आनंद श्रीवास्तव
कर्नाटक से मुंबई आए संजीव शेट्टी को जब नौकरी नहीं मिली, तब उन्होंने चेंबूर के डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर गार्डन के पास एक छोटा-सा चाय का ठेला शुरू किया। इसी ठेले की कमाई से परिवार का खर्च चलाने लगे। दो बच्चों को पढ़ाया-लिखाया और काबिल बनाया। छोटी बेटी कॉमर्शियल आर्टिस्ट की पढ़ाई कर रही है तो वहीं बड़ा बेटा रोशन शेट्टी खेल-कूद में अपना नाम रोशन कर रहा है। पिछले साल दिल्ली में संपन्न अंतर्राष्ट्रीय कीक बॉक्सिंग प्रतियोगिता में रोशन शेट्टी ने कांस्य पदक जीता था। इस प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए चाय वाले संजीव शेट्टी ने कई लोगों से मदद मांगकर अपने बेटे रोशन को भेजा था। संजीव शेट्टी का कहना है कि मेरा बेटा रोशन एमपीएससी की तैयारी कर रहा है, एक चायवाले के लिए इससे बड़ी बात क्या होगी। वह चाहते हैं कि बेटा आगे बढ़े। चायवाले का बेटा चायवाला न बने, इसके लिए कर्ज लेकर पढ़ाया। आज भी बच्चों को जो कुछ चाहिए, वह लाकर देते हैं। चाय के ठेले को कई बार बीएमसी वाले उठा ले जाते हैं। ठेले का सामान छुड़ाने के लिए फाइन भरना पड़ता है, साथ ही पूरे दिन का नुकसान हो जाता है। एक दौर ऐसा आया था जब मनपा ने फुटपाथ की दुकानों को बंद करवा दिया था। धंधा-पानी बंद हो जाने से पैसे की तंगी होने लगी थी। संजीव शेट्टी कहते हैं कि बावजूद इसके मैंने कभी हिम्मत नहीं हारी। चाहे कितना भी संघर्ष क्यों न करना पडे, मैं अपने बेटे को नंबर वन खिलाड़ी बनाकर रहूंगा। फिलहाल, संजीव शेट्टी की तबीयत खराब चल रही है। बच्चे उन्हें दुकान जाने से मना करते हैं, फिर भी वह दुकान पर नियमित रूप से पहुंचते हैं। वह कहते हैं कि इस दुकान ने मुझे बहुत कुछ दिया है, इसलिए मैं इसे छोड़ नहीं सकता। बच्चे जीवन में यदि कुछ बन जाते हैं, तब देखा जाएगा। वे कहते हैं कि बच्चों को लायक बनाने के लिए मरते दम तक मेहनत करते रहेंगे। जब तक उनके बच्चे अपने पैरों पर खड़े नहीं हो जाते, तब तक वे चाय की दुकान चलाते रहेंगे। बच्चों को आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित और सहयोग करते रहेंगे। उसी दौरान संजीव शेट्टी के बेटे का चयन अंतरराष्ट्रीय कीक बॉक्सिंग प्रतियोगिता के लिए हुआ। लिस्ट में बेटे का नाम आने की खुशी तो थी, लेकिन वहां के लिए ड्रेस और अन्य खर्चे के लिए इनके पास पैसे नहीं थे, तब संजीव ने कुछ नेता व समाजसेवियों से मदद की गुहार लगाई। लोगों ने इनकी हर ढंग से मदद की।