आनंद श्रीवास्तव
झारखंड के मुद्दूपुर से मुंबई आए मोहम्मद अरशद अंसारी नौकरी की तलाश में सबसे पहले अंधेरी पहुंचे। उन्हें मोटरसाइकिल मरम्मत का थोड़ा-बहुत काम आता था इसलिए मुंबई में नौकरी के लिए ज्यादा भटकना नहीं पड़ा और अंधेरी के ही एक रिपेयरिंग शॉप में उन्हें नौकरी मिल गई। इसके बाद अंसारी ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।
खराब मोटरसाइकिल की मरम्मत कर वे अपना और अपने परिवार का पेट पालने लगे। हाथों में हुनर था इसलिए मोहम्मद अरशद अंसारी ने जल्द ही नौकरी छोड़ दी और सायन कोलीवाड़ा के ऑटो मोबाइल पार्ट के मार्वेâट की लाइन में खुद का गैरेज शुरू किया, इन्हें लक्ष्मी मोटर्स का पूरा सहयोग मिला। यहीं पर काम करते हुए बच्चों को स्कूली शिक्षा दिलाई। मोहम्मद अरशद अंसारी का परिवार गांव में रहता है। धारावी में एक किराए के मकान में वह अकेले रहते हैं। उनके चारों बच्चे गांव में रहते हैं। अंसारी दिन भर काम करते हैं। उनका काम और व्यवहार अच्छा है इसलिए लोग अपनी मोटरसाइकिल इनसे ही रिपेयर करवाना पसंद करते हैं। बारिश और कड़ी धूप में वे काम करते हैं और इससे मिलने वाले पैसों से अपने बच्चों को पढ़ाते हैं। उनके बच्चों में से बड़ा बेटा अशरफ अंसारी ग्रेज्युएशन कर रहा है। मोहम्मद अशरफ अंसारी कहते हैं कि `दिन-रात एक कर दूंगा, लेकिन अपने बच्चों को पढ़ा-लिखा कर काबिल बनाऊंगा। अशरफ ग्रेज्युएशन कर रहा है। उसकी फीस का इंतजाम मैंने वैâसे किया यह मेरा दिल ही जानता है, लेकिन मैंने कभी हिम्मत नहीं हारी और न ही भविष्य में कभी हिम्मत हारूंगा।’
आपके बच्चे आपके मैकेनिक लाइन में क्यों नहीं आए? यह पूछे जाने पर अंसारी ने तुरंत जवाब दिया, `मैं नहीं चाहता कि मेरे बच्चे मेरी तरह नरक की जिंदगी जिएं। हम मैकेनिक लोग दिन भर धूप में खड़े रहकर गाड़ी के गर्म इंजन और साइलेंसर को हाथ लगाकर काम करते हैं, कभी-कभी हाथ भी जल जाता है। मैं नहीं चाहता कि मेरी जैसी जिंदगी वो जिएं।’ यह कहते हुए मोहम्मद अरशद अंसारी अपने काम में जुट जाते हैं।