अनिल मिश्र
उद्योगिनं पुरुषसिंहमुपैति लक्ष्मी:, दैवेन देयमिति कापुरुषा: वदन्ति… अर्थात उद्योगी पुरुष के समीप समृद्धि (लक्ष्मी) स्वयं चलकर आती है। यह भाग्य या भगवान देते हैं- इस तरह की बात कायर या पुरुषार्थ हीन व्यक्ति ही कहा करते हैं। पुरुषार्थी तो विपरित परिस्थितियों के बावजूद अपनी मेहनत की बदौलत सब कुछ हासिल कर लेते हैं। ऐसा ही काम कर दिखाया है बिहार राज्य के गया जिले के शेरघाटी अनुमंडल क्षेत्र के डोभी प्रखंड के घोड़ाघाट पंचायत अंतर्गत पाठक विगहा (धरमपुर) निवासी और भारतीय सेना में ऑनरेरी लेफ्टिनेंट (धर्म शिक्षक) के पद पर कार्यरत दीनानाथ पाठक जी ने। १९६७ में बिहार में पड़े भयंकर अकाल और सूखे के समय बैशाख कृष्ण पक्ष तृतीया तिथि को सत्यदेव पाठक और रामरती देवी के कच्चे मिट्टी और खपरैल मकान में दीनानाथ पाठक का जन्म हुआ। पांच बेटी और एक बेटे सहित माता-पिता को छोड़कर सभी लोग अलग हो चुके थे। जन्म के समय ही माता-पिता बड़े संतृष्ण भाव से दीनतापूर्ण दृष्टि से इस नवजात शिशु को देखते हुए इनका नाम दीनानाथ रख दिया था। पिताजी का परिश्रम और दैनिक जीवन में संघर्षों ने परिवार के प्रति दायित्व बोध करा दिया और महज नौ साल के उम्र में ही जीविकोपार्जन हेतु कुछ रटे रटाए संस्कृत के श्लोकों के सहारे अन्न एवं पैसे के लिए गांवों में पूजा-पाठ और मंत्र का जाप करने लगे। इसके साथ ही खेलने और खाने की उम्र में पारिवारिक विवशता के कारण खेती-किसानी के कार्य में हल, कुदाल और फावड़ा जीवन के मित्र बन गए। तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद दीनानाथ पाठक ने हार नहीं मानी और १ फरवरी, १९९९ को भारतीय सेना में नायब सूबेदार (धर्म शिक्षक) के पद पर योगदान देकर देश की सेवा में जुट गए। यहां भी अपनी कर्तव्यपरायणता के कारण आज ऑनरेरी लेफ्टिनेंट (धर्म शिक्षक) के पद कार्यरत हैं। आज इनके छोटे पुत्र भारतीय राजस्व सेवा में वरीय अधिकारी हैं। वहीं बड़ा बेटा इलेक्ट्रॉनिक एंड कम्युनिकेशन से बीटेक कर एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में कार्यरत है, जबकि दूसरा बेटा मैकेनिकल इंजीनियरिंग कर एक स्वयंसेवी संस्थान के निदेशक मंडल में शामिल होकर स्कील डेवलपमेंट के जरिए लोगों को स्वरोजगार के गुर सिखा रहे हैं। दीनानाथ पाठक बताते हैं कि सेवानिवृत्ति के बाद भी वह देश की खातिर स्वयंसेवी संगठन के माध्यम से लोगों को शिक्षा के प्रति जागरूक करेंगे।