अशोक तिवारी
अपनी मेहनत और संघर्ष के बलबूते कामयाबी हासिल करनेवालों में से एक रघुनाथ सोनकांबले भी रोजी-रोटी की तलाश में महाराष्ट्र के लातूर जिले के जलकोट तालुका से वर्ष १९७० में मुंबई आए थे। रघुनाथ सोनकांबले को शीघ्र ही घाटकोपर के बीएमसी गैरेज यार्ड में ड्राइवर की नौकरी मिल गई। कुछ वर्षों तक रघुनाथ ने ड्राइवर की नौकरी की, लेकिन परिवार में चार बच्चों वाले परिवार की वजह से खर्च पूरा नहीं हो पाता था इसलिए मित्रों की सलाह पर वे दुबई चले गए। धन का अभाव होते हुए भी रघुनाथ ने अपने सभी बच्चों को शिक्षा दिलवाई। अपने छोटे बेटे विनोद को बारहवीं तक की पढ़ाई और एसी मैकेनिक में डिप्लोमा करवाया। परिवार को आर्थिक स्थिति से उबारने के लिए विनोद सोनकांबले ओएनजीसी कंपनी में एसी प्लांट में मैनेजर के पद पर काम करने लगे। कुछ वर्षों बाद उन्होंने खुद का इलेक्ट्रिक वायरिंग, एसी रिपेयर तथा टीवी रिपेयर का व्यवसाय शुरू किया। वर्ष १९९७ में विनोद का विवाह हो गया। एसी मैकेनिक का काम ठीक से नहीं चल रहा था इसलिए कुछ वर्षों तक उन्होंने ऑटोरिक्शा चलाया। वर्ष २००२ में उन्होंने पत्रकारिता की शुरुआत की। इसके बाद जब वर्ष २००५ में आरटीआई कानून आया तो विनोद सोनकांबले सूचना अधिकार कार्यकर्ता बनकर मनपा और पुलिस विभाग में व्याप्त भ्रष्टाचार को उजागर करने लगे। इसके कुछ वर्षों बाद विनोद ने करीब चार एनजीओ बनाया और एनजीओ के माध्यम से क्षेत्र में समाज सेवा का काम करने लगे। खुशी महिला संस्था, रोहिणी महिला संस्था, सुहासिनी महिला बचतगट के माध्यम से घाटकोपर क्षेत्र में आंगनवाड़ी और सरकारी कार्यालय में भोजन बनाकर सप्लाई करने की व्यवस्था शुरू की गई। इसके अलावा इन संस्थाओं द्वारा क्षेत्र में गटर एवं नालियों की साफ-सफाई के कार्य को भी अंजाम दिया जाता है। विनोद सोनकांबले ने मनपा के अलावा पुलिस विभाग के भी कई भ्रष्टाचारों को उजागर किया है और कुछ मामलों में उन्होंने अदालत में जनहित याचिका भी दायर की थी। कोरोना काल में विनोद सोनकांबले के एनजीओ द्वारा घाटकोपर क्षेत्र की झोपड़पट्टियों में काफी दिनों तक मुफ्त में भोजन का वितरण कराया गया। इसके अलावा झोपड़पट्टी क्षेत्र में मुफ्त इलाज के लिए चिकित्सा शिविर का भी आयोजन किया गया था। विनोद सोनकांबले बताते हैं कि काफी वृद्ध होने के बावजूद उनके माता-पिता आज भी एनजीओ के खाना बनाकर बंटवाने के काम में सक्रिय योगदान देते हैं। विनोद सोनकांबले के दो बच्चे हैं जिन्हें वह पढ़ा-लिखा कर कामयाब बनाना चाहते हैं। भारत रत्न डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर को अपना आदर्श माननेवाले विनोद सोनकांबले का मानना है कि समाज में शिक्षा का प्रसार ही देश से गरीबी का अंत कर सकता है। समाज जब शिक्षित होगा तो उसे अपने अधिकारों के बारे में ज्ञान होगा और वह उसके लिए संघर्ष करेगा। इस संघर्ष के लिए समाज एकजुट बनेगा। यही डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर का भी सपना था और यह सपना तभी पूरा हो सकता है जब समाज में कोई भी अशिक्षित न रहे।