आनंद श्रीवास्तव
सन १९५७ में जौनपुर के मछलीशहर से मुंबई नौकरी के लिए पहुंचे ओंकारनाथ यादव ८५ वर्ष के हैं और अपनी तीसरी पीढ़ी को वे आज इंजीनियर के रूप में देखते हुए अपने आपको भाग्यशाली मान रहे हैं कि कि आज उनके पास वो सब कुछ है, जिसकी इच्छा से वो मुंबई आए थे। जब ओंकारनाथ यादव मुंबई आए तब उन्हें जोगेश्वरी के एक तबेले में घर-घर दूध पहुंचाने की नौकरी मिली थी। कम पढ़े-लिखे थे लेकिन खूब मेहनती थे इसलिए यह नौकरी उन्होंने सहर्ष स्वीकार कर ली। रोजाना सुबह ३ बजे उठते और जोगेश्वरी के तबेले से दूध लेकर दादर हिंदू कॉलोनी और पारसी कॉलोनी के घर-घर में पहुंचाते। इस तरह १० साल तक दिन-रात मेहनत करके ओंकारनाथ यादव ने दादर के सयानी रोड स्थित खेड गली में खुद की दूध व चाय की दुकान शुरू की। यहीं से ओंकारनाथ यादव की जिंदगी में टर्निंग पॉइंट आया। शुरू से मेहनती तो थे ही, अब अपने खुद के व्यवसाय के लिए उन्होंने दिन-रात एक कर दिया। इसी बीच उनके बच्चे बड़े होते चले गए। ओंकारनाथ ने कभी भी अपने बच्चों पर अपने व्यवसाय में शामिल होने का दबाव नहीं डाला। हां, बच्चे स्वेच्छा से कभी-कभी उनका हाथ बंटाने दुकान पर पहुंच जाया करते थे। लेकिन ओंकारनाथ यादव उन्हें इस काम के लिए मना कर दिया करते थे और पढ़ाई-लिखाई पर ध्यान देने को कहते थे। ओंकारनाथ यादव के बेटे तेजबहादुर यादव बचपन से ही पढ़ने में काफी तेज थे। अपने पिता की तरह वह भी अपने काम यानी अपनी पढ़ाई पर बड़ी तन्मयता और लगन से ध्यान देते थे। आखिर वह दिन आ ही गया, जिसका इंतजार ओंकारनाथ यादव को था। उनके बेटे ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी कर ली। थोड़े ही दिन में वह तारा इंडिकॉम कंपनी में बतौर आईटी इंजीनियर की नौकरी पर लग गए। यहीं पर नौकरी करते हुए तेजबहादुर को कंपनी की ओर से सपरिवार विदेश जाने का प्रस्ताव आया।
अपने बेटे के साथ ओंकारनाथ को भी जीवन में पहली बार विदेश जाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। यह दो हफ्ते की विदेश यात्रा लंदन की थी, जहां वो रहकर आए। अब ओंकारनाथ यादव की तीसरी पीढ़ी यानी तेजबहादुर यादव के बेटे भी आईटी इंजीनियरिंग क्षेत्र में हैं। ओंकारनाथ के बड़े पोते ने अमेरिका से आईटी इंजीनियरिंग की शिक्षा पूरी की तो छोटा पोता नासिक में इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा है।
उत्तर प्रदेश से खाली हाथ मुंबई आए ओंकारनाथ यादव ने अपनी मेहनत व लगन से बहुत कुछ हासिल कर लिया है। दुकान के अलावा मुंबई जैसे शहर वह भी दादर में उनका फ्लैट है। उनके बच्चे अपने पैरों पर खड़े हो गए हैं। ओंकारनाथ उन लोगों के लिए भी एक मिसाल बन चुके हैं, जो सोचते हैं कि इतने बड़े शहर में वह वैâसे रह पाएंगे।
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