आबुल हसन मनपा और संगम प्रतिष्ठान द्वारा धारावी में चलाए जा रहे सूखा कचरा, गीला कचरा अलग करने के प्रोजेक्ट में काम कर रहे हैं। यहां उनको काम के अनुसार, तनख्वाह मिलती है लेकिन पहले ऐसा नहीं था। पहले उन्हें जितना भंगार मिलता, उस भंगार के वजन के अनुसार, मिलनेवाले पैसे पर निर्भर रहना पड़ता था और इसी कमाई से आबुल हसन अपना गुजारा करने के साथ ही बच्चों की पढ़ाई का खर्च भी उठाते थे। सभी बच्चों ने दसवीं तक की पढ़ाई की है और आगे भी उनकी पढ़ाई जारी है। इन बच्चों में शबनम ने सबसे ज्यादा पढ़ाई की है। शबनम ने एम कॉम तक की पढ़ाई पूरी की है। उसने १२वीं के बाद से ही ट्यूशन पढ़ाना शुरू कर दिया था। आज उसने बाकायदा अपना कोचिंग क्लासेस खोल लिया है। आज आबुल हसन के सभी बच्चे कुछ-न-कुछ कमा रहे हैं।
बच्चों के पढ़-लिख लेने के बावजूद आबुल हसन ने अपना मूल काम नहीं छोड़ा। वह कहते हैं कि उनकी तमन्ना है कि बच्चे इसी तरह आगे बढ़ते रहें।